PATNA (SMR) : आज पूरे देश में भारतीय जनता पार्टी किस तरह के साम, दाम, दण्ड और भेद का उपयोग कर चुनाव जीत रही है, वह सबको पता है। महाराष्ट्र में क्या हुआ, इसे देश-दुनिया ने देखा। पॉलिटिकल एक्सपर्ट व युवा पत्रकार विवेकानंद सिंह कहते हैं, ऐसे में बिहार ने देशभर के विपक्ष को आज नयी ऊर्जा प्रदान की है। अगस्त क्रांति की वर्षगांठ पर सियासत ने एक बार फिर करवट ली। वे मानते हैं कि तेजस्वी यादव को चाहिए कि नीतीश कुमार से सीखते हुए सचेत होकर वे शासन करें। अब पढ़िए पूरा आलेख। यह उनके सोशल मीडिया से अक्षरशः लिया गया है। इसमें लेखक के निजी विचार हैं।
बिहार में 9 अगस्त, 2022 को जो कुछ हुआ, वह एक नैचरल जस्टिस की तरह है। इसे होना ही था। जिन लोगों की नजर में आज जनता के जनादेश का अपमान हुआ, वही लोग ऐसे ही एक मौके पर वर्ष 2017 में फूले नहीं समा रहे थे। दरअसल, नीतीश कुमार जी ने आज अपनी 2017 की गलती को करेक्ट किया है। वह भी बिना किसी विशेष शोर-शराबे के। नीतीश कुमार की यह राजनीतिक देहभाषा अनुकरणीय है।
आज पूरे देश में भारतीय जनता पार्टी किस तरह के साम, दाम, दण्ड और भेद का उपयोग कर चुनाव जीत रही है, वह सबको पता है। अधिकांश संवैधानिक इकाइयां इनके कब्जे में आ चुकी हैं। चुनाव जीतते ही या किसी तरह सरकार बना लेने से ही भाजपा अपने गुनाहों से मुक्त हो जाती है। फिर न कोई पत्रकार उनसे महंगाई पर सवाल करता है, न ही कोई बेरोजगारी का प्रश्न उठाता है। डांवाडोल हो रही अर्थव्यवस्था को कोरोना काल और यूक्रेन वार से उपजी परिस्थिति बता दिया जाता है, जबकि कुछ पूंजीपति अमीर पर अमीर हो रहे हैं और बाकी जनता की आय या तो कमी है या ठहर गयी है। पब्लिक सेक्टर की चीजें बेची जा रही हैं, ताकि आरक्षण कोई इशू ही न रहे। सांप्रदायिकता की आग भड़काने में तो अधिकांश टीवी मीडिया पार्टनर इन क्राइम है। सत्ताधारी दल के नेता उधर से गरज कर जो बोल देते हैं, उसे ही मीडिया के मूर्ति लोग चुपचाप सही मान लेते हैं।
बिहार ने देशभर के विपक्ष को आज नयी ऊर्जा प्रदान की है। मुझे खुशी हुई कि तेजस्वी यादव ने अपने चाचा नीतीश कुमार से भी काफी राजनीति सीखी है। अब इस राजनीति को सीखने की जरूरत राजद के लाखों कार्यकर्ताओं को भी है। तेजस्वी यादव के पास बिहार की राजनीति में निर्बाध शासन करने के लिए स्वर्णिम भविष्य है। उस भविष्य को साकार होने देना है तो बिहार की यादव बिरादरी के अति उत्साही युवाओं व अपने इलाके में दबंग कहलाने वाले लोगों को कुर्मी बिरादरी से सीख लेने की जरूरत है। क्योंकि, अब राजनीति की दिशा बहुत बदल चुकी है। हर हाथ में मोबाइल है, लोग ग्लोबल हो चुके हैं।
आप देखिये, नीतीश कुमार बीते 16-17 साल से बिहार के मुख्यमन्त्री हैं, लेकिन आपने यह खबर शायद ही कभी सुनी होगी कि कहीं कुर्मियों ने दबंगई की हो, थानेदार को केस न लेने दिया हो या राइफल लहराते हुए सड़क पर फायरिंग की हो। ऐसा नहीं है कि कुर्मियों के पास राइफल नहीं हैं या उसे खरीदने के पैसे नहीं हैं। यही नहीं उनकी आबादी में कम होने के बावजूद बिहार में पिछड़ी जाति में सर्वाधिक डॉक्टर/अधिकारी कुर्मी बिरादरी के होंगे, लेकिन वे आपको कभी देह-हाथ तिरगां के चलते नहीं दिखेंगे। अपवाद एकाध हो सकते हैं। यही वजह रही कि नीतीश जी के शासन से और उनकी जाति के अधिकांश कार्यकर्ता से अति पिछड़ों और दलितों को व्यवहारिक मसले पर कभी कोई नाराजगी नहीं रही है। गोदी मीडिया भी इस मसले पर नीतीश कुमार को घेर पाने में असफल रहती है।
वहीं, राजद के मसले पर मीडिया को बहुत से ऐसे मसाले उपलब्ध हो जाते हैं। सिर्फ मसाले ही नहीं मिलते, बल्कि अति पिछड़े और दलितों के बड़े तबके को अति उत्साही राजद के कोर समर्थकों से भय लगता है। ऐसे में आपके खिलाफ खड़ी मीडिया को आपको घेरने के दर्जनों मौके मिल जाते हैं। चूंकि, फिर से कल बिहार में महागठबंधन की सरकार बन रही है। ऐसे में मेरा मानना है कि राजद के कोर समर्थकों को मौजूदा दौर की राजनीति में खुद सर्वप्रिय बनाने पर काम करना चाहिए। अगर आप ऐसा कर पाये तो आने वाले कई दशकों तक बिहार में समाजवाद की नीव को कोई हिला भी नहीं पायेगा।
यह याद रखने की जरूरत है कि कानून के शासन से मजबूत कोई शासन नहीं होता। कानून का सम्मान, सबको अवश्य करना चाहिए। यदि कोई कानून तोड़ता है, तो बिना किसी पक्षपात के उसे सजा मिलनी चाहिए।