Book Review : मुसाफिर कैफे की कहानियों में नयापन है, सभी कहानियां थोड़ा हटकर; समीक्षा का अपना अंदाज

CENTRAL DESK (SMR) : पुस्तक समीक्षा तो बहुत लोग कर रहे हैं। छोटी से बड़ी तक। कोई-कोई तो इतनी बड़ी कि किताब पढ़ने की जरूरत नहीं पड़ती। सबकुछ समीक्षा में ही मिल जाता है। छोटी समीक्षा भी पढ़ने को मिलती है। लेकिन मुस्कान सागर की समीक्षा को आप ‘नैनो समीक्षा’ कह सकते हैं। बिल्कुल चरणामृत। हाड़ी का एक दाना देखकर समझिये चावल पूरी तरह भात बना है या नहीं। 

मुस्कान सागर की कलम से

सुधा चन्दर की कहानी याद है ना आपको, पर गुनाहों का देवता (मेरी पसंदीदा किताबों में से एक) जितनी बार मैंने पढ़ी यही लगा अगर सुधा जिंदा रह जातीं तो क्या कहानी होती… इसी ख्याल को लिखने का जिम्मा लिया लेखक दिव्य प्रकाश दुबे ने। एक बैठक में पढ़ डाली हमने ये किताब मुसाफिर कैफे। 

नये जमाने के सुधा चन्दर और बिन्नी की जगह पम्मी। पर सब प्रेम के इर्द गिर्द घूमते अपने तरीके से प्रेम को परिभाषित करते हुए। आधुनिक समय के हिसाब से संबंध बनना और फिर उसमें बंधना या बंधनमुक्त रहना किरदारों की मर्जी। कोई किसी के ऊपर अपनी राय नही थोपता। मुसाफिर कैफ़े कहानी में नयापन है। सागर किनारे से लेकर, मसूरी यात्रा, सिनेमा घर, बेडरूम सभी का उल्लेख थोड़ा हटकर लगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *