PATNA (RAJESH THAKUR) : बिहार में एक बार फिर सियासी हलचल तेज है। पटना से दिल्ली तक के पॉलिटिकल कॉरिडोर में बहस तेज हो गयी है। इसे कई एंगलों से देखा जा रहा है। केंद्रीय मंत्री अमित शाह का बिहार के भावी मुख्यमंत्री को लेकर दिये गये बयान से लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बीमार पड़ने और भाजपा कोर कमिटी की दिल्ली में बुलायी गयी बैठक को इसी से जोड़ा जा रहा है। ऐसे में सियासी गलियारे में चर्चा तेज है कि क्या बिहार में फिर से कोई ‘सियासी खेला’ होगा ? हालांकि, इससे NDA के कुछ दिग्गज नेताओं की धड़कनें तेज हो गयी हैं, वहीं बीजेपी के ‘कुछ’ नेताओं के मन में लड्डू भी खूब फूटने लगे हैं। वैसे नेता ‘आपदा में भी अवसर’ देख रहे हैं। अपनी किस्मत में टिकट की संभावना तलाशने लगे हैं। गोटी सेट की राह ढूंढ़ने में लग गए हैं।
दरअसल, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बीमार हैं। बिजनेस कनेक्ट जैसे उस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में नहीं जा सके, जिसमें 1 लाख 80 हजार करोड़ के निवेश पर सहमति बनी। MoU पर साइन हुआ। खास बात कि इस कार्यक्रम में देश के ख्यातिलब्ध उद्योगपति अडानी के भतीजे प्रणव अडानी भी मौजूद रहे। देश के और भी कई दिग्गज उद्योगपतियों ने शिरकत की। लेकिन बिहार सरकार के मुखिया नीतीश कुमार के नहीं पहुंचने पर उद्योगपतियों के साथ ही यहां के उद्योग मंत्री नीतीश मिश्रा को भी मायूसी हुई। सियासी पंडितों की मानें तो यह बात किसी को पच नहीं रही है कि वे इतने बीमार हो गए कि बिहार बिजनेस कनेक्ट में नहीं जा सके। वहीं केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के बयान ने तो पूरे माहौल को ही गरमा दिया है।
पहले बताते हैं कि केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने बिहार के भावी मुख्यमंत्री को लेकर क्या बोले। दरअसल, अमित शाह से एक टीवी चैनल के कार्यक्रम में एकंर ने पूछा कि क्या नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार में चुनाव लड़ेंगे? इस पर अमित शाह ने कहा, ‘देखिये इस तरह का मंच पार्टी के डिसिजन लेने के लिए या बताने के लिए नहीं होता है। मैं पार्टी का डिसिप्लिन कार्यकर्ता हूं। पार्टी पार्लियामेंट्री बोर्ड की बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा होगी और फैसला लिया जाएगा।’ इस बयान के पीछे एक्सपर्ट महाराष्ट्र का ‘शिंदे प्रकरण’ को देखने लगे हैं। राजनीतिक विश्लेषक रवि उपाध्याय ने ‘ईटीवी भारत’ से बात करते हुए कहा कि बिहार एनडीए में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। बिजनेस कनेक्ट में मुख्यमंत्री के नहीं जाने से संदेश सकारात्मक नहीं गया है। दिल्ली में कोर कमेटी की बैठक बुलायी गयी है। बिजनेस कनेक्ट में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नहीं आना उनकी नाराजगी के रूप में भी देखा जा रहा है।
हालांकि, इस मुद्दे पर NDA के सभी घटक दल वेट एंड वाच की भूमिका में हैं। कोई कुछ नहीं बोल रहा है, लेकिन इस स्थिति-परिस्थिति से NDA के हाशिये पर गए कुछ नेताओं के मन में लड्डू जरूर फूटने लगे हैं। लड्डू क्यों फूट रहे हैं, इसके लिए आपको 2015 और 2020 के चुनाव का विश्लेषण करना होगा। इन्हीं दोनों चुनावों में टिकट बंटवारे से पता चल जाएगा कि कौन लोग अंदर ही अंदर लड्डू फूटने वाले जमात में शामिल हैं। उनके अंदर की मनोस्थिति का सहज अंदाजा लगा सकते हैं। बता दें कि 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार महागठबंधन के साथ थे, जबकि 2020 के चुनाव में वे फिर से NDA के साथ आ गए थे।
2015 के चुनाव में जब नीतीश महागठबंधन के साथ थे तो भाजपा ने बिहार में 243 में से 160 सीटों पर चुनाव लड़ा था। बाकी सीटों में से चिराग पासवान की पार्टी लोजपा (तब पार्टी में बंटवारा नहीं हुआ था) को 40 सीटें मिली थीं। इसी तरह, उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी को 23 और जीतनराम मांझी की पार्टी हम को 20 सीटें दी गयी थीं। उस समय कुशवाहा की पार्टी का नाम राष्ट्रीय लोक समता पार्टी था, अब राष्ट्रीय लोक मोर्चा हो गया है। 2020 के चुनाव में स्थिति पलट गयी थी। 2017 में ही खेला हो गया था। नीतीश कुमार पलट कर NDA में आ गए थे। 2020 के चुनाव में वे पूरी तरह NDA के साथ थे। ऐसे में 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी को महज 121 सीटें दी गयी थीं। लेकिन बीजेपी ने फाइट किया केवल 112 सीटों पर ही। उसने 9 सीटें सहयोगी दल VIP को दी थी। उस चुनाव में जदयू को 122 सीटें मिली थीं, जिसमें से 7 सीटें मांझी की पार्टी को दी गयी थी।
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बीजेपी ने 2015 में 160 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जबकि 2020 के चुनाव ये सीटें घटकर 112 हो गयीं। यानी नीतीश कुमार के NDA में आने से सीधे 48 सीटों का नुकसान हो गया। मतलब साफ है कि 48 नेताओं का टिकट कट गया। ये नेता हाशिये पर चले गए। इसमें अधिसंख्य हारने वाले थे तो कुछ सीटिंग विधायक भी थे। यदि 2025 के चुनाव में सच में ‘खेला’ होता है तो बेशक कम से कम 48 सीटों का फायदा बीजेपी को जरूर होगा। जिन क्षेत्रों में ये सीटें जाएंगी, वहां के नेताओं के मन में लड्डू तो फूटेंगे ही। इस बहती गंगा में चिराग पासवान, जीतनराम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टियों को भी फायदा होगा। लड्डू तो उनके मन में भी फूटेंगे। हां, जदयू कहीं भी रहे, उसकी सीटों में बहुत इजाफा होने वाला नहीं है। लेकिन यह किसी को नहीं भूलना चाहिए कि पटना में ही एक चुनावी कार्यक्रम में अमित शाह ने यह भी कहा था कि नीतीश कुमार जिधर रहेंगे, सरकार उसकी बनेगी।