PATNA (SMR) : इंसान की खामियां अजीब होती हैं। वह खुद से ताकतवर लोगों पर लोकतांत्रिक होने का दबाव बनाता है, मगर कमजोर लोगों को किसी तानाशाह की तरह दबा कर रखना चाहता है। ताजा प्रकरण यह है। इस पत्र के लिए RJD के राज्यसभा सांसद मनोज झा को मैथिली वाले कोस रहे हैं। गालियां दे रहे हैं। इस अभियान में हर तरह के लोग शामिल हैं। मगर इस प्रस्ताव में गलत क्या है? पढ़िये वरीय पत्रकार पुष्यमित्र की कलम से…
क्या अंगिका और बज्जिका लोकभाषा नहीं है? आप क्यों चाहते हैं कि दुनिया उसके अलग अस्तित्व को स्वीकार नहीं करे। आपका हिस्सा मानती रहे। क्या आपका व्यवहार उस हिंदी की तरह नहीं है, जो आपको स्वतंत्र भाषा मानने से इनकार करती है।
यह भाषा का साम्राज्यवाद है। जो हिंदी में भी है और आपमें भी आ रहा है। उसके मुताबिक भाषा अलग है और बोली अलग है। भाषा बड़ी है और बोलियां छोटी। बोलियों को भाषाओं की सरपरस्ती में रहना चाहिए। अगर आपका भी यही नजरिया है तो आपसे सहमत नहीं हूं।
आप मानते हैं कि अंगिका और बज्जिका आपकी बोलियां हैं। मगर अंगिका और बज्जिका वाले नहीं मानते। आप तर्क देते हैं। वे भी देते हैं। मगर मसला तर्क का नहीं है। सहमति का है। वे सहमत नहीं हैं और आप जबरदस्ती करना चाह रहे हैं। पहले उन्हें तो क्न्वींस कीजिए। अगर नहीं कर पा रहे तो यह तो विशुद्ध उपनिवेशवादी नजरिया है।
और छोड़िए भाषा-बोली का झगड़ा। अगर इन दोनों को लैंगुएज कोड मिल गया तो आपका क्या बिगडे़गा? इतना ही न कि ये फिर स्वतंत्र अस्तित्व का दावा करने लगेंगे। वे वैसे भी करते हैं। और अगर आप इन्हें अपनी बोली मानते हैं, तब भी इनके लिए लैंगुएज कोड की मांग का समर्थन कीजिए। ये प्रेम से ही आपके साथ आयेंगे। झगड़े से तो बिल्कुल नहीं। मनोज झा की मांग बिल्कुल जायज है।
(नोट : यह आलेख वरीय पत्रकार पुष्यमित्र के फेसबुक वाल से लिया गया है, इसमें उनके निजी विचार हैं।)