PATNA (DHRUV GUPT)। भारतीय उपमहाद्वीप में अभी दो-दो आजादियों के जश्न चल रहे हैं। चौदह अगस्त को पाकिस्तान की यौमे आजादी है और पंद्रह अगस्त को भारत का स्वतंत्रता दिवस। ये दोनों आजादियां धर्म के आधार पर देश के विभाजन, असंख्य निर्दोष लोगों की लाशों, यातनाओं और बर्बादियों की बुनियाद पर खड़ी हुई थीं।
आजादी के छिहत्तर साल लंबे सफर में इन दोनों देशों ने मुख्य रूप से जो हासिल किया है, वह है- भूख, महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, सामाजिक-आर्थिक और लैंगिक असमानता, मजहबी कट्टरता, हथियारों की अंधी दौड़ और भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्थाएं। दोनों देशों में हर स्तर पर प्रगतिशीलता से रूढ़िवादिता की उल्टी यात्रा चल रही है।
उधर पाकिस्तान अपनी जन्मजात धार्मिक कट्टरता, उग्र भारत विरोध, इस्लाम के प्रसार के नाम पर चल रहे आतंक के दर्जनों कारखानों और सेना की तुलना में कमजोर राजनीतिक व्यवस्था की वजह से आज दुनिया का सबसे खतरनाक मुल्क बन चुका है। उसकी गृह नीति मुल्ले-मौलवी तय करते हैं और विदेश नीति सेना। उधार की अर्थनीति की हालत पूरी दुनिया देख रही है। अपने आंतरिक अंतर्विरोधों और प्रादेशिक असंतुलन के कारण पांच दशक पहले वह दो टुकड़ों में बंटा और अभी कई और टुकड़ों में बंटने के कगार पर खड़ा है।
दूसरी तरफ सर्वधर्मसमभाव, बसुधैव कुटुम्बकम और उदारता की गौरवशाली परंपरा वाले अपने भारत में हालात अभी उतने बुरे तो नहीं हैं, लेकिन कट्टरपंथियों की लगातार कोशिशों से यह भी पाकिस्तान के रास्ते पर चल निकला है। भिन्न आस्थाओं के बीच परस्पर सम्मान तथा वैचारिक सहिष्णुता की परंपरा नष्ट हो रही है। धर्मों और जातियों के बीच का अविश्वास लगातार गहरा हुआ है। भौगोलिक तौर पर हम एक देश जरूर हैं, लेकिन भावनात्मक तौर पर कई राष्ट्रों में विभाजित हो चुके हैं।
हिंदुत्व का गौरव लौटाने के नाम पर सक्रिय हिंदू संगठन और कट्टर वहाबी विचारधारा के प्रसार में लगी मुस्लिम संस्थाएं देश को मध्यकाल में वापस ले जाने की भूमिका तैयार कर रही हैं। आज के वैज्ञानिक युग में भी हम भारतीय लोग धर्म, जाति, मंदिर-मस्जिद, मुल्लों-साधुओं, पुराणों और शरीयत में अपना भविष्य खोज रहे हैं। प्रतिगामिता की हमारी यह उल्टी यात्रा हमें कहां ले जाएगी, इसका अनुमान लगाना कठिन नहीं है। (लेखक ध्रुव गुप्त रिटायर्ड आईपीएस हैं और इस लेख में उनके निजी विचार हैं।)