Mukhiya Views : नीतीश के लिए डोर लेकर घूम रही है BJP, बस फांस नहीं पा रही है

PATNA (APP) : 80 के दशक में एक फिल्म आयी थी एक दूजे के लिए। उस फिल्म का गाना ‘हम बने, तुम बने, एक दूजे के लिए’ सुपर-डुपर हिट किया था। उसी गाने में यह पंक्ति भी थी- ‘एक डोर खींचे दूजा दौरा चला आए, कच्चे धागे में बंधा चला आए…’ वैसे तो इस गाने का ताना-बाना फिल्मी कैरेक्टर के लिए बुना गया था, लेकिन यहां यह ‘डोर’ पूरी तरह ‘सियासी डोरा’ बन गया है। सियासी पंडितों की मानें तो बीजेपी सियासी डोरा लेकर पलक पावड़े बिछाए हुए हैं। कब इस डोरा में फंसकर नीतीश कुमार एनडीए में आ जाएं। इसके संकेत ​दिल्ली एम्स में इलाज कराने गए उपेंद्र कुशवाहा के वायरल हो रहे फोटो से भी मिलने लगे हैं। ऐसे में बिहार के सियासी गलियारे में तरह-तरह के सवाल उठने लगे हैं। अब पढ़िए आगे : 

सवाल नंबर 1 : सीएम नीतीश कुमार पर बीजेपी क्या डोरा डाल रही है ? सवाल नंबर दो :  उपेंद्र कुशवाहा क्या बीजेपी के लिए इस डोरा का जरिया हैं ? सवाल नंबर तीन : उपेंद्र कुशवाहा क्या ‘सियासी इलाज’ के लिए दिल्ली गए हैं ? सवाल नंबर 4 : महागठबंधन में क्या 5 माह में ही दरार पड़ गयी है ? सवाल नंबर 5 : नीतीश और तेजस्वी में पहले वाला संबंध नहीं रहा क्या ? : सवाल नंबर 6 : 2024 के पहले बीजेपी क्या बिहार में बड़ा दांव चल रही है ? : सवाल नंबर 7 : उपेंद्र कुशवाहा ने जेडीयू छोड़ने का मन क्या ​बन लिया है ? और सबसे अंतिम में सबसे बड़ा सवाल : क्या नीतीश कुमार फिर एनडीए में जा सकते हैं ? 

अंतिम सवाल पर हर किसी की नजर लगी हुई है। दरअसल, नए साल में कुछ इस तरह स्थिति-परिस्थिति बनती जा रही है और 2015 के बाद से कुछ ऐसे-ऐसे सियासी वाकये हुए हैं कि राजनीति में अब सबकुछ संभव है। आज ही बीजेपी प्रवक्ता प्रेमरंजन पटेल ने कहा है कि राजनीति में सबकुछ संभव है, कुछ भी स्थायी नहीं होता है, न ही दोस्ती और न ही दुश्मनी। बिहार में आरजेडी प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के बेटे सुधाकर सिंह का नीतीश कुमार के खिलाफ दिए गए विवादित बयानों का मामला थमा भी नहीं था कि बीच में बिन बुलाए शिक्षा मंत्री प्रोफेसर चंद्रशेखर ने बीजेपी को रामचरित मानस वाला मुद्दा थमा दिया। और, इस मुद्दे को बीजेपी के बदले जेडीयू ने लपक लिया। शुरू में तो इस मुद्दे से खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किनारा कर लिया, लेकिन अचानक से जेडीयू के उपेंद्र कुशवाहा ही नहीं, बल्कि प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा, मुख्य प्रवक्ता नीरज कुमार, पार्टी उपाध्यक्ष संजय सिंह समेत अन्य नेता शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर पर बरस पड़े। इसकी लड़ाई ट्विटर पर भी चली गयी। शिक्षा मंत्री ने ट्वीट किया-  ‘बुनियादी संसाधन उचित पाठन, शिक्षित बिहार तेजस्वी बिहार !’ तो इसका जवाब जेडीयू के नीरज कुमार ने ट्वीट करके ही दिया। नीरज कुमार ने ट्वीट में लिखा- ‘ट्विटर की नहीं काम की सरकार, शिक्षित कुमार शिक्षित बिहार’। 

दिल्ली एम्स में उपेंद्र कुशवाहा से मिलते बीजेपी नेता।

दूसरी ओर, उपेंद्र कुशवाहा तो जबर्दस्त ढंग से तेजस्वी यादव को टार्गेट किए हुए थे और सुधाकर सिंह को लेकर उन्हें निशाने पर ले रहे थे। उपेंद्र कुशवाहा ने तो यहां तक कह दिया था कि सुधाकर सिंह को तेजस्वी यादव समझा दें, वरना न यह महागठबंधन के लिए ठीक होगा और न ही उनके लिए ही ठीक होगा। जब पानी सिर से उपर जाने लगा, तब तेजस्वी यादव ने कहा कि सुधाकर सिंह पर जल्द ही कार्रवाई की जाएगी। नीतीश कुमार के खिलाफ बयान बर्दाश्त नहीं की जाएगी। इस पर उपेंद्र कुशवाहा चुप नहीं बैठे थे। तब उन्होंने कहा था कि वे सुधाकर सिंह को क्यों बर्दाश्त कर रहे हैं। इसके बाद अचानक से मीडिया में यह बात आने लगी कि उपेंद्र कुशवाहा डिप्टी सीएम बनने वाले हैं। इस पर भी उन्होंने खुलकर इस बात को स्वीकार किया और कहा कि हम कोई संन्यासी थोड़े ही हैं और किसी मठ में थोड़े बैठे हैं। हालांकि मेरा डिप्टी सीएम बनना या न बनना सीएम नीतीश कुमार के हाथ में है। इसके बाद जब डिप्टी सीएम के नाम पर नीतीश कुमार ने ही पूर्ण विराम लगा दिया, तब उपेंद्र कुशवाहा यह कहकर दिल्ली चले गए कि सुधाकर सिंह पर कार्रवाई नहीं होने पर कोई बड़ा फैसला लिया जा सकता है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि दिल्ली एम्स में उनका रूटीन चेकअप कराना है। 

लेकिन, जिस तरह दिल्ली एम्स से उपेंद्र कुशवाहा की तस्वीरें निकल कर सामने आयी हैं। वह बिहार के सियासी गलियारे में हलचल मचाने के लिए काफी है। इन तस्वीरों को देखकर पॉलिटिकल एक्सपर्ट यही कह रहे हैं कि उपेंद्र कुशवाहा अपना नहीं बल्कि ‘सियासी इलाज’ के लिए दिल्ली गए हैं। स्वयं से ज्यादा उन्हें बिहार में हो रही सियासत का इलाज जरूरी है। पहले यह बताते हैं कि आखिर इन तस्वीरों की कहानी क्या है? दरअसल, बीजेपी के प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने अपने फेसबुक प्लेटफॉर्म पर तीन फोटो डाले हैं। इन फोटो में उपेंद्र कुशवाहा एम्स में बेड पर लेटे हुए हैं, जबकि उनसे बीजेपी विधायक व प्रवक्ता प्रेमरंजन पटेल समेत बीजेपी के ही संजय टाइगर और योगेंद्र पासवान बात कर रहे हैं। ये तीनों फोटो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहे हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि उपेंद्र कुशवाहा ने बीजेपी में जाने का मन पूरी तरह बना लिया है और एक-दो सप्ताह में केंद्रीय कैबिनेट का विस्तार होने वाला है। संभव है कि उसमें कुशवाहा का भी नाम हो, हालांकि, उपेंद्र कुशवाहा ने इससे इनकार किया है। 

सियासी पंडितों की मानें तो उपेंद्र कुशवाहा रूटीन चेकअप के लिए दिल्ली एम्स में भर्ती हुए थे, लेकिन बीजेपी नेताओं की उनसे हुई मुलाकात ने बिहार की सियासत को गरमा कर रख दिया है। कई तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं, क्योंकि जेडीयू में अपनी अनदेखी से कुशवाहा इन दिनों काफी नाराज चल रहे हैं। वे पिछले सप्ताह बोले भी हैं कि दो साल से उन्हें पैवेलियन में बैठाकर रखा गया है, जबकि वे खुलकर खेलना चाहते हैं। ऐसे में बीजेपी नेताओं से उनकी मुलाकात के बाद से इस बात की आशंका जताई जा रही है बिहार में जल्द बड़ा सियासी उलटफेर हो सकता है। वे पिछले सप्ताह से कुछ अधिक ही विचलित नजर आ रहे हैं। सियासी पंडितों की मानें तो उपेंद्र कुशवाहा जेडीयू में शामिल तो हुए थे, लेकिन इसके बदले में उन्हें कुछ नहीं मिला। भले ही नीतीश कुमार ने उनको जेडीयू संसदीय बोर्ड का राष्ट्रीय अध्यक्ष और एमएलसी बनाया, किंतु उनके पॉलिटिकल पॉवर को पूरी तरह कुंद कर दिया गया, जबकि लवकुश समीकरण को मजबूत करने के लिए नीतीश कुमार उन्हें पार्टी में लेकर आए थे। इसके बाद भी वे पार्टी में हाशिए पर चले गए हैं और पैवेलियन के रिजर्व खिलाड़ी होकर रह गए। 

जब उपेंद्र कुशवाहा जेडीयू में शामिल हो रहे थे, तभी सियासी पंडितों ने उम्मीद जतायी थी कि संभव है कि उपेंद्र कुशवाहा नीतीश कुमार की कैबिनेट में शामिल हों, फिर यह भी गेस किया जाने लगा कि कुशवाहा केंद्र में मंत्री बनाए जा सकते हैं, लेकिन नीतीश कुमार ने केंद्र में जेडीयू कोटे से मंत्री देने से इनकार कर दिया, वहीं आरसीपी सिंह नए राजनीतिक पैंतरे के बाद अकेले मंत्री बन गए। इसके बाद बीजेपी और जेडीयू में मतभेद बढ़ता चला गया और 9 अगस्त को नीतीश कुमार एनडीए से बाहर होते हुए महागठबंधन में आ गए। नयी सरकार बनी, लेकिन उपेंद्र कुशवाहा का कुछ भी नहीं हुआ। समय आगे बढ़ता जा रहा था, लेकिन कुशवाहा का सियासी पहिया जहां थमा था, वहीं थमा रह गया। 

बहरहाल, बीजेपी की सियासत लगातार आगे बढ़ती जा रही थी। सियासी पंडितों के अनुसार, वह हर चाल चल रही है, जिससे नीतीश कुमार को तोड़ा जा सके। उनकी और तेजस्वी के बीच की खाई को अधिक से अधिक चौड़ी की जा सके। वैसे मुद्दे को गरमाया जाए, जिससे महागठबंधन में मतभेद साफ दिखे और जैसे ही शिक्षा मंत्री प्रोफेसर चंद्रशेखर ने रामचरित मानस को लेकर विवादित बयान दिया, बीजेपी को मौका मिल गया। वहीं, जिस तरह जेडीयू के लोग मंत्री चंद्रशेखर पर टूटे, वह तो बीजेपी के लिए सोने पर सोहागा हो गया। इसके बाद से महागठबंधन में ‘दरार की हवा’ तेज पकड़ने लगी। हालांकि, समाधान यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कई दफे कह चुके हैं कि महागठबंधन में किसी तरह का कोई विवाद नहीं है। इसके बाद भी लोग मानने को तैयार नहीं हैं। बता दें कि 17 जनवरी को भी समाधान यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मीडिया ने पूछा था कि भाजपा के एक सांसद यह कह रहे कि बिहार में भी महाराष्ट्र का हाल होगा, रातोंरात सरकार पलट जाएगी? तब मुख्यमंत्री ने दो टूक जवाब दिया था- ‘खुशी मनाएं वे लोग। हमलोग तो काम करते रहते हैं। जिसे जो मन में आए बोले। जनता मालिक है। विगत 17 वर्षों से तो हम काम ही कर रहे। जब हमारे साथ वे लोग रहते हैं तो कुछ बोलते हैं और जब अलग हो जाते हैं तो कुछ और बोलते हैं। जबकि इस यात्रा का उद्देश्य यह है कि जो भी काम किया गया है, उसकी क्या प्रगति है उसे देखें। यह भी आकलन करें कि उसका प्रभाव है या नहीं। आगे और क्या करना चाहिए और क्या किया जा सकता है, उसे देखा जा रहा। यह बहुत ठीक है। एक-एक बात को नोट किया जा रहा है। इतना ही नहीं, आज भी समाधान यात्रा के दौरान गया में मुख्यमंत्री ने सुशील मोदी पर भी ​सीधा तंज कसा और कहा कि वे जब तक हमलोग पर कुछ नहीं बोलेंगे, तो उन्हें कुछ मिलेगा कैसे? 

बहरहाल, अगले माह अमित शाह बिहार आने वाले हैं। उनका शेड्यूल लगभग तय हो गया है। वे 22 फरवरी को बिहार आएंगे। लेकिन, अभी से कहना जल्दबाजी होगा कि उस समय की परिस्थिति क्या होगी ? तब बिहार में किसकी सरकार होगी? क्योंकि, बीजेपी वाले बिहार को लेकर जिस तरह से दावे कर रहे हैं और जिस तरह माहौल ​दिख रहा है, ऐसे में बेशक कुछ हो भी जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। लेकिन, सियासी पंडित इतना तो जरूर मान रहे हैं कि बीजेपी हर हाल में चाह रही है कि 2024 के पहले महागठबंधन बिखर जाए और नीतीश कुमार महागठबंधन में नहीं रहें। बीजेपी के साथ आ जाएं तो ठीक है, वरना वे आरजेडी के साथ भी नहीं रहें, इसलिए हर कोई ‘ वको ध्यानम’ की तरह बिहार की सियासत पर नजरें गड़ाए हुए हैं। BJP तो दोनों हाथों में डोरा लेकर घूम रही है, लेकिन बात ही नहीं बन पा रही है। 

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