PATNA (SMR) : मौसम ने अंगड़ाइयां ली हैं। धूप के मिजाज बदलने लगे हैं। शीत सकुचाने लगी है। खिले-खिले फूल खुशबू बिखेरने लगे हैं। इससे हवा भी मोहित हो उठी है। नतीजतन, खुशबू संग पवन अठखेलियां करने लगा है। इसके असर से खेतों में सरसों के पीले-पीले फूल झूमने लगे हैं। सुरभित ऊष्णा से भौरों में जान आ गयी है। गुनगुनाते हुए भ्रमर रसपान के लिए फूलों पर मंडराने लगे हैं। भरे को ऐसा करते देख कोयलिया भला कहां चूकने वाली है। उसके मुंह से भी मधुर बोल फूटने लगे हैं। ऐसे में दिलों में भी गुदगुदाहट होने लगी है। आखिर हो भी क्यों नहीं। वसंत की आहट जो पड़ चुकी है।
शीत की चादर पर वसंत के दबे पांव पड़ते ही माहौल वासंती होने लगा है। शिशिर ने जैसे ही वसंत की आगवानी की, जीव-जंतुओं की कौन कहे, फलदार पेड़ यह सोच कर ही रोमांच से भर गये कि उनमें मंजर आने के दिन आ गये हैं। पेड़ों की हर डाल मंजर से लद कर मादकता बिखरने की कल्पना मात्र से ही इतराने लगी हैं। मधुमक्खियां गाती हुईं शहद के लिए नये-नये छत्ते लगाने को इतराती डालों में जगह तलाशने लगी है। इस डाल से उस डाल, इस पेड़ से उस पेड़ और इस बाग से उस बाग की उड़ कर सैर कर रहीं मधुमक्खियां मधुमास का एहसास कराने लगी हैं।
वसंत ऋतियों के राजा हैं। धरा पर ऋतुराज वसंत के पांव अकेले नहीं पड़े है। साथ में सतरंगी सेना भी है। ऋतुराज की तरह ही उनकी सतरंगी सेना के हर सेनानी भी अपने-अपने तरकश से वाण निकाल कर शनै-शनै चला रहे हैं। वासंती सेना का कोई भी वाण चूक नहीं रहा है। हर वाण अपने निशाने को साध रहा है। निशाने पर सधते ही हर वाण अपना असर दिखा रहा है। जैसा वाण, वैसा असर । वासंती राग के बीच दिलों में गुदगुदाहट कामदेव के चल रहे वाण का असर है। अपने पति कामदेव की बिना देह उपस्थिति की अनुभूतियों ने रति को भावों से भर दिया है। रति तो विभोर है।
कामदेव के देह जाने की अलग कहानी है। परंपरा से चली आ रही कथा के मुताबिक शिव को पति रूप में पाने के लिए पार्वती तप पर थीं। लेकिन, उनका कठोर तप भी औघड़दानी को डिगा नहीं पाया। उनकी आंखें बंद ही रहीं। उनका तप नहीं टूटा। तब, कामदेव आगे आये। कामदेव ने अपना असर दिखाया, तो वसंत आ गया। साथ में उनकी वासंती सेना भी थी। फिर क्या था फूल खिल उठे। भौरे गान करने लगे। कोयलिया कुहुकने लगी। असर महादेव के तप पर पड़ा। वे क्रोध से भर गये। कोधित होते ही उनकी तीसरी आंख खुल गयी। सामने खड़े कामदेव भष्म हो गये। अपने पति के भष्म हो जाने से रति विलाप कर उठीं।
आखिरकार, देवाधिदेव पसीझे। उन्होंने रति को यह वर दिया कि उनके पति बिना देह के ही जीवित रहेंगे। खैर, वसंत पंचमी को ऋतुराज का रंगबिरंगे गुलाल से अभिषेक होगा। उसके पहले विद्या और कला की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती के चरणों में गुलाल अर्पित किये जायेंगे। फिर, हर चेहरे रंग जायेंगे पीले-लाल-गुलाबी गुलाल से और पूरी तरह पसर जायेगी वासंती मादकता।
(नोट : यह मौसम वृतांत शैक्षिक लेखक व साहित्यकार डॉ लक्ष्मीकान्त सजल का है। वे किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। इस बार आपने पढ़ा कि उन्होंने वसंत ऋतु के आगमन को किस प्रकार अपने शब्दों में पिरोया है। मौसम के बहाने रति और कामदेव की कहानी भी सुनायी। यह रिपोर्ट उनके सोशल मीडिया एकाउंट से साभार है। इसमें उनके निजी विचार हैं।)