‘कहने को तो लोकतंत्र की जननी है बिहार, लेकिन यहां तंत्र से लोक और लोक से तंत्र ही गायब’

PATNA (SMR) : बिहार में 4 सितंबर को घटित दो वाकयों ने लोक और तंत्र की अलग-अलग परिभाषा समझने के लिए लोगों को विवश कर दिया है। इस पर बिहार के वरीय पत्रकार संजय सिंह ने काफी गहराई से लिखा है। उन्होंंने सवाल भी उठाया है कि जिस तरह औरंगाबाद में पूर्व राज्यपाल व आइपीएस निखिल कुमार सिंह के साथ बर्ताव हुआ, उससे पुलिस कभी भी पीपुल फ्रेंडली नहीं बन सकती है। फिर अपराधमुक्त बिहार का सपना कैसे पूरा होगा। यह आलेख वरीय पत्रकार संजय सिंह​ के फेसबुक वाल से लिया गया है। इसमें उनके निजी विचार हैं।

बिहार लोकतंत्र की जननी मानी जाती है। लेकिन तंत्र से लोक और लोक से तंत्र गायब है। यही अपना बिहार है। पब्लिक है, सब जानती है। हाल ही में एक आइपीएस अफसर के वेब सीरीज में एक गाना आया था- ‘ठोक देंगे कट्टा कपार में, आइए ना हमार बिहार में।’ बिहार में 4 सितंबर को दो घटनाएं लोक और तंत्र की अलग-अलग परिभाषा समझने के लिए काफी है।

दरअसल, औरंगाबाद में बिहार की राजनीति में छोटे साहब के नाम से प्रसिद्ध पूर्व मुख्यमंत्री सत्येंद्र नारायण सिन्हा के पुत्र निखिल कुमार सिंह 4 सितंबर को अपने क्षेत्र में चोरी की घटित घटनाओं की शिकायत लेकर एक प्रशिक्षु आइपीएस अधिकारी से मिलने गए थे। निखिल कुमार सिंह तंत्र से भी जुड़ रहे हैं और लोक से भी वे खुद आइपीएस रहकर तंत्र से जुड़े रहे और दो राज्यों के राज्यपाल रह चुके थे, इस नाते भी लोकशाही का उन्हें बेहतर ज्ञान है।

उक्त महिला अधिकारी यह कथन कि मैं अपने सरकारी आवास पर किसी से नहीं मिलती इसका फैसला तो जनता करेगी, लेकिन उसी महिला अधिकारी के इशारे पर एक अंगरक्षक द्वारा वीडियो बनाया जाना यह कानून के तहत जायज है ? इसका निर्णय तो पुलिस मुख्यालय में बैठे आलाधिकारी ही करेंगे।

एक बड़ राजनेता का पूर्व आइपीएस अधिकारी का क्या सम्मान हुआ इसे बिहार की जनता ने अपनी आंखों से देखा, यह संभव था कि निखिल कुमार की जगह कोई सामान्य व्यक्ति होता तो पुलिस उन्हें जरूर सबक सिखाती। यह मामला सिर्फ उस महिला अधिकारी तक से ही जुड़ा नहीं है। यह रोग थाना से लेकर पुलिस मुख्यालय में बैठे आलाधिकारियाें में लग चुका है कि वे जरूरत पड़ने पर मोबाइल नहीं उठाते हैं। उन्हें यह पसंद नहीं है कि पुलिस की छवि पीपुल फ्रेंडली हो ऐसे में अपराध कैसे थमेगा, इस बारे में बिहार के मुखिया को सोचना होगा।

दूसरा वाकया स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर है। पूरा बिहार डेंगू को लेकर डरा-सहमा है। पटना में शीर्ष पद पर बैठे कलक्टर साहब को डेंगू होने की खबर जब बिहार के मुखिया को मिली तो वे कलक्टर साहब को देखने निजी अस्पताल में पहुंच गए। उस निजी अस्पताल की ब्रांडिंग भी खूब हुई।

मुखिया जी को अपने मुलाजिम को दखने जाना भी चाहिए, लेकिन एक बड़ा सवाल यह है कि राजधानी में पीएमसीएच, आइजीएएस और एम्स जैसे सरकारी अस्पताल हैं, फिर कलक्टर साहब को निजी अस्पताल में क्यों भर्ती होना पड़ा। जाहिर है लोक के लिए स्वास्थ विभाग का तंत्र खेल है। इन दोनों वाकयों ने यह जाहिर कर दिया कि बिहार में सबकुछ बेपटरी हो चुका है। तभी तो लोग कटाक्ष करते हुए कहने लगे हैं कि आइए, जानिए और मुस्कुराइए यही अपना बिहार है।

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