mukhiyajee.com की रिपोर्ट : झुमका गिरा रे बरेली के बाजार… मेरा साया फिल्म का यह गाना 1966 में धूम मचा दिया था। इस गाने का जलवा आज भी बरकरार है। लेकिन इस बार की चुनावी कहानी में बरेली नहीं, बल्कि रायबरेली की बात कर रहे हैं। रायबरेली लोकसभा क्षेत्र में पांचवें चरण में 20 मई को मतदान है। यह सीट उस समय हॉट शीट बन गया, जब यहां से कांग्रेस ने राहुल गांधी की उम्मीदवारी घोषित कर दी। हालांकि, एक सप्ताह से प्रियंका गांधी के चुनाव लड़ने की अटकलें तेज थीं, वहीं राहुल के अमेठी जाने की बात हो रही थी। लेकिन, 4 मई को उनके नामांकन के साथ ही रायबरेली पर चल रही सारी कयासबाजी खत्म हो गयी। रायबरेली के मैदान में राहुल गांधी दमखम के साथ उतर गए हैं।
दरअसल, आजादी के बाद से अब तक रायबरेली में गांधी परिवार का ही दबदबा रहा है। यहां अब तक हुए चुनाव में केवल तीन मौकों पर ही कांग्रेस हारी है। इस सीट पर हुए पहले दो लोकसभा चुनाव में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी ने जीत हासिल की थी। इसके बाद 1967, 1971 और 1980 में इंदिरा गांधी यहां से सांसद बनीं। फिर 1989 और 1991 में कांग्रेस के टिकट पर शीला कौल जीती थीं। वे इंदिरा गांधी की मामी थीं। इसके बाद 2004 से 2019 तक सोनिया गांधी यहां की सांसद बनीं।
बहरहाल, सोनिया गांधी इसी साल राज्यसभा की सदस्य बन गयी हैं। चुनाव मैदान खाली हुआ तो कांग्रेस के सामने बड़ा सवाल आ गया कि इस बार कांग्रेस की ओर से कौन वारिस होगा रायबरेली का। मीडिया ने भी सूत्रों के हवाले से प्रियंका गांधी पर कयासबाजी करती रही, लेकिन भांप नहीं सकी। राहुल का अमेठी प्रेम की वजह से किसी एक पर मेन मीडिया स्थिर नहीं हो पा रही थी। लेकिन अंतिम समय में सारी अटकलों को विराम देते हुए कांग्रेस ने राहुल के नाम का पत्ता खोला। आनन-फानन में वे नामांकन को पहुंच गए। मौके पर उनकी माँ सोनिया गांधी और बहन प्रियंका गांधी पहुंच गयीं। यहां ‘मोदी की गारंटी’ काम करेगा या ‘हाथ बदलेगा हालात’, यह तो आनेवाला समय बताएगा और 4 जून को ही पता चलेगा कि इस बार रायबरेली के ‘सियासी बाजार में क्या होगा ?
क्या कहता है जातीय समीकरण : बिहार हो यूपी, अथवा हिंदी पट्टी वाला राज्य, जातीय समीकरण की बीमारी सभी जगहों पर धीरे-धीरे घर करती जा रही है। हालांकि, रायबरेली अभी इस सियासी बीमारी से अछूता है। रायबरेली लोकसभा सीट के जातीय और सामाजिक समीकरणों की बात करें तो यहां लगभग 11 परसेंट ब्राह्मण, 9 परसेंट राजपूत, 7 परसेंट यादव के मतदाता हैं। यहां दलित वर्ग के मतदाताओं की तादाद सबसे अधिक है। इस लोकसभा क्षेत्र में लगभग 34 परसेंट दलित मतदाता हैं। इसके अलावा रायबरेली में मुस्लिम 6%, लोध 6%, कुर्मी 4% के करीब हैं। अन्य जाति-वर्ग के मतदाताओं की तादाद भी करीब 23 फीसदी होने के अनुमान हैं। वैसे हिंदी पट्टी में भी उम्मीदवार की जाति देखकर या राजनीतिक दल देखकर वोट करने का ट्रेंड रहा है, लेकिन रायबरेली में गांधी परिवार से किसी सदस्य के चुनाव लड़ने पर कास्ट फैक्टर जीरो होता आया है।
फिरोज-इंदिरा ने लड़ा था पहला चुनाव : रायबरेली लोकसभा क्षेत्र से न केवल इंदिरा गांधी, बल्कि उनके पति फिरोज गांधी ने भी पहला चुनाव लड़ा था। आजादी के बाद हुए प्रथम आम चुनाव में पहली बार यहां से फिरोज गांधी ने किस्मत आजमाई थी। इस तरह वे पहली बार में ही संसद पहुंच गए। उन्हें दूसरी बार 1957 में ही सफलता मिली। उनके निधन के लगभग 7 वर्षों के बाद इंदिरा गांधी ने भी रायबरेली से ही चुनावी राजनीति का आगाज किया। इसके पहले वे 1964 में राज्य सभा की सांसद बनी थीं। बता दें कि इंदिरा को यहां से तीन बार जीत मिली थी।
दो बार भाजपा को मिली जीत : रायबरेली पर शुरू से कांग्रेस का दबदबा रहा है। इसके बाद भी इस क्षेत्र से आजादी के बाद से अब तक तीन बार कांग्रेस को करारी हार मिली है। एक बार तो खुद इंदिरा गांधी हार गयी थीं, जबकि एक बार कोर्ट ने उनके निर्वाचन को अवैध ठहराया था। दरअसल, 1971 के चुनाव में इंदिरा को विजयी घोषित किया गया था। इसके विरोध में लोकदल से लड़ रहे राजनारायण ने सरकारी तंत्र के दुरुपयोग और चुनाव में धांधली का आरोप लगाते हुए चुनाव नतीजे को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने इंदिरा के निर्वाचन को अवैध घोषित कर दिया। हालांकि सुप्रीम कोर्ट से उन्हें विजय मिल गयी थी। लेकिन 1977 राजनारायण को जीत मिली। इसी तरह 1996 और 1998 में इस सीट से बीजेपी के अशोक सिंह विजयी रहे।
अब तक के सांसद
1952 : फिरोज गांधी – कांग्रेस
1957 : फिरोज गांधी – कांग्रेस
1960 : आरपी सिंह – उपचुनाव
1962 : बैजनाथ कुरील – कांग्रेस
1967 : इंदिरा गांधी – कांग्रेस
1971 : इंदिरा गांधी – कांग्रेस
1977 : राज नारायण – जनता पार्टी
1980 : इंदिरा गांधी – कांग्रेस
1980 : अरुण नेहरू – उपचुनाव
1984 : अरुण नेहरू – कांग्रेस
1989 : शीला कौल – कांग्रेस
1991 : शीला कौल – कांग्रेस
1996 : अशोक सिंह – भाजपा
1998 : अशोक सिंह – भाजपा
1999 : सतीश शर्मा – कांग्रेस
2004 : सोनिया गांधी – कांग्रेस
2006 : सोनिया गांधी – कांग्रेस
2009 : सोनिया गांधी – कांग्रेस
2014 : सोनिया गांधी – कांग्रेस
2019 : सोनिया गांधी – कांग्रेस