PATNA (SMR) : ‘झटहा। चरवाही का शब्द है। भैंस चराने के दौरान आम या जामुन झाड़ने के लिए पेड़ पर झटहा फेंकते थे। उसकी चोट निशाने पर लगी तो फल नीचे। झटहा को आप ‘मिनी लाठी’ कह सकते हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मंगलवार 28 जून को वही झटहा बीजेपी पर फेंका और पार्टी औंधे मुंह पर सतह पर आ गयी…’ दरअसल, बिहार के संसदीय इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ, कि सत्ता में शामिल मुख्य पार्टी के ही विधायक गायब हो गए। गायब भी नहीं हुए, बल्कि बहिष्कार करो। वरिष्ठ संसदीय पत्रकार वीरेंद्र यादव भी मौके पर मौजूद थ। उन्होंने इस पर गहराई से लिखा है। यह आलेख उन्हीं के फेसबुक वाल से लिया गया है। अब पढ़िये पूरा आलेख :
बिहार विधानसभा में आज 28 जून को जो कुछ हो रहा था, यह सत्ता और विपक्ष किसी को भी समझ में नहीं आ रहा था। थोड़ी देर के लिए वे सब भौंचक थे। आखिर ये सब हो क्या रहा है। JDU विधायक कुछ समय के लिए संसदीय कार्यमंत्री श्रवण कुमार के कमरे में ‘नजरबंद’ कर दिये गये थे। मंत्री शीला मंडल और सुशील कुमार को सदन से श्रवण कुमार के चैंबर में बुला लिया गया था।
मंगलवार को हम करीब 12 बजे विधान सभा पहुंचे तो सदन की घंटी बज रही थी। स्पीकर चैंबर के सामने विधायकों का जमावड़ा लगा हुआ था। पता चला कि अंदर में बैठक चल रही है। हम विपक्षी लॉबी में पहुंचे तो विधायकों का मजमा लगा हुआ था। थोड़ी देर में स्पीकर चैंबर से निकलकर नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव लॉबी में आये। स्पीकर से मिलकर लौटे नेता तमतमा रहे थे। तेजस्वी यादव ने सदस्यों को सदन में जाने का निर्देश देते हुए कहा कि कार्यवाही का बहिष्कार करना है। इसके बाद तेजस्वी अपने चैंबर में गये और विधायक वेल में पहुंच गये। हम भी प्रेस दीर्घा में पहुंचे। विपक्षी सदस्यों के हंगामे के बावजूद स्पीकर विधायी कार्य करवाने के बाद कार्यवाही को दो बजे तक के लिए स्थगित कर दिया।
दोपहर दो बजे तक सदन का माहौल बहुत कुछ बदल गया था। बीजेपी और जदयू का आपसी विवाद पार्टी कार्यालयों से निकलकर सदन में पहुंच गया था। उधर, विपक्षी सदस्यों की बैठक कर तेजस्वी यादव ने नयी रणनीति पर विमर्श किया। दो बजे से पांच मिनट पहले सदन की घंटी बज उठी। हम भी प्रेस दीर्घा में पहुंचे। विपक्षी सीट सन्नाटा पड़ा हुआ था। सदन में सिर्फ बीजेपी के सदस्य प्रवेश कर रहे थे। उनकी संख्या गिनी जा रही थी। सतरह, अठारह, उन्नीस, …. चौबीस, पच्चीस। कोरम के लिए 25 विधायकों का होना आवश्यक था। पचीस की संख्या पूरा होने के बाद स्पीकार सदन में आये। इन 25 लोगों में जदयू के दो मंत्री भी शामिल थे। 8-10 मिनट बाद वे वहां से खिसक लिये। शायद वे सूचना के अभाव में पहुंच गये थे।
स्पीकर ने उत्कृष्ट विधायक और विधानसभा पर विमर्श के लिए प्रस्ताव रखने का आग्रह संजय सरावगी से किया। उन्होंने इस पर लंबा-चौड़ा भाषण दिया। भाषण पूरा होते-होते बीजेपी विधायकों की संख्या 35-40 तक पहुंच गयी थी। इस बीच हम सत्ता पक्ष की लॉबी में गये तो जदयू के कोई सदस्य नहीं थे। इसके बाद श्रवण कुमार के कमरे के पास पहुंचे तो पता चला कि सभी विधायक यहीं बैठे हैं। हालांकि, स्वयं श्रवण कुमार मौजूद नहीं थे। सदन से जदयू की अनुपस्थिति को लेकर मीडिया का पारा चढ़ने लगा था। सरकार के भविष्य को लेकर सवाल खड़े होने लगे थे। उधर, विपक्षी लॉबी में विधायक भी जदयू के रवैये से हतप्रभ थे।
विधायकों की अनुपस्थिति के बीच लोजपा रिटर्न जदयू विधायक राज कुमार सिंह ने सदन में जाकर कोरम का सवाल उठाया, लेकिन बीजेपी के ‘मॉनीटर’ जनक सिंह ने उनके दावे को खारिज कर दिया। हालांकि, बाद में राजकुमार सिंह के दावे को आधार बनाकर स्पीकर ने सदन की कार्यवाही को बुधवार तक के लिए स्थगित कर दिया। इसके साथ ही स्पीकर ने अप्रत्यक्ष रूप से जदयू विधायकों की अनुपस्थिति को दुर्भाग्यपूर्ण और दुखद बताया।
राजनीतिक गलियारे में चर्चा के अनुसार, जलवायु परिवर्तन और उत्कृष्ट विधायक जैसे विषयों पर सदन में चर्चा को लेकर जदयू खेमा नाखुश था। सोमवार को विपक्षी दलों के हंगामे के कारण जलवायु परिवर्तन विषय पर चर्चा नहीं हो सकी थी, लेकिन मंगलवार को भोजनावकाश के बाद विपक्ष सदन में गया ही नहीं। सरकार को समर्थन दे रही भाजपा के आधे सदस्य ही मुश्किल बहस के दौरान मौजूद थे, जबकि असली सत्तारूढ़ दल जदयू ने ही सदन का बहिष्कार कर दिया। माना जा रहा है कि सदन की कार्यवाही का बहिष्कार कर नीतीश कुमार ने भाजपा को संदेश दे दिया है कि स्पीकर की व्यवस्था से वे खुश नहीं हैं।
भारत के संसदीय इतिहास में पहली बार हुआ है, जब सत्तारूढ दल ने ही सदन की कार्यवाही का बहिष्कार कर दिया। इससे इतना तय हो गया है कि बीजेपी और जदयू की लड़ाई अब सदन तक पहुंच गयी है, लेकिन इस लड़ाई की परिणति सरकार गिरने या बनने के रूप में नहीं होने जा रही है, इसलिए विपक्ष को इस ‘मथफुटव्वल’ से खुश नहीं होना चाहिए।