लालू का इकरार, तेजस्वी का इनकार और नीतीश की चुप्पी; शीतलहरी में बिहार की हॉट पॉलिटिक्स…

PATNA (RAJESH THAKUR) : बिहार में शीतलहरी चल रही है। मौसम विभाग की मानें तो तापमान और गिरने वाला है। लेकिन इसके उलट सियासत का पारा अचानक चढ़ गया है। पॉलिटिकल एक्सपर्ट की मानें तो यह पारा अभी और चढ़ेगा। और इसकी मुख्य वजह के केंद्र में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं। एक बार फिर उनके ‘पलटने’ और ‘नहीं पलटने’ को लेकर सियासी गलियारे में बहस तेज है। दिग्गज नेताओं के साथ ही आम-आवाम भी इस बहसबाजी में कूद पड़ा है। चौक-चौराहे से लेकर चाय की दुकानों में कमोवेश बिहार की सियासत पर ही चर्चा तेज है और हर कोई खरमास के खत्म होने तक इंतजार करने को कह रहा है। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि राजद सुप्रीमो लालू यादव के इकरार और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के इनकार के बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की चुप्पी ने बड़े-बड़े सियासी पंडितों को सोचने के लिए विवश कर दिया है।

याद होगा 2020 का चुनावी रिजल्ट
दरअसल, आपको याद होगा 2020 का बिहार विधानसभा का चुनावी रिजल्ट। इसमें नीतीश कुमार की पार्टी 43 विधायकों के साथ तीसरे नंबर पर आ गयी थी, जबकि राजद पहले नंबर पर तो भाजपा दूसरे नंबर पर थी। 2015 के चुनाव जदयू को 71 सीटें मिली थीं। जदयू के पिछड़ने में पार्टी के लोग सांसद चिराग पासवान को बड़ा कारण मान रहे थे। 2020 के चुनाव में चिराग पासवान ने उन सभी सीटों पर लोजपा प्रत्याशी को उतारा, जहां-जहां से जदयू चुनाव लड़ रहा था। रिजल्ट के आने के बाद से ही नीतीश कुमार बीजेपी से नाराज चल रहे थे। 2022 में जब जुलाई के अंतिम सप्ताह में राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने बिहार दौरे के दौरान कहा था कि क्षेत्रीय पार्टियां समाप्त हो जाएंगी, केवल भाजपा और कांग्रेस रह जाएगी। इसी के बाद जदयू ने अचानक करवट लिया और NDA को झटका देते हुए महागठबंधन में शामिल हो गया। हालांकि, नीतीश कुमार महागठबंधन के साथ ज्यादा दिनों तक नहीं रह सके। भाजपा ने उनके लिए ‘बंद दरवाजे’ खोल दिए। खास बात कि अमित शाह ने नीतीश कुमार के लिए भाजपा के दरवाजे बंद किए थे, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दरवाजे खोले।

खुल गए हैं बंद दरवाजे
बिहार की सियासत में एक बार फिर ‘बंद दरवाजे’ खुल गए हैं। इस दरवाजे को अबकी बार राजद सुप्रीमो लालू यादव ने खोला है। लेकिन, इस बार बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्डा की जगह केंद्रीय मंत्री अमित शाह का बयान चर्चा में है। पिछले पखवारे अमित शाह से एक टीवी चैनल के कार्यक्रम में एकंर ने पूछा कि क्या नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार में चुनाव लड़ेंगे? इस पर उन्होंने कहा, ‘देखिए इस तरह का मंच पार्टी के डिसिजन लेने के लिए या बताने के लिए नहीं होता है। मैं पार्टी का डिसिप्लिन कार्यकर्ता हूं। पार्टी पार्लियामेंट्री बोर्ड की बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा होगी और फैसला लिया जाएगा।’ अमित शाह के इस बयान ने जदयू को अलर्ट मोड में ला दिया है। महाराष्ट्र में ‘एकनाथ शिंदे प्रकरण’ की चर्चा जदयू के गलियारे में होने लगी। सियासी पंडितों की मानें तो अमित शाह के इसी बयान को लेकर नीतीश कुमार अंदर ही अंदर नाराज चल रहे हैं। मामले की गंभीरता को देखते हुए न तो अमित शाह कुछ बोल रहे हैं और न ही नीतीश कुमार ही अपना मुंह खोल रहे हैं।

लालू के बयान से हलचल तेज
मामला तब और ज्यादा गरमा गया, जब राजद सुप्रीमो लालू यादव ने 2 जनवरी को एक चैनल से बात करते नीतीश कुमार के लिए महागठबंधन में दरवाजा खोलने की बात कह डाली। उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार के लिए उनके दरवाजे हमेशा खुले हैं। अगर नीतीश महागठबंधन में आते हैं, तो उनका स्वागत है। लालू के इस बयान से राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गयी है। जबकि एक-दो दिन पहले ही तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार को लेकर बयान दिया था कि उन्हें नहीं लिया जाएगा। ऐसे में लालू यादव के बयान को सियासी पंडित मायने निकाल रहे हैं। उस बयान के निहितार्थ तलाशे जा रहे हैं। लेकिन, जब कल ही नीतीश कुमार से राजद के साथ गठबंधन पर मीडिया ने सवाल पूछा, तो उन्होंने हाथ जोड़कर कोई जवाब नहीं दिया, केवल मुस्कुरा दिए। वहीं कल ही राज्यपाल के शपथग्रहण से जो तस्वीर आयी, उसने भी सबों को उलझा दिया। तेजस्वी ने जब नीतीश कुमार को प्रणाम किया तो उन्होंने इमोशनल होकर उनकी पीठ पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया।

नीतीश की चुप्पी के निहितार्थ
लेकिन सबसे बड़ी बात है कि इन सारे प्रकरणों के बाद भी नीतीश कुमार बिलकुल चुप हैं। सियासी पंडितों की मानें तो नीतीश कुमार फालतू में कुछ नहीं बोलते हैं। वे जब भी बोलते हैं तो सोच-समझ कर बोलते हैं और उनके हर शब्द के मायने होते हैं। पहले भी उन्होंने विवादित मुद्दों पर दूसरों से बयान दिलवाए हैं, खुद कम बोले हैं। इस बार भी ऐसा ही हो रहा है। फिलहाल वे कई मुद्दों पर चुप हैं। न अमित शाह के ‘आंबेडकर प्रकरण’ ही बोल रहे हैं और न ही CM पद वाले बयान पर ही कुछ बोल रहे हैं। हालांकि, पार्टी के कुछ नेता बोल रहे हैं, लालू के बयान का खंडन भी कर रहे हैं। सियासी पंडित यह भी कहते हैं कि नीतीश कुमार प्रेशर पॉलिटिक्स में भी सबसे आगे हैं। वे अपने पक्ष में माहौल बनाना जानते हैं। बहरहाल, तेजस्वी के इनकार और लालू के इकरार के बीच नीतीश की चुप्पी का राजनीति का क्या असर होगा, यह आने वाले पखवारे में ही पता चलेगा। फिलहाल, खरमास बहाना है और माना जा रहा है कि खरमास तक वे चुप ही रहेंगे। चूड़ा-दही भोज के बाद ही पता चलेगा कि नीतीश कुमार एनडीए पर प्रेशर बनाने में कितना सफल रहे अथवा लालू का ऑफर ज्यादा कारगर रहा और इन सबके बीच बीजेपी की बैटिंग कैसी रही…?