DELHI (APP) : बिहार में तख्ता पलट को लेकर बीजेपी नीतीश कुमार पर गुस्साई हुई है। उनके खिलाफ बयानों की बाढ़ आ गयी है। धरने पर धरने दिये जा रहे हैं। लेकिन जमीं पर ताकत दिख ही नहीं रही है। दरअसल, बिहार में महागठबंधन की सरकार धीरे-धीरे फुल फॉर्म में आने लगी है। नयी सरकार में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव ने सीएम और डिप्टी सीएम पद की शपथ ली थी। इसके पहले से ही बीजेपी नीतीश कुमार को ‘पलटूराम’ और ‘धोखेबाज’ कहने लगी है। वह विश्वासघात दिवस मना रही है। जिला स्तर पर 12 अगस्त को बीजेपी वालों ने धरना भी दिया। लेकिन, आंकड़ों में देखा जाए तो धरने में काफी कम संख्या में लोग पहुंचे। भागलपुर में तो गुटबाजी का भी असर देखा गया। इसी तरह, विधानसभा स्पीकर विजय सिन्हा के इलाके लखीसराय में धरनार्थियों की संख्या काफी कम रही। ऐसे में सियासी पंडित सवाल करते हैं कि इतने कमजोर ढंग से धरना देने से बीजेपी वाले कैसे नीतीश कुमार को धकिया पाएंगे ? कैसे उन्हें सत्ता से बाहर करेंगे ?

रअसल, बिहार में महागठबंधन की सरकार आते ही बीजेपी में बेचैनी जबर्दस्त ढंग से बढ़ गयी है। उनके सारे मंत्री अब भूतपूर्व हो गए हैं। यह वही बीजेपी है, जिसने सरकार गिरने के लगभग एक सप्ताह पहले बिहार के लगभग 200 विधानसभा क्षेत्रों सहित राजधानी पटना में अपनी शक्ति प्रदर्शन किया था। राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पटना में रोड शो कर यह बताया कि बीजेपी से बड़ी पार्टी कोई नहीं है। भाषण में भी कहा कि पूरे देश से सभी क्षेत्रीय दलों को खत्म कर देंगे। बीजेपी अकेली पार्टी रहेगी। इतना ही नहीं, बीजेपी के लगभग 750 डेलिगेट्स 200 विधानसभा क्षेत्रों में जाति के आधार पर गांवों में मीटिंग की। साथ ही सदस्यता अभियान चलाया। इसके बाद उसके नेता अपने कॉलर को उंचा कर ही रहे थे कि बिहार में जेडीयू के साथ बीजेपी की खटास अपने मुकाम की ओर पहुंच गयी और शक्ति प्रदर्शन के एक सप्ताह बाद ही बिहार में एनडीए की सरकार गिर गयी। नीतीश कुमार ने जबर्दस्त ढंग से बीजेपी को पटकनी दे दी। इसके बाद से ही बीजेपी खुलकर नीतीश कुमार के खिलाफ आ गयी है। जिस दिन सरकार गिरी। उसी दिन सबसे पहले केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे ने नीतीश कुमार पर हमला करते हुए उन्हें ‘पलटूराम’ बता दिया तो उसी शाम केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कह दिया कि नीतीश कुमार पर प्रधानमंत्री बनने का भूत सवार है। और तो और, उनके परम सियासी मित्र और 74 के आंदोलन में साथ रहने वाले सुशील मोदी ने तो यहां तक कह दिया कि नीतीश कुमार उपराष्ट्रपति बनना चाहते थे, लेकिन बीजेपी के लोगों ने भाव ही नहीं दिया। ऐसे में वे एनडीए से अलग होकर महागठबंधन में चले गए। बीजेपी के बाकी नेता भी नीतीश कुमार को धोखेबाज कहने में पीछे नहीं रह रहे हैं। 

लेकिन, सबसे बड़ा सवाल यह है कि केवल बोलने या मीडिया में दिख जाने से आप नीतीश के खिलाफ लंबी लड़ाई कैसे लड़ेंगे। कैसे उन्हें 2024 और 2025 में पटकनी देंगे। दरअसल, सियासी पंडित भी मंथन कर रहे हैं कि सरकार गिरने के सप्ताह भर पहले बिहार में शक्ति प्रदर्शन करने वाली बीजेपी सरजमीन पर इतना पिछड़ कैसे गयी ? जिलों में उनके धरना-प्रदर्शन भीड़ के मामले में इतना पीछे कैसे हो गए ? आंकड़े बताते हैं कि जिलों में नीतीश कुमार के खिलाफ दिए गए धरनों में कहीं 50-60 लोग थे, तो कहीं इसकी संख्या 80-90 रही। हां, एक-दो जिलों में कुछ अधिक संख्या में लोग शामिल हुए… ये जिले कोई और नहीं बल्कि गया और बक्सर हैं। गया टाउन के विधायक प्रेम कुमार हैं। वे नीतीश कुमार के कैबिनेट में कृषि मंत्री रहे हैं। गया में धरनार्थियों की संख्या लगभग 200 के आसपास थी, लेकिन सबसे चौंकाने वाले आंकड़े भागलपुर, लखीसराय, बेतिया, मुंगेर आदि इलाकों से आए हैं। इन जिलों की महत्ता इस बात से बढ़ जाती है कि भागलपुर अश्विनी चौबे का गृहक्षेत्र है, जबकि बेतिया का इलाका बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल और पूर्व उपमुख्यमंत्री रेणु देवी का है। भागलपुर में आयोजित धरना में शाहनवाज हुसैन मौजूद रहे थे। इसी तरह, मुंगेर पूर्व मंत्री सम्राट चौधरी का गृह जिला है और लखीसराय को तो आप जानते ही हैं कि वह विधानसभा क्षेत्र विजय कुमार सिन्हा का है और यह भी आप जानते हैं कि विजय कुमार सिन्हा के साथ ही सदन में नीतीश कुमार की जबर्दस्त भिड़ंत हुई थी। एनडीए सरकार के गिरने का मुख्य कारणों में इस भिड़ंत को भी गिना जाता है। 

सियासी पंडित कहते हैं कि नीतीश कुमार के खिलाफ यदि बीजेपी के दिग्गज नेताओं के इलाकों में ही यदि धरना भीड़ के मामले में पार्टी इतनी कमजोर रही तो बाकी जिलों का भी अंदाजा आप सहज ही लगा सकते हैं… सबसे पहले बात करते हैं भागलपुर की। भागलपुर शुरू से ही अश्विनी चौबे का क्षेत्र रहा है, लेकिन वे पिछले दो टर्म से बक्सर से सांसद बन रहे हैं। भागलपुर में उनका बेटा अपने समर्थकों के साथ शामिल नहीं हुए थे। बीजेपी की ओर से आयोजित धरना में मुश्किल से 70-55 लोग स्थल पर दिखे। उन्होंने यह भी कहा कि अमूमन सैकड़ों लोगों से घिरे रहने वाले बीजेपी के कद्दावर नेता व राष्ट्रीय प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन के काफिले में जितने लोग चलते हैं, उतने लोग भी धरना के दौरान शामिल नहीं दिखे और धरनार्थियों की संख्या उम्मीद से कम होने के पीछे बीजेपी में व्याप्त गुटबाजी का असर साफ दिखा। अश्विनी चौबे के समर्थक धरना से दूरी बनाते दिखे। वहीं महिला मोर्चा के कार्यकर्ता रक्षाबंधन का त्यौहार होने के कारण कार्यक्रम में नहीं दिखे। हालांकि, गया की तरह बक्सर में भी लगभग 200 लोग धरना में जुटे थे। वहां निवेदिता सिंह अपने दम पर भीड़ जुटाई थीं। 

लखीसराय में तो धरनार्थियों का आंकड़ा विजय सिन्हा के लिए काफी हास्यास्पद रहा। वहां भी आंकड़ा 60-65 की संख्या में नेता मौजूद रहे। मुंगेर में खुद पूर्व मंत्री सम्राट चौधरी धरना का नेतृत्व कर रहे थे, लेकिन 70-80 से ज्यादा लोग नहीं थे मुजफ्फरपुर में भी कमोबेश यही हाल रहा। यहां तो 4 बजे से दो घंटे पहले ही धरना खत्म हो गया था और लोगों की संख्या अर्धशतक से कुछ ही अधिक थी। जमुई में धरना कार्यक्रम में स्थानीय विधायक श्रेयसी सिंह अपने समर्थकों के साथ मौजूद रहीं। इसके बाद भी धरना में 100 से कम ही लोग शामिल हुए थे। 

बहरहाल, पॉलिटिकल एक्सपर्ट सवाल उठा रहे हैं कि यदि बीजेपी जमीन पर इतना कमजोर रहेगी, तो आने वाले दिनों में महागठगंधन और खासकर नीतीश कुमार से कैसे टकराएगी और उन्हें कैसे सबक सिखाएगी। आरजेडी को सत्ता से कैसे बाहर करेगी ? जबकि नीतीश कुमार की ओर से मोर्चा संभालने वाले जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने 2024 की चुनावी तस्वीर के आंकड़े बताने शुरू कर दिए हैं। उन्होंने कल भी दिल्ली में कहा कि इस समय बीजेपी के पूरे देश में महज 303 सांसद हैं और जादुई आंकड़ा 272 होता है। इस जादुई आंकड़ों से महज 30-31 अधिक, जबकि बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में बीजेपी के लगभग 40 सांसद हैं, जिन्हें क्षेत्रीय दलों की एकजुटता से 2024 में आसानी से हराया जा सकता है। इसे लेकर बीजेपी अभी से टेंशन है, किंतु पार्टी के लिए उससे भी बड़ी टेंशन कार्यक्रम में नेताओं व समर्थकों का नहीं जुटना है। 

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