
PATNA (RAJESH THAKUR) : दिल्ली चुनाव 2025 (Delhi Election 2025) का रिजल्ट आ गया। बीजेपी की नजर में ‘आप-दा’ टल गया। 27 साल के बाद भाजपा सत्ता में लौटी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सपना पूरा हुआ। उनके PM बनने के बाद पहली बार उनकी पार्टी को दिल्ली की सल्तनत मिली है। इस प्रचंड सफलता के बाद बीजेपी की नजर अब बिहार पर है। इसी साल बिहार में भी विधानसभा का चुनाव होना है। इसे लेकर सियासी गलियारे में सवाल भी किये जा रहे हैं कि दिल्ली चुनाव का बिहार में कितना असर होगा ? क्या बीजेपी अब अपने दम पर सत्ता में आएगी ? इन सवालों का जवाब तो सियासी पंडित ढूंढ़ रहे हैं, लेकिन इससे भी बड़ा सवाल यह है कि बिहार में केजरीवाल की राह पर चलने वाले सियासत का PK यानी प्रशांत किशोर अब क्या करेंगे ? उसी राह को अपनाएंगे अथवा अब वे नयी रणनीति बनाएंगे ?

दिल्ली की सल्तनत पर कब्जा जमाते हुए तीन टर्म मुख्यमंत्री रहने वाले आम आदमी पार्टी के संस्थापक व राष्ट्रीय अध्यक्ष अरविंद केजरीवाल आउट हो गये हैं। कभी 70 में से 67 सीट लाने वाली आप पार्टी को इस बार महज 22 सीटें आयी हैं। केजरीवाल सहित उनके लगभग सभी सिपहसलार हार गये। केवल निवर्तमान मुख्यमंत्री आतिशी की किस्मत ठीक निकली, हालांकि, इस जीत से उन्हें कोई फायदा नहीं मिलेगा। ज्यादा से ज्यादा नेता प्रतिपक्ष बन सकती हैं। वैसे सियासी पंडित यह भी मानते हैं कि दिल्ली और बिहार की राजनीति में काफी अंतर है। वहां बिहार और यूपी के वोटर एक हैं, जबकि बिहार में जाति सर्वोपरि है। ऐसे में प्रशांत किशोर के सामने केजरीवाल की हार ने एक नयी चुनौती खड़ी कर दी है। इस पर उन्हें मंथन करने की जरूरत है।
दरअसल, 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल का रणनीतिकार प्रशांत किशोर ही थे। उस चुनाव में भी आप को प्रचंड जीत मिली थी। 70 में से 62 सीटें आयी थीं। इसे लेकर अरविंद केजरीवाल के साथ ही प्रशांत किशोर की भी काफी प्रशंसा हुई थी। इसके बाद ही प्रशांत किशोर ने बिहार को अपना राजनीतिक कर्मभूमि भी बनाना शुरू कर दिया। अन्ना के आंदोलन से उपजे केजरीवाल की तरह ही प्रशांत किशोर ने भी आंदोलन की राह पकड़ी। गांधी की कर्मभूमि मोतिहारी से उन्होंने जनसुराज यात्रा शुरू की। इसके बाद अब वे छात्रों के BPSC से जुड़े मुद्दे सहित अन्य मांगों को लेकर सत्याग्रह आंदोलन शुरू किये हैं। हालांकि, इनका यह आंदोलन जनता के बीच बहुत अधिक सफल और प्रभावशाली नहीं हो पा रहा है।
अब यह संयोग है या प्रयोग, आनेवाले समय में पता चलेगा। लेकिन दोनों ही राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती पर अपनी-अपनी पार्टी का गठन कर कहीं न कहीं बापू को भुनाने की कोशिश की है। अरविंद केजरीवाल ने 2 अक्टूबर 2012 को आम आदमी पार्टी का गठन किया था। इसी तरह, प्रशांत किशोर ने उनसे ही प्रभावित होकर उसके ठीक 12 साल के बाद 2 अक्टूबर 2024 को अपनी पार्टी की नींव रखी। नाम दिया जनसुराज पार्टी नाम दिया। इन्होंने मंच पर बने महात्मा गांधी की तस्वीर के समक्ष घोषणा की कि हमारी सरकार आएगी तो बिहार शराब प्रतिबंध को वापस ले लेगी। बाद में इनके विरोधियों ने मुद्दा भी बनाया। यह अलग बात है कि केजरीवाल शराब घोटाले की वजह से जेल में सलाखों के पीछे पहुंच गये।


सियासी पंडितों की मानें तो प्रशांत किशोर ने जनसुराज यात्रा से बिहार पॉलिटिक्स में कूदे। जनसुराज पार्टी बनायी। BPSC मुद्दे को उन्होंने अपने हाथों में लेने की कोशिश भी की। इसमें उन्हें सफलता भी मिलती, लेकिन बीच में इन्होंने बिहार में उपचुनाव में किस्मत आजमा कर सब गड़बड़ कर दी। स्टैंडर्ड का पालन नहीं किया। प्रत्याशियों की पढ़ाई और डिग्री को लेकर भी इनकी भद पिट गयी। और तो और, किसी भी प्रत्याशी को सफलता नहीं मिली। एक को छोड़कर सभी की जमानत जब्त हो गयी। हालांकि, एक सीट पर बेशक राजद को नुकसान पहुंचाया। ये हर जाति के पढ़े-लिखे लोगों के बीच पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन कास्ट फैक्टर को तोड़ पाने में सफल नहीं हो पा रहे हैं। सियासी पंडित यह भी कहते हैं कि ब्राह्मण समाज से आनेवाले प्रशांत किशोर पर भूमिहार समाज के लोग सबसे अधिक भरोसा कर रहे हैं। दिल्ली चुनाव का रिजल्ट आने के बाद अब वह समाज बिहार विधानसभा चुनाव में भी भरोसा करे, इसकी कोई गारंटी नहीं है।
दूसरी ओर, जिस तरह दिल्ली में अरविंद केजरीवाल को बीजेपी ने काफी सधी चाल में घेरा है, उसी प्रकार बिहार में प्रशांत किशोर को विरोधी घेर रहे हैं, जबकि यहां चुनाव आने में अभी लगभग 6-7 माह का समय है। पिछले सप्ताह ही जदयू के मुख्य प्रवक्ता नीरज कुमार ने पार्टी कार्यालय में पोस्टर लगाकर प्रशांत किशोर पर बड़ा हमला किया था। उन्होंने कहा कि सच छुपेगा कब तक, लोकतंत्र की आड़ में कंपनी राज स्वीकार नहीं. कहां गया जनसुराज दिख रहा है सिर्फ धन का राज, जन सुराज के नाम पर सभी कंपनी खेल है। वे यहीं नहीं रूके। उन्होंने आगे अपने पोस्टर में लिखा कि किसका पैसा किसका मेल, गांधी के नाम पर धोखा, बिहार नहीं देगा ये मौका। राजनीति नहीं धंधा है, सुराज का फर्जी फंडा है। जन स्वराज या निजी स्वार्थ, जन स्वराज पार्टी का खजाना कौन भर रहा है। कहां गया जन स्वराज, दिख रहा है सिर्फ धन का राज।
जदयू प्रवक्ता नीरज कुमार ने यह भी कहा कि जन सुराज के प्रशांत किशोर यह दावा करते हैं 2 अक्टूबर 2024 को पार्टी का गठन किया है। लेकिन गठन पहले हो गया था। फिर जिस कोषाध्यक्ष का प्रशांत किशोर ने दावा-आपत्ति में नाम दिया, संगठन के ढांचे में कहीं दिखाई नहीं पड़ रहा है। जॉय ऑफ गिविंग ग्लोबल फाउंडेशन जो एक चैरिटेबल ट्रस्ट है, उसके माध्यम से जन सुराज पार्टी की फंडिंग हो रही है, तो वो जानना चाहते हैं कि कौन-कौन सी कंपनी फंडिंग कर रही है। साथ ही चैरिटेबल ट्रस्ट के जरिए राजनीतिक कार्यक्रम कैसे चला रहे हैं। बता दें कि राजद भी समय-समय पर प्रशांत किशोर को घेरते रहता है। बहरहाल, दिल्ली का चुनावी रिजल्ट ने बिहार में प्रशांत किशोर के समक्ष बड़ी चुनौती ला दी है। हालांकि कुछ लोग PK को बीजेपी की बी टीम मानती है। इसमें कितनी सच्चाई है, यह तो खुद वे ही बता सकते हैं। अपितु सियासी पंडित अब यह भी कहने लगे हैं कि प्रशांत किशोर को बिहार पॉलिटिक्स में जगह बनानी है और सफलता पानी है तो उन्हें अरविंद केजरीवाल की राह नहीं पकड़नी है, बल्कि नयी रणनीतियों के साथ नया रास्ता बनाना होगा।
