PATNA (SMR) : दुनिया क्या है? भूल भुलैया? रहस्यमय, जटिल या बेहद सहज! दरअसल, इसे देखने,जानने, निकलने वाला जहां से चलता है, वह अंततः वहीं पहुँच जाता है, जहां से यात्रा शुरू की। यात्रा जन्म से शुरू होती है और मृत्यु पर खत्म हो जाती है। तब एक सवाल होता है, जीवन क्या है? सो, लाख सवालों का एक ही सवाल है कि इस जगत में जीवन क्या है तथा इसे कैसे जीया जाए ? अध्यात्म से लबरेज इस आलेख को बीजेपी के वरीय नेता सुरेश रुंगटा ने लिखा है। इसमें उनके निजी विचार हैं। अब पढ़िए लेख के आगे का भाग।
जीवन को जानने-समझने-समझाने के प्रयास अनंतकाल से चल रहें हैं। इसे समझने की अनेक चिंतन पद्धतियाँ और परंपराएँ विकसित हुई हैं, फिर भी यहाँ कोई ऐसा ठिकाना नहीं है, जहां पहुँच कर पूछ लिया जाए और जीवन के संबंध में समुचित उत्तर पाया जा सके। इस सवाल के जवाब में वेद, वेदांत और कई उपनिषद लिखे गए। कृष्ण ने स्वयं गीता में इसे बताया है।
स्पष्ट व संक्षिप्त रूप से जन्म और मृत्यु तक का सफर ही जीवन है। सभी लोग जीवन को अपने-अपने नजरिए से देखते हैं। कोई कहता है कि जीवन एक दौड़ है। कोई कहता है कि जीवन एक यात्रा है। वस्तुतः जिंदगी पानी के बुलबुले की तरह है, जो कभी भी ख़त्म हो सकती है। अच्छी जिंदगी कैसे जीएं, यह सवाल हर इंसान के मन में अवश्य उठता है। इसे ठीक से समझने से पहले हमें यह जानना जरूरी है कि जीवन क्या है? कुछ लोग यह मानते हैं कि जीवन एक कांटों भरा सफर है, जिसमें दुख, दर्द, गम और परेशानी ही परेशानी है, लेकिन अधिकांश लोगों का कहना है कि जिंदगी एक सुहाना सफर है, जिसमें कुछ चटख रंग खुशियों और प्रेम के हैं तो कुछ हल्के रंग गिले-शिकवों के भी हैं, मगर अधिकांश रंग खूबसूरत एहसासों और बेहतरीन अनुवभों का सुनहरा पिटारा है।
हर सुबह, हर दिन मिलता है हमें जीवन रूपी उपहार। हालाँकि, इसके लिए हम इंतजार नहीं करते, फिर भी यह अपने आप हमें मिलते रहता है। इसी कारण शायद हम इसका मोल नहीं समझ पाते हैं। हमसे अधिकांश लोगों में इस उपहार को पाने का उल्लास भी नहीं होता, पर यदि हम इस उपहार को प्यार से ग्रहण कर इसका हर दिन सदुपयोग करते हैं तो जीवन बिलकुल बदल जाएगा? जिंदगी में सरल बनकर रहिए,अपने देश व समाज के लिए जीएँ। जीवन को आनंदोत्सव बना दें। प्रति क्षण जागरूक रहना है, ध्यान रहे इसे कहीं हम अपने कर्मों से गँवा न दें।
भारतीय संस्कृति में कर्म को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। एक ही माता-पिता की जुड़वां संतान एक जैसे परिवेश-वातावरण एवं एक समान संसाधनों के उपयोग के बाद भी उनकी स्थिति अलग-अलग देखी जाती है। एक स्वस्थ-दूसरा बीमार, एक सुंदर-दूसरा कुरूप, एक दयालु, दूसरा क्रूर। इन बातों से यह स्पष्ट होता है कि इन सबके पीछे व्यक्ति के अपने जन्म-जन्मांतर के कर्म होते हैं। कर्म के कारण ही व्यक्ति सुख व दुख भोगता है।
भारतीय दर्शन में कर्म के स्वरूप एवं वैविध्य का विस्तृत विवेचन है। वेदांत दर्शन में कर्म को माया या अविद्या कहा गया है। सांख्य दर्शन में इसे क्लेश माना गया है। बौद्ध दर्शन में कर्म को वासना की संज्ञा दी गई है। न्याय-वैशेषिक में कर्म से अदृष्ट एवं मीमांसा में अपूर्व कहा गया है। प्रायः सभी दर्शनों में जगत वैचित्र्य का कारण कर्म को माना गया है। कर्मवाद के सिद्धांत के अनुसार, जो प्राणी जैसा कर्म करता है। उसको उसका फल अवश्य मिलता है। कर्म जड़ होने के कारण न तो स्वयं को जानता है और न उससे मिलने वाले फल को। वृहदारण्यक उपनिषद के अनुसार, मनुष्य अपने कर्मों एवं आचरणों से अपने भविष्य को बनाता या बिगाड़ता। जो जैसा आचरण करते हैं, वे वैसे ही हो जाते हैं।
संसार से आवागमन को रोकने के लिए कर्म को ब्रह्म में अर्पित करते रहना होगा, यानी सब कर्म परमेश्वर को समर्पित करके आसक्ति रहित होकर व्यवहार करते रहे। ऐसा करने से कर्त्ता का भाव विलुप्त हो, वह व्यक्ति निर्लिप्त हो जाता है। जैसे तालाब में खिला हुआ कमल का पुष्प कीचड़ से निर्लिप्त रहता है ।इस प्रकार कर्म बंधन से मुक्ति ही मोक्ष है।