DELHI (SMR) : बिहार समेत पूरे देश में वट सावित्री पूजा मनायी जाती है। इसे लेकर विवाहिता माह भर पहले से ही तैयारी शुरू कर देती हैं। इसके पूजन विधि से लेकर शुभ मुहूर्त तक का अलग लेखा-जोखा होता है। लेकिन, यहां पर हम वट सावित्री पूजा से जुड़ी कथा बता रहे हैं। यह कथा सदियों से चली आ रही है और कहा जाता है कि इसे सावित्री पूजा के दिन हर विवाहित को अवश्य सुननी चाहिए।
पौराणिक कथा के अनुसार मद्रदेश में अश्वपति नामक धर्मात्मा राजा हुए थे। उन्हें कोई बच्चा नहीं था। संतान प्राप्ति के लिए राजा ने यज्ञ करवाया। इसके शुभ फल से कुछ समय बाद उनके घर एक कन्या ने जन्म लिया। उसका नाम सावित्री रखा गया। जब सावित्री विवाह योग्य हुई तो उन्होंने द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को अपने पतिरूप में वरण किया। सत्यवान के पिता भी राजा थे, परंतु उनका राज-पाट छिन गया था। इसकी वजह से वे लोग बहुत ही गरीबी में जीवन जी रहे थे। सत्यवान के माता-पिता की आंखों की रोशनी चली गई थी। सत्यवान जंगल से लकड़ी काटकर लाते और उन्हें बेचकर जैसे-तैसे अपना गुजारा करते थे।
जब सावित्री और सत्यवान के विवाह की बात चली, तब नारद मुनि ने सावित्री के पिता राजा अश्वपति को बताया कि सत्यवान अल्पायु हैं और विवाह के एक वर्ष पश्चात ही उनकी मृत्यु हो जाएगी। इसके बाद सावित्री के पिता नें उन्हें समझाने के बहुत प्रयास किए, लेकिन सावित्री यह सब जानने के बाद भी अपने निर्णय पर अडिग रही। अंततः सावित्री और सत्यवान का विवाह हो गया। इसके बाद सावित्री सास-ससुर और पति की सेवा में लग गई।
समय बीतता गया और वह दिन भी आ गया, जिसकी नारद मुनि ने भविष्यवाणी की थी। उसी दिन सावित्री भी सत्यवान के साथ जंगल गई। जंगल में सत्यवान लकड़ी काटने के लिए जैसे ही पेड़ पर चढ़ने लगा कि उसके सिर में असहनीय पीड़ा होने लगी। तब वह सावित्री की गोद में सिर रखकर लेट गया। कुछ ही समय में उनके समक्ष अनेक दूतों के साथ स्वयं यमराज आ गए। यमराज सत्यवान की आत्मा को लेकर दक्षिण दिशा की ओर चलने लगे, पतिव्रता सावित्री भी उनके पीछे चलने लगी।
आगे जाकर यमराज ने सावित्री से कहा, ‘हे पतिव्रता नारी! जहां तक मनुष्य साथ दे सकता है, तुमने अपने पति का साथ दे दिया, अब तुम लौट जाओ’। इस पर सावित्री ने कहा, ‘जहां तक मेरे पति जाएंगे, वहां तक मुझे जाना चाहिए। यही सनातन सत्य है’। यमराज सावित्री की वाणी सुनकर प्रसन्न हुए और उनसे तीन वर मांगने को कहा। सावित्री ने कहा, ‘मेरे सास-ससुर अंधे हैं, उन्हें नेत्र-ज्योति दें’ यमराज ने ‘तथास्तु’ कहकर उसे लौट जाने को कहा और आगे बढ़ने लगे, किंतु सावित्री यम के पीछे ही चलती रही। यमराज ने प्रसन्न होकर पुन: वर मांगने को कहा। सावित्री ने वर मांगा, ‘मेरे ससुर का खोया हुआ राज्य उन्हें वापस मिल जाए।
इसके बाद सावित्री ने यमदेव से वर मांगा, ‘मैं सत्यवान के सौ पुत्रों की मां बनना चाहती हूं। कृपा कर आप मुझे यह वरदान दें’ सावित्री की पति-भक्ति से प्रसन्न हो सावित्री से तथास्तु कहा, जिसके बाद सावित्री न कहा कि मेरे पति के प्राण तो आप लेकर जा रहे हैं तो आपके पुत्र प्राप्ति का वरदान कैसे पूर्ण होगा। तब यमदेव ने अंतिम वरदान को देते हुए सत्यवान की जीवात्मा को पाश से मुक्त कर दिया। सावित्री पुनः उसी वट वृक्ष के पास लौटी तो उन्होंने पाया कि वट वृक्ष के नीचे पड़े सत्यवान के मृत शरीर में जीव का संचार हो रहा है। कुछ देर में सत्यवान उठकर बैठ गया। उधर, सत्यवान के माता-पिता की आंखें भी ठीक हो गईं और उनका खोया हुआ राज्य भी वापस मिल गया। तभी से उस वटवृक्ष की भी पूजा होती है।