चाक से फर्निश तक पर मजबूत पकड़ रखते हैं पद्मश्री ब्रह्मदेव राम पंडित, संघर्ष से सफलता की गाथा है इन पर लिखी किताब

PATNA (MR) : पटना स्थित बिहार म्यूजियम के प्रशाल में शनिवार को अशोक कुमार सिन्हा लिखित बायोग्राफी ‘पद्मश्री ब्रह्मदेव राम पंडित भोरमबाग से भयंदर’ का विमोचन हुआ। इस पुस्तक का प्रकाशन बिहार म्यूजियम ने किया है। खास बात कि पुस्तक के विमोचन के मौके पर पद्मश्री ब्रह्मदेव राम पंडित खुद मौजूद रहे। इसका विमोचन पद्मश्री ब्रह्मदेव राम पंडित समेत देश के पहले सिनोग्राफर प‌द्मभूषण राजीव सेठी, बिहार विधान परिषद् के उपसभापति प्रो. (डॉ.) रामवचन राय, पद्मश्री प्रो. श्याम शर्मा बिहार म्यूजियम के महानिदेशक अंजनी कुमार सिंह तथा अपर महानिदेशक अशोक कुमार सिन्हा ने संयुक्त रूप से किया।

पुस्तक का परिचय कराते हुए लेखक अशोक सिन्हा ने कहा कि पंडितजी बिहार को गौरव दिलाने के लिए प्रयासरत हैं और 76 वर्ष में भी सक्रिय हैं। अंजनी बाबू के निर्देश पर यह पुस्तक आयी है। इस मुकाम पर आने में उन्हें क्या मशक्कत करना पड़ा, इस पुस्तक में समेटने का प्रयास किया है। पंडित जी बिहार के नवादा स्थित भोरमबाग के रहने वाले हैं और वर्तमान में मुंबई के भयंदर में रहते हैं। 12 वर्ष की उम्र में ही घर से निकल गए तथा लगभग 50 वर्षों तक अपने राज्य से दूर रहे। बिहार से इनका कनेक्शन पूरी तरह कट गया था, किंतु अपने राज्य के प्रति इनका स्नेह बना हुआ था। दरअसल, नयी दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला में ये महाराष्ट्र मंडप की ओर से आए थे। मन में बिहार के प्रति प्रेम था, सो ये ‘बिहार मंडप’ में आए थे। इनका बिहार मंडप आना जीवन का टर्निंग पॉइंट रहा। ये फिर से अपने जड़ से जुड़ गए।

अशोक सिन्हा बताते हैं कि हमारे निमंत्रण पर बिहार दिवस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए पटना आए और यह भी सुखद संयोग रहा कि इसी क्रम में इन्हें ‘पद्मश्री’ देने की घोषणा हुई। यहीं से पद्मश्री प्राप्त करने दिल्ली गए। पंडितजी इस उम्र में भी सीखते हैं। बहू और बेटे से भी सीखते हैं। सीखने की ललक 76 साल की उम्र में भी है। उन्होंने कहा कि किसी भी कामयाब व्यक्ति की कामयाबी एक दिन की उपलब्धि नहीं होती। उसकी लंबी तपस्या का प्रतिफल होता है। सफलता किन पथरीली और दुर्गम राहों पर से गुजरते हुए हासिल होती है, यह जानना किसी के लिए भी प्रेरक तो होता ही है, रोचक भी होता है। इस पुस्तक के माध्यम से जब आप ब्रह्मदेव राम पंडित जी के जीवन के विभिन्न पड़ावों से गुजरेंगे तो सहज ही आपको अनुभूति होगी कि कामयाबी हासिल करने के लिए जीवन में संयम, संघर्ष के साथ निरंतरता और अनुशासन भी जरूरी है।

बिहार विधान परिषद् के उप सभापति प्रो. (डॉ.) रामवचन राय ने कहा कि पंडित जी ने यह साबित कर दिया कि जो मिट्टी से जुड़ा होता है वह शिखर को चूमता है। मैं लोकनायक जेपी को धन्यवाद देता हूं कि उन्होंने इस हीरा को तब परख लिया था, जब वह 12 साल के थे। जैसे जेपी ने ब्रह्मदेव जी की काबिलियत को परखा, उसी तरह लोहिया जी ने एमएफ हुसैन की प्रतिभा को पहचाना और उसे लेकर हैदराबाद और फिर पेरिस भेजा। आपको आश्चर्य होगा कि वह किसी मोटर गैरेज में साधारण पेंटर थे, लेकिन उनकी उंगली की हरकत से उन्होंने पकड़ लिया कि यह व्यक्ति खास है। तो जेपी और लोहिया वैसे नेता थे जो प्रतिभा की परख रखते थे। पंडितजी धरोहर हैं। ऐसे धरोहरों को संरक्षित करने की जरूरत है।

बिहार संग्रहालय के महानिदेशक अंजनी कुमार सिंह ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि लेखक अशोक कुमार सिन्हा जी को इस अनूठी पुस्तक के लिए धन्यवाद। पंडित जी से मेरा पुराना संबंध रहा है। मैं दो व्यक्ति से बेहद प्रभावित हूं। एक हिम्मत शाह और दूसरे ब्रह्मदेव राम पंडित जी। पंडित जी इस उम्र में जितनी ऊर्जा रखते हैं वह अद्भुत है। पंडित जी तीन ही काम करते हैं। भोजन, नींद और सिर्फ काम। गप्पबाज लोग इन्हें पसंद नहीं है। इस उम्र में भी नयी चीजें तलाशते हैं और प्रयोग करते हैं। सोखोदेवरा के जिस आश्रम से जुड़े, उसे इन्होंने न सिर्फ अपनी कलाकृति दी बल्कि अपनी तरफ से 10 लाख रुपए भी दिए। ऐसा कौन होगा? तो ऐसे हैं हमारे पंडित जी।

भारत के पहले सिनोग्राफर, आर्ट क्यूरेटर और सुप्रसिद्ध डिजाइनर राजीव सेठी ने कहा कि पंडित जी की कलाकृतियों की प्रदर्शनी देश की चर्चित आर्ट गैलरियों, जैसे सिमरोजा आर्ट गैलरी, जहांगीर आर्ट गैलरी, त्रिवेणी कला संगम आदि में लग चुकी है और देश के तमाम विख्यात कला संग्राहकों जैसे इब्राहिम अल्काजी, अमाल अल्लाना, फिरोजा गोदरेज, जल आर्या, एन सुले, ओपी जैन, अनुराधा रविंद्रनाथ, संगीता जिंदल, डॉ. कुब्बा आदि के संग्रह में इनकी कृतियाँ सुसज्जित हैं। इस बिहार संग्रहालय को नया रंग रूप देने वाले और पंडित जी को जन्मभूमि को फिर से कर्मभूमि बनाने के लिए प्रेरित करने वाले अंजनी जी को धन्यवाद देता हूं। आज जहां लोग अपनी पारंपरिक कला से जुदा हो रहे हैं, वहीं पंडित जी ने पारंपरिक कला को स्टूडियो कला में तब्दील करने का जो हौसला दिखाया, उसे सलाम करता हूं। सोच तो कोई भी सकता है, लेकिन परिकल्पना को मूर्त रूप देने के लिए हुनर चाहिए। वह हुनर मैंने पंडित जी में पाया और उनसे सीखा भी।

पद्मश्री प्रो. श्याम शर्मा ने कहा कि इस पुस्तक में कलाकार के मुंबई में स्थान बनाने की संघर्ष गाथा है। पुस्तक की विशेषता है कि यह एक कलाकार की संघर्ष गाथा है वह भी सहज, सरल शब्दों में। ब्रह्मदेव जी का चाक से लेकर फर्निश तक मजबूत पकड़ है, उस ब्रह्मदेव जी को नमन। उन्होंने रंगों और बनावट का जो प्रयोग किया है, वह अद्वितीय है। उन्होंने स्वयं को समकालीन कलाकार के समकक्ष खड़ा किया है। उनका कलापक्ष अन्यत्र दुर्लभ है। उनका सौंदर्य बोध और चिंतन अद्वितीय है। इनके शिल्प कलात्मक है। मिट्टी से अद्भुत जुड़ाव है। भगवान बुद्ध की स्पर्श मुद्रा कहती है कि अपनी मिट्टी से जुड़ो। पंडित जी ने इस संदेश को आत्मसात किया। परम से परे ही परंपरा है। उन्होंने कुछ नया जोड़ कर परंपरा को समृद्ध किया है। इनके शिल्पों में नवीनता भी है और परंपरा भी है। यह पुस्तक न सिर्फ पठनीय है, बल्कि संग्रहणीय भी है।

प‌द्मश्री ब्रह्मदेव राम पंडित ने पुस्तक लेखन के लिए लेखक अशोक कुमार सिन्हा को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि लोकार्पित पुस्तक “पद्मश्री ब्रहादेव राम पंडित भोरमबाग से भयंदर” में लेखक ने मेरे जीवन के तमाम महत्वपूर्ण पहलुओं को रेखांकित करने का प्रयास किया है। मैं खुद के बारे में नहीं बोलूंगा। लेखक ने मेरे बारे में सबकुछ बता दिया है। मैं अपनी कला के बारे में बोलूंगा। पहले मैं लाल मिट्टी से काम करता था, अब सेरामिक में काम शुरू कर दिया। न मैं एक्सपेरिमेंट से भागता हूं और न काम करने में पीछे रहता हूं। जरूरत पड़ता है तो आधी रात में भी काम करने लगता हूं। मेहनत का ही परिणाम है कि आज हम जो भी बनाते हैं सब बिक जाता है। मंच संचालन सुप्रसिद्ध रंगकर्मी अनीश अंकुर ने किया।