PATNA (SMR) : बिहार में महागठबंधन की सरकार बन गयी है। कैबिनेट ने भी एक हद तक आकार ले लिया है। लेकिन जैसे ही BJP को छोड़कर JDU महागठबंधन में शामिल हुआ, वैसे ही बिहार में ‘मंगलराज’ एक झटके में स्विच कर ‘जंगलराज’ में जंप कर गया। एक मिनट में ही ‘रामराज’ फुर्र हो गया। इसी पर बिहार-झारखंड की राजनीति पर अपनी पैनी नजर रखने वाले पॉलिटिकल एक्सपर्ट और युवा पत्रकार विवेकानंद सिंह ने इस पर अपने व्यंग्य से तीखा प्रहार किया है। यह प्रहार उन्होंने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर किया है। नेताओं से लेकर पत्रकारों तक को लपेट लिया है। उसे यहां अक्षरशः लिया गया है। इसमें लेखक के निजी विचार हैं। इसे यहां पूरा पढ़ें…
अगस्त क्रांति के रोज यानी 9 अगस्त, 2022 को बिहार ने देश में चल रहे ‘रामराज की जगह जंगलराज’ को चुनना बेहतर समझा। पता नहीं, इंजीनियर नीतीश कुमार को क्या सूझा कि लॉ ग्रेजुएट लालू यादव के नौवीं पास बेटे के साथ जंगल सफारी सरकार बना ली।
उस रामराज्य में युवाओं को 2 करोड़ रोजगार के अवसर प्रतिवर्ष मिल रहे थे। बिहार में तो 2020 से 2022 तक ही 19 लाख रोजगार बांटे जा चुके थे। पेट्रोल और डीजल तो इतने सस्ते हुए पड़े थे कि पेट्रोल पम्प वालों को ऑफर निकाल कर तेल बेचना पड़ रहा था। गैस सिलिंडर तो अपनी कीमत पर शर्मिंदा हुआ जा रहा था। आखिर उसकी हैसियत के हिसाब से दाम होने चाहिए थे न?
सरसों तेल, आटा व अन्य किराना सामानों को सरकार हर घर तक खुद पहुंचा दे रही थी। वह भी सबके मन पसंदीदा ब्रैंड पूछ-पूछ कर। हवाई यात्रा तो इतनी आसान और सस्ती हो गयी थी कि हर कोई पुष्पक विमान से कहीं भी आ-जा सकते थे।
यह तो छोड़िये, बिहार के सारे अपराधी महाऋषि बाल्मीकि की तरह संत बनने का आवेदन सरकार के पास जमा कर चुके थे। किसी को यदि दिन दहाड़े गोली मारने की कोशिश भी हुई तो यमराज ने उस आदमी की आत्मा को लेने से मना कर दिया।
बड़े-बड़े प्राइवेट हॉस्पिटल के डॉक्टर ने मरीजों से फी लेना बन्द कर दिया था, क्योंकि सरकारी हॉस्पिटल में इलाज ही इतना अच्छा होने लगा था। आप नहीं मानेंगे, लेकिन सरकारी स्कूलों में जैसे पढ़ाई की नयी किरण फूट पड़ी थी। बच्चे नाचते-गाते पढ़ रहे थे। नेट्रॉडम जैसे स्कूल के मालिक के बच्चे भी अपना नाम सरकारी स्कूल में लिखवा रहे थे।
यह तो कुछ भी नहीं था, सारे ग्रेजुएशन कोर्सेज 3 साल की 2 साल में कम्पलीट हो जा रहे थे। ऊपर से प्रधान सेवक जी ने तो टैक्स से मुक्ति की घोषणा कर दी थी। रामराज्य वाले लोकतंत्र में जनता अपने कमाए पैसों का मालिक खुद बन गया था। करोड़ों में क्यों न कमा लो, सब तुम्हारा। कोई टैक्स नहीं।
वर्षों से किसी ने भ्रष्टाचार शब्द तक नहीं सुना था। क्राइम की इतनी कमी हो गयी थी कि क्राइम पेज पर अनुराग कश्यप की फिल्मों की कहानियां छपने लगी थीं। टीवी चैनल के पत्रकारों को मजबूरी में सरकार का पीआर करना पड़ रहा था, क्योंकि सरकार से सवाल पूछे जाने लायक कोई घटना घटित ही नहीं हुई थी कई वर्षों से।
नीतीश जी और लालू जी से देश की जनता का यह सुख देखा न गया। दोनों ‘भाई जैसे दोस्तों’ ने मिलकर बिहार में जंगलराज लाने का काम किया। 10 दिन के अंदर कोहराम मच गया है। लगभग सारे अपराधियों ने महर्षि बाल्मीकि बनने का आवेदन वापस ले लिया है। मीडिया के पास सवालों की लिस्ट बढ़ गयी है। एक शो कम पड़ जा रहा है। दिन भर बिहार के हत्या/ब्लात्कार/छिनैती आदि की खबरें चल रही हैं। क्राइम रिपोर्टर को अब लग रहा है कि उन्हें बड़ा पत्रकार बनने का अवसर जल्द मिलेगा। बाकी हमारा क्या है, हम तो बस लालू यादव और नीतीश कुमार जैसा ही दोस्त व दुश्मन चाहता हूं, ताकि रामराज्य हो या जंगलराज कभी नजर न चुराना पड़े।