PATNA (RAJESH THAKUR) : तिरहुत स्नातक उपचुनाव में NDA औंधे मुंह गिरा। रिजल्ट आए लगभग एक पखवारा हो गया है लेकिन जीत-हार पर मंथन अब भी जारी है। इस उपचुनाव में जातीय समीकरण बिखर कर रह गया। नेता हार गया। एक शिक्षक की जीत हुई। घालमेल के इस नए समीकरण में सबसे बड़ी हार ‘ब्राह्मण फैक्टर’ की हुई है। लगभग 22 वर्षों से स्नातक सीट (MLC) पर एकछत्र राज करने वाले देवेशचंद्र ठाकुर की बिलकुल नहीं चली। उनकी अपील वहां के वोटरों ने ठंडे बस्ते में डाल दिया। पॉलिटिकल एक्सपर्ट की मानें तो यह न तो NDA की हार है और न ही जदयू की और न ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की; यह तो पूरी तरह सीतामढ़ी के सांसद देवेशचंद्र ठाकुर की हार है। बता दें कि उन्हीं के सांसद चुने जाने के बाद तिरहुत स्नातक सीट खाली हुई थी।
आपको याद होगा, तिरहुत स्नातक सीट उपचुनाव के लिए 5 दिसंबर को मतदान हुआ था। इसकी पूर्व संध्या पर सांसद देवेशचंद्र ठाकुर ने NDA के JDU प्रत्याशी अभिषेक झा की जीत के लिए अपने फेसबुक पर पोस्ट किया। उन्होंने लिखा- ‘प्रिय तिरहुत स्नातक निर्वाचन क्षेत्र के सम्मानित मतदाता, सादर प्रणाम। आप सभी से निवेदन है कि कल (5 दिसंबर को) होने वाले तिरहुत स्नातक निर्वाचन क्षेत्र के उपचुनाव में एनडीए समर्थित जदयू प्रत्याशी अभिषेक झा को अपनी प्रथम वरीयता का वोट देकर विजयी बनाने की कृपा करें।’ वे यहीं पर नहीं रुके। उन्होंने जनता से अपील करते हुए आगे लिखा- ‘आप सभी के आशीर्वाद से मेरे सीतामढ़ी लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से निर्वाचित होने के बाद हो रहे इस चुनाव में इंजीनियर अभिषेक झा अत्यंत ही काबिल उम्मीदवार हैं, जो तिरहुत के विकास को नए आयाम तक ले जाएंगे। मैं तिरहुत स्नातक निर्वाचन क्षेत्र सभी चार जिलों मुजफ्फरपुर, वैशाली, सीतामढ़ी और शिवहर के सम्मानित मतदाताओं को भरोसा दिलाता हूं कि आपके साथ जैसे पिछले 22 वर्षों से भावनात्मक रूप में जुड़ा हुआ था, वैसा ही सदैव तन और मन से जुड़ा रहूंगा। जय स्नातक, जय तिरहुत, जय बिहार, जय भारत।’
तो आपने पढ़ा कि सांसद देवेशचंद्र ठाकुर ने किस कदर तिरहुत स्नातक क्षेत्र के वोटरों से ‘इमोशनल अपील’ की थी। उन्होंने NDA की ओर से JDU प्रत्याशी अभिषेक झा को ‘अत्यंत काबिल’ बताया था। उन्होंने अपने 22 वर्षों की सेवा का ‘भरोसा’ भी दिया था कि अभिषेक झा के रूप में हम खुद उसी तरह तन-मन से जुड़ा रहूंगा, जैसा कि अब तक जुड़ा हुआ था। इसके बाद भी चारों जिलों के स्नातक वोटरों ने उनके इस ‘इमोशनल रिक्वेस्ट’ पर किसी तरह का ध्यान नहीं दिया और न ही वे डबल इंजन सरकार के ‘मायाजाल’ में फंसे। निर्दलीय प्रत्याशी वंशीधर ब्रजवासी के ‘प्रेम और संघर्ष’ ने चार टर्म से एकछत्र ब्राह्मण राज की हवा निकाल दी। वे यह भी भूल गए कि देवेश चंद्र ठाकुर पिछले 22 वर्षों से तन और मन ही नहीं ‘धन’ से भी सेवा करते आ रहे हैं। जनता ने अपने निर्दलीय प्रत्याशी को इतना वोट दे दिया, जितना महागठबंधन और NDA जोड़कर भी नहीं जुटा पाए। इस जीत ने इलाके के सारे समीकरण ध्वस्त कर दिए। जबकि, मल्लाह जाति से आने वाले ब्रजवासी के पास न तो पैसे की हनक थी और न ही सत्ता की ताकत। इसके बाद भी वोटरों ने कास्ट और कैश से इतर जाकर ब्रजवासी को ‘सत्ता का वासी’ बना दिया। बता दें कि इस उपचुनाव में जनसुराज दूसरे तो महागठबंधन की ओर से राजद तीसरे नंबर पर रहा। वहीं JDU चौथे नंबर पर चला गया। यह भी बता दें कि यहां से देवेश चंद्र ठाकुर JDU के टिकट पर भी पिछले चार टर्म से जीतते आ रहे थे।
ब्राह्मण फैक्टर फेल के ये 5 बड़े कारण
- झा जी पर भरोसा नहीं : तिरहुत स्नातक सीट पर दो दशक से भी अधिक समय से देवेश चंद्र ठाकुर जीतते आ रहे थे। वे घर-परिवार की तरह लोगों से जुड़ गए थे। वे क्षेत्र के लोगों के लिए किसी अभिभावक से कम नहीं थे। उनके दुख-सुख में खड़ा रहते थे। वोटरों को देवेश चंद्र ठाकुर की तरह अभिषेक झा पर भरोसा नहीं हुआ। वे लोगों से उनकी तरह जुड़ नहीं पाए। ऐसे में सांसद की अपील भी काम नहीं आयी।
- सांसद का विवादित बयान : 2024 के लोकसभा चुनाव में देवेश चंद्र ठाकुर NDA की ओर से JDU उम्मीदवार थे। चुनाव में उन्हें काफी मेहनत करनी पड़ी। दरअसल, उन्होंने पार्टी लाइन से हटकर लोगों की मदद की थी। जब वे MLC नहीं थे तब भी और जब MLC बने तब भी। लेकिन MLC चुनाव की तरह MP चुनाव में वोट नहीं मिले। इससे नाराज होकर उन्होंने MP बनने के बाद कुछ तबकों को लेकर विवादित बयान दे दिया। हालांकि बाद में उन्होंने सफाई भी दी और कहा कि उनके बयान को मीडिया ने नहीं समझा।
- पाठक के खिलाफ जोर का गुस्सा : IAS केके पाठक का नाम आपलोग भूले नहीं होंगे। तब केके पाठक शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव थे। उस दौरान वंशीधर ब्रजवासी नियोजित शिक्षक थे। ब्रजवासी शिक्षक संघ के कार्यों में काफी रूचि लेते थे। इसकी वजह से उनका केके पाठक से पंगा हो गया। बाद में उन्हें बर्खास्त कर दिया गया। इससे पूरा शिक्षक समाज पाठक से नाराज हो गए। उनके खिलाफ गुस्स्सा ने लोगों को ब्रजवासी की तरफ मूव करा दिया और रिजल्ट आपके सामने है। JDU उम्मीदवार चार नंबर पर चले गए।
- ब्राह्मण समाज से ऊब गए थे वोटर : पिछले लगातार 22 वर्षों से एक ही जाति का चेहरा सामने था, वह थे खुद देवेश चंद्र ठाकुर। उनकी छवि लोगों के जेहन में दौड़ते रहती थी। लेकिन जातीय गणना सर्वे आने के बाद से ही लोग अपने-अपने नेताओं के खेमे में शिफ्ट होने लगे हैं। इसका असर MP चुनाव की तरह MLC चुनाव में भी देखने को मिला। बाकी कसर ब्राह्मण उम्मीदवार को मिले टिकट ने पूरा कर दिया। JDU उम्मीदवार अभिषेक झा को वोटर देवेश चंद्र ठाकुर के उत्तराधिकारी के रूप में स्वीकार नहीं कर सके।
- सरकार से जबरदस्त नाराजगी : बिहार में भी गिरते-पड़ते डबल इंजन की सरकार बन ही गयी। इसी साल के शुरुआती माह में महागठबंधन की सरकार गिरी और NDA की सरकार बनी। नेताओं को लगा कि इसका लाभ स्नातक चुनाव में भी मिलेगा। लेकिन हो गया उल्टा। लोगों ने सरकार के खिलाफ अपना गुस्सा उतार दिया। NDA उम्मीदवार इस चुनाव में बुरी तरह हार गया।