PATNA (MR) : बिहार में शिक्षा विभाग एकदम थेथरे हो गया है। वह एक बार फिर शिक्षा विभाग अपनी करतूतों की वजह से सुर्खियों में है। कहीं समय पर वेतन नहीं मिल रहा है। कहीं ठीक से पढ़ाई नहीं हो रही है। किसी स्कूल में पर्याप्त संख्या में शिक्षक नहीं हैं। कहीं शिक्षक मिड डे मील को मैनेज करने में लगे हैं। संभव है कि अब कुछ दिनों के बाद सरकारी स्कूलों के शिक्षक जातियों को गिनने में भी लग जाएं। लेकिन, बीच-बीच में शिक्षकों के ऐसे-ऐसे मामले सामने आ जाते हैं, जिससे अधिकारियों को भी डांट सुननी पड़ती है ।
ताजा मामला वैशाली जिला से जुड़ा हुआ है। वहां 30 प्रखंड शिक्षकों को चार सालों से सैलरी नहीं मिलने का मामला है। इसे लेकर पटना हाईकोर्ट काफी गुस्से में है। हाईकोर्ट ने तो शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव के ही वेतन रोक देने को कहा है। इतना ही नहीं, सियासी गलियारे में भी शिक्षा विभाग की किरकिरी हो रही है। उस पर कोई विपक्षी पार्टी अंगुली नहीं उठा रही है, बल्कि सत्ता में शामिल सहयोगी दल बीजेपी ने ही सरकार को आईना दिखाया है। बीजेपी ने तो यहां तक कह दिया है कि शिक्षा विभाग किसी और के पास नहीं, बल्कि जेडीयू के पास ही है।
दरअसल, बिहार की मीडिया में शिक्षा विभाग को लेकर 22 जून को दो खबरें एक साथ आयीं। पहली खबर यह थी कि वैशाली जिले में 30 शिक्षकों को चार वर्षों से वेतन ही नहीं मिला है। उन्हें घर-परिवार चलाने में प्रॉब्लम हो रही है। दूसरी खबर यह आयी कि वित्तीय वर्ष 2022-23 में समग्र शिक्षा अभियान योजना के तहत तैनात शिक्षकों के वेतन के लिए 4541 करोड़ रुपये की स्वीकृति शिक्षा विभाग ने दी है। इनमें 3774 करोड़ करे तत्काल जारी करने का भी आदेश दिया गया है। इन राशि से राज्य के 2 लाख 64 हजार 620 शिक्षकों को अप्रैल से जून तक के वेतन भुगतान किया जाएगा।
पहली वाली खबर यानी शिक्षकों को चार साल से वेतन नहीं मिलने पर पटना हाईकोर्ट एकदम गरम है और काफी गुस्से में है। हाईकोर्ट ने वित्त विभाग को दिए गए अपने आदेश में कहा, शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव समेत जिला के सीनियर शिक्षा पदाधिकारियों के वेतन भुगतान पर अगले आदेश तक रोक लगाएं। इस मामले की सुनवाई जस्टिस संजीव प्रकाश शर्मा के कोर्ट में हुई। उमेश कुमार सुमन व अन्य की याचिकाओं पर इस मामले की सुनवाई की गई।
दरअसल, पटना हाईकोर्ट के पास पिछले साल नवंबर में ही शिक्षा विभाग को आदेश दिया था कि नियुक्ति होने के बाद वेतन पर योग्यता को लेकर रोक लगाना अनुचित है। योग्यता पर सवाल उठाने के बजाए शिक्षकों को सेवा के दौरान ही अपनी योग्यता को अपग्रेड करने का मौका देना चाहिए। इस दिशा में हाईकोर्ट ने विभाग को ठोस कदम उठाने का भी निर्देश दिया था। इसके बाद भी शिक्षा विभाग सोया रहा। विभाग ने यह भी नहीं सोचा कि उन शिक्षकों के घरों का चूल्हा-चौका कैसे चल रहा होगा ? कैसे बच्चों का लालन- पालन हो रहा होगा ?
आपको पहले यह बता दें कि पूरा मामला क्या है। यह पूरा मामला वैशाली जिले के 30 प्रखंड शिक्षकों का है । उन्हें पिछले चार साल से वेतन नहीं मिला है… उन शिक्षकों की नियुक्ति 2018 में हुई थी। जबकि, इसकी वैकेंसी 2008 में ही आयी थी। जिला शिक्षक प्राधिकार के आदेश पर नियुक्त हुए शिक्षकों से लगातार काम भी लिये जा रहे हैं। इसके बाद भी उन शिक्षकों को वेतन नहीं दिया जा रहा है। पटना हाईकोर्ट ने छह माह पहले ही विसंगतियों को दूर कर वेतन देने को कहा था। इसके बाद भी शिक्षा विभाग उनकी योग्यता पर सवाल उठाते हुए वेतन पर रोक लगाए रखा। शिक्षा विभाग के इसी रवैये पर पटना हाईकोर्ट ने नाराजगी जताते हुए विभाग के अफसरों के ही वेतन पर रोक लगाने का आदेश दिया। इस मामले पर अगली सुनवाई 11 जुलाई, 2022 को होगी।
यह तो हो गया कोर्ट का मामला, लेकिन सवाल तो शिक्षा विभाग से ही किया जाएगा। ऐसी नियुक्ति का क्या फायदा, जब वेतन ही नहीं मिले। जहां तक शिक्षकों की योग्यता का सवाल है तो उस समय अधिकारी क्या कर रहे थे, जब इन शिक्षकों की नियुक्ति हो रही थी ? वे इनके डॉक्यूमेंट्स क्यों नहीं देखे थे ? एक तो वैकेंसी आयी 2008 में, और इस वैकेंसी के आलोक में 10 साल के बाद नियुक्ति हुई। ऐसे में सवाल तो यह भी उठेगा कि एक तो 10 साल के बाद नियुक्ति हुई, उपर से योग्यता भी सही से नहीं। तो फिर नियुक्ति कराने वाले अधिकारी क्या कर रहे थे। इसमें उन अभ्यर्थियों का क्या दोष ? ज्वाइनिंग के समय ही अभ्यर्थियों की योग्यता नहीं देखने वाले अधिकारियों पर क्या कार्रवाई होगी ?
यदि आपने कल ही आयी दूसरी खबर पर ध्यान दिये होइएगा तो पता चल गया होगा कि अप्रैल से जून तक के वेतन की राशि एक साथ जारी की गई है। ये वेतन 2 लाख 64 हजार 620 शिक्षकों को मिलेगा। और अभी जून का महीना चल रहा है। इसका मतलब साफ है कि उन शिक्षकों को भी पिछले दो माह से वेतन नहीं मिला है। अप्रैल और मई इंतजार में ही कट गया। यह अलग बात है कि इन दो माह में कोई बड़ा त्योहार नहीं गुजरा है, लेकिन बाकी खर्च तो हैं ही। जबकि महंगाई चरम पर है। हर माह किचन का बजट बिगड़ता रहता है। ऐसे में वेतन यदि समय पर नहीं मिले, किसी को चार साल से वेतन नहीं मिले, किसी को दो-तीन माह देर से मिले तो इससे होने वाली परेशानी के लिए आखिर कौन दोषी है ?
शिक्षा विभाग पर पटना हाईकोर्ट ही नहीं, अब तो सत्ता में बैठे दल भी आंख दिखाने लगे हैं। जब यह रिपोर्ट लिखी जा रही थी, तो बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल अपनी ही सरकार को निशाना बना रहे थे। बेतिया में आयोजित एक कार्यक्रम में वे स्पेशली जेडीयू को टारगेट कर रहे थे। वे यह भी कह रहे थे कि शिक्षा विभाग जेडीयू के पास ही है। बता दें कि बिहार में शिक्षा विभाग के मंत्री विजय कुमार चौधरी हैं। वे JDU कोटे से मंत्री बने हैं और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के काफी नजदीकी हैं। इसका मतलब क्लियर है कि बीजेपी की ओर से शिक्षा मंत्री विजय चौधरी को टारगेट के पीछे कुछ और वजह हो सकती है। संजय जायसवाल ने यह भी कह दिया, ‘बिहार में जेडीयू स्नातक के सेशन को रेगुलर कराए… जेडीयू को चाहिए कि स्टूडेंट्स तीन साल में ग्रेजुएट पूरा कर लें।’ वे यहीं पर नहीं रुके। उन्होंने कहा, जब जेडीयू के लोग शिक्षा को लेकर सवाल उठाते हैं तो हमें हंसी आती है। जब जेडीयू के पास ही शिक्षा विभाग है तो वे लोग सवाल किससे करते हैं। हालांकि, अब यह भी सियासी मामला हो गया और जेडीयू के उपेंद्र कुशवाहा और नीरज कुमार ने संजय जायसवाल पर सीधा हमला किया है, जबकि शिक्षा मंत्री ने भी खुद सफाई दी है ।
बहरहाल, वेतन नहीं मिलने के मामले भी पटना हाईकोर्ट की नाराजगी से शिक्षा विभाग की किरकिरी हो रही है। एजेकशनल एक्सपर्ट की मानें तो ऐसा ही मामला पिछले दिनों भी आया था, तब अप्रशिक्षित प्रारंभिक शिक्षकों को वेतन नहीं मिल रहा था। यानी वहां शिक्षकों के अनट्रेंड होने की वजह से वेतन रुका था । उन शिक्षकों को भी 3 साल से वेतन नहीं मिला था। और आपको जानकर आश्चर्य होगा कि उन शिक्षकों को भी वेतन भुगतान पटना हाईकोर्ट के आदेश पर ही दिया गया था। इतना ही नहीं, सूत्रों की मानें तो ज्वाइनिंग करने वाले नए शिक्षकों को भी पहला वेतन पाने में छह से सात माह लग जाते हैं। देरी होने के पीछे कागजी प्रक्रिया को दोषी ठहराया जाता है। जनता दरबार में मुख्यमंत्री कार्यक्रम में भी शिक्षा विभाग से जुड़ी समस्याएं भी हमेशा आती रहती हैं। ऐसे में इन सब त्रुटियों पर शिक्षा विभाग को गंभीरता से पहल करने की जरूरत है, ताकि विभाग की किरकिरी भविष्य में नहीं हो।