DELHI / PATNA (MR) : दिवाली (Diwali) के ठीक पहले होती है छोटी दिवाली (Chhoti Diwali)। यानी हर साल धनतेरस (Dhanteras) और दीपावली के बीच नरक चतुर्दशी (Narak Chaturdashi) का पर्व मनाया जाता है। इसे नरक चौदस, छोटी दिवाली और रूप चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है। पहले नरक चौदस की पूजा करने की परंपरा है। इसके बाद दिवाली मनायी जाती है और लक्ष्मी पूजन होता है। दिवाली के दिन ही बिहार के मिथिलांचल समेत पश्चिम बंगाल में काली पूजा का विधान है। ऐसे में यहां जानते हैं कि नरक चतुर्दशी से क्या है और इनसे जुड़ी 5 मान्यताएं क्या हैं ?
1 यमराज का किया जाता है पूजन : दीपों का महापर्व है दिवाली। यह यम पंचक के तीसरे दिन होती है। इसके ठीक एक दिन पहले नरक चतुर्दशी मनायी जाती है। इसे कई नामों से जाना जाता है। यम दीप, जम दीप, छोटी दिवाली, नरक चौदस और रूप चतुर्दशी भी इसे कहते हैं। पंडितों की मानें तो नरक चौदस के दिन यमराज की पूजा करने की परंपरा है। इस दिन यमराज की पूजा करने से उस परिवार में रहने वाले सभी सदस्यों की लंबी आयु की प्रार्थना की जाती है। माना जाता है कि इससे अकाल मृत्यु का खतरा टल जाता है और परिवार के सदस्यों की आयु बढ़ती है, इसलिए लोग इस दिन यमराज की पूजा करते हैं और उनसे परिवार पर आने वाले संकटों को टालने की प्रार्थना करते हैं।
2 यम दीप जलाने की है परंपरा : नरक चतुर्दशी पर यमराज को खुश किया जाता है। इसके लिए इस दिन यम दीप जलाने की परंपरा है। गांव में लोग इसे अपभ्रंश में जम दीप भी कहते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यम दीप को घर के मुख्य द्वार की चौखट पर रखा जाता है। नरक चतुर्दशी के दिन घर के मुख्य द्वार की चौखट पर जलने वाले इस दीपक में दो बत्तियां क्रॉस करके इस तरह लगाई जाती है कि उनके मुख चारों दिशाओं में रहता है। इसे चौमुखी दीया भी कहा जाता है, लेकिन इस दीपक को एक तरफ से जलाया जाता है और इसे मुख्य द्वार की चौखट पर इस तरह से रखा जाता कि जलती हुई बाती दक्षिण दिशा की ओर रहती है। दक्षिण दिशा में यमराज और सभी पूर्वजों का निवास माना गया है, इसलिए दीपक दक्षिण दिशा की ओर जलाकर यमराज को समर्पित किया जाता है। बहुत से शहरों और गांवों में एक मुंह वाला दीया देने की परंपरा है।
3 नरक चतुर्दशी पर ऐसे करें पूजा : अब बात करते हैं नरक चतुर्दशी की पूजा विधि की। भगवान यमराज के पूजन की भी अनूठी मान्यता है। कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के सूर्योदय की सुबह दातून से मुंह धोने की परंपरा है। दातून करने और स्नान करने के बीच में निम्नलिखित श्लोक का जाप करने की भी मान्यता है। यानी नहाने के पहले श्लोक का जाप करना चाहिए। पहले आपको यह बताते हैं कि श्लोक क्या है। ‘यमलोक दर्शनाभव कामो अहमभ्यं स्नानं करिष्ये’ यह श्लोक है, जिसे नहाने के पहले जाप किया जाता है। इस दौरान शरीर में तिल के तेल आदि का उबटन लगाया जाता है, फिर हल से उखाड़ी मिट्टी का ढेला माथे पर लगाकर स्नान किया जाता है। आज भी हल की परंपरा गांवों में ही है। वहीं सूर्योदय से पूर्व नहाना आयुर्वेद की दृष्टि से अति उत्तम माना गया है। जो ऐसा हर दिन नहीं कर पाते, उन्हें सूर्योदय के बाद अवश्य स्नान करना चाहिए। वहीं पूरे कार्तिक माह में सूर्योदय से पहले स्नान करने की परंपरा है।
4 यम दीपक की करें निगरानी : नरक चतुर्दशी के दिन शाम में यम दीपक निकालने की परंपरा को तो आपने जान लिया। आपने यह भी जान लिया कि कहीं चौमुखी दीया तो कहीं एक मुख वाला दीया रखा जाता है। यम दीपक जलाना परिवार के लिए शुभ माना जाता है। लेकिन इसके साथ यह भी मान्यता है कि जब तक यम दीपक जलता रहे, तब तक इसकी निगरानी होती रहनी चाहिए। दरअसल, जब तक दीपक जले, इसकी निगरानी करते रहने की भी अनूठी परंपरा है और दीपक के विदा होने के बाद इसे घर के अंदर किसी अच्छे स्थान पर रख देना चाहिए। कहा जाता है कि यम इस दीपक को जलाने से यमलोक जाने से मुक्ति मिलती है। पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि यम दीपक रखने के बाद यमराज से परिवार के लोगों की दीर्घायु और उनके जीवन की समस्याओं का अंत करने की लोगों को प्रार्थना करनी चाहिए।
5 यह है पौराणिक कथा : नरक चतुर्दशी को लेकर पौराणिक कथा भी है। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार यमराज ने दूतों से पूछा कि क्या तुम्हें प्राणियों के प्राण हरण करते समय किसी पर दया नहीं आती है। यमराज के इस प्रश्न पर पहले यमदूत संकोच में पड़ते हुए मना कर दिया, परंतु यमराज के दोबारा आग्रह करने पर दूतों ने एक घटना का उल्लेख करते हुए बताया कि हेम नामक राजा की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया। ज्योतिषियों ने जन्म के बाद नक्षत्र गणना की और बताया कि यह बालक जब भी विवाह करेगा, उसके चार दिन बाद ही इसकी मृत्यु हो जाएगी। यह जानने के बाद राजा ने बालक को यमुना तट की एक गुफा में ब्रह्मचारी के रूप में रखकर उसका लालन-पालन किया। एक दिन उसी तट के किनारे महाराज हंस की युवा पुत्री यमुना तट पर घूम रही थी। राजकुमारी को देखते ही राजकुमार उस पर मोहित हो गया और उन्होंने गंधर्व विवाह कर लिया। फिर क्या, ज्योतिष गणना के अनुसार विवाह के चार दिन बाद ही राजकुमार की मृत्यु हो गई। इसे देखकर राजकुमारी बिलख-बिलख कर विलाप करने लगी। यमदूतों ने बताया- नवविवाहिता का करुण विलाप सुनकर हमारा हृदय भी कांप उठा था। तब एक यमदूत ने यमराज से अकाल मृत्यु से बचने का उपाय पूछाl इस पर यमराज ने नरक चतुर्दशी के दिन अकाल मृत्यु से छुटकारा पाने के लिए व्यक्ति को पूजन और दीपदान विधि-विधान के साथ करना चाहिए। इसी कारण नरक चतुर्दशी पर यम के नाम का दीप जलाने और दान करने की परंपरा है।