PATNA (APP) : बीजेपी क्या अकेले जीत पाएगी बिहार ? यदि नहीं तो फिर इतना ताम-झाम क्यों? बिहार में सियासी ताकत का दिखावा किसलिए ? जेपी नड्डा और अमित शाह चुनावी हुंकार बढ़ने आए थे या इसके पीछे कोई और मंशा थी ? वे नीतीश कुमार को ताकत दिखाने आए थे या आरजेडी को ? ऐसे ही सवाल अब बिहार के सियासी गलियारे में उठ रहे हैं। बीजेपी के दो दिनों तक चले शक्ति प्रदर्शन के बाद इन सवालों पर मंथन भी शुरू हो गया है। इसके साथ ही ये सवाल भी उठने लगे हैं कि क्या बीजेपी को जेडीयू पर भरोसा नहीं रहा ? जेडीयू के बिना बीजेपी का काम नहीं चलने वाला है ? 2025 के चुनाव में एनडीए के चेहरा कौन होंगे, नरेंद्र मोदी या नीतीश कुमार ? बीजेपी और जेडीयू में सबकुछ ठीक रहेगा क्या ? इन दोनों की पैंतरेबाजी में आरजेडी की पॉलिटिक्स कहां जाएगी ? आरजेडी क्या सोशल मीडिया से बाहर निकल पाएगा ? ऐसे ही सवालों को लेकर राजनीतिक दल से ज्यादा पॉलिटिकल एक्सपर्ट माथापच्ची कर रहे हैं। 

रअसल, बिन मौसम की तरह बिहार में बीजेपी का शक्ति प्रदर्शन हुआ है। यह ऐसे समय में हुआ है, जब बीजेपी और जेडीयू के बीच कई मुद्दों पर खटपट चल रही है। एक मुद्दा थमता नहीं है कि दूसरा मुद्दा सामने आ जाता है। बीजेपी ऐसे-ऐसे मुद्दे को लेकर आ जा रही है, जिससे जेडीयू के नेता असहज हो जाते हैं। जेडीयू के नेता क्या, खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी असहज हो जाते हैं। कुछ मुद्दों पर तो वे कई बार बोल चुके हैं कि ‘यह सब फालतू की बात है।’ इसके बाद भी उन ‘फालतू’ मुद्दों को उठाने से बीजेपी के नेता बाज नहीं आते हैं। जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह और संसदीय बोर्ड के उपाध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने भी कई बार बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष से लेकर अन्य बड़बोले नेताओं को टार्गेट किया है, लेकिन न बीजेपी मानने को तैयार है और न ही जेडीयू ही ऐसे मुद्दों पर झुकने को तैयार है और दोनों दलों के बीच इस साल के शुरुआत से खटास कुछ अधिक ही बढ़ गया है। अग्निपथ योजना हो, या फिर जनसंख्या नियंत्रण कानून हो अथवा सरकारी स्कूलों में शुक्रवार को साप्ताहिक अवकाश का मामला हो। ये ऐसे मुद्दे हैं जिस पर न बीजेपी पीछे हट सकती है और न ही जेडीयू समझौता कर सकता है। ऐसा ही एक मामला CAA/NRC का है। जब यह भी मुद्दा देश में उठता है, लेकिन बिहार में आकर दम तोड़ देता है। ऐसे में देर-सबेर बिहार में कोई बड़ा सियासी तूफान आ सकता है। इससे न तो तमाम दलों के नेताओं को इनकार है और न ही पॉलिटिकल एक्सपर्ट ही इससे इनकार कर रहे हैं। और सबसे बड़ी बात तो यह है कि अग्निपथ योजना पर नीतीश कुमार बिल्कुल चुप हैं। 

बीजेपी और जेडीयू के बीच चल रही खटपट और नीतीश कुमार की चुप्पी के बीच बिहार में बीजेपी का दो दिनों का शक्ति प्रदर्शन बेशक सियासी गलियारे में नयी बहस को जन्म दे दिया है। पॉलिटिकल एक्सपर्ट की मानें तो इस शक्ति प्रदर्शन के अंत में भले ही बीजेपी के राष्ट्रीय महामंत्री अरुण सिंह ने कह दिया कि बीजेपी और जेडीयू साथ में चुनाव लड़ेंगे। इतना ही नहीं, रात में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की सांसदों व विधायकों के साथ बैठक हुई। बैठक खत्म होने के बाद केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह से जब मीडिया ने पूछा तो उन्होंने अपने संक्षिप्त उत्तर में कहा कि हमलोग जेडीयू के साथ पहले भी थे और आगे भी रहेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि 2024 और 2025 क्या है, हमलोग सब दिन साथ में रहेंगे। 

लेकिन, पॉलिटिकल एक्सपर्ट की मानें तो जितनी आसानी बीजेपी नेताओं ने जेडीयू के आगे सरेंडर कर कह दिया कि हमलोग साथ-साथ लड़ेंगे, उतना आसान नहीं लगता है। इसलिए कि जेपी नड्डा ने अपने दोनों दिनों के भाषण में नीतीश कुमार का कहीं जिक्र नहीं किया। यहां तक कि उनके जिस तरह से बयान आए हैं, उससे जेडीयू के नेता भी बहुत खुश नहीं हैं। नड्डा ने कहा- ‘सब क्षेत्रीय दल खत्म हो जाएंगे, रहेगी तो सिर्फ बीजेपी। हम अपनी विचारधारा पर चलते रहे तो देश से क्षेत्रीय पार्टियां खत्म हो जाएंगी।’ उन्होंने यह भी कहा कि हम अपने एजेंडों से समझौता नहीं कर सकते हैं। इन्हीं एजेंडों की बदौलत आज हम भारत में इस मुकाम पर पहुंचे हैं। हम अपने एजेंडों की बदौलत ही 2 सीटों से आज 300 के पार चले गए हैं। 18 राज्यों में हमारी सरकारें हैं।’ पॉलिटिकल एक्सपर्ट मानते हैं कि जिन एजेंडों की बात बीजेपी कर रही है, उन एजेंडों पर जेडीयू का साथ चलना आसान नहीं है। वहीं क्षेत्रीय पार्टियों के खात्मे की बात पर जेडीयू भी संतुष्ट नहीं है। जेडीयू के प्रदेश प्रवक्ता व पूर्व मंत्री नीरज कुमार कहते हैं- ‘राष्ट्रीय पार्टियों ने क्षेत्रीय आकांक्षा को पूरा नहीं किया तो क्षेत्रीय पार्टियों का उदय हुआ। ऐसे में कोई भविष्यवाणी ठीक नहीं है। बिहार की क्षेत्रीय पार्टी जदयू के बारे में तो सभी को अहसास है। बीजू जनता दल जैसी पार्टियों के बारे में भी सभी को अहसास है। क्षेत्रीय पार्टियां राष्ट्रीय विमर्श में एक साथ खड़ी रहे, यह देश की बड़ी चुनौती जरूर है।’

दरअसल, पॉलिटिकल एक्सपर्ट मानते हैं कि बीजेपी को शक्ति प्रदर्शन के पीछे अपने विरोधियों को तो ताकत दिखानी ही थी। साथ ही जेडीयू को भी अहसास कराना था कि यदि वह अलग भी हो जाए तो बीजेपी अकेले दम पर बिहार में फरिया सकती है। हालांकि, सभी मोर्चों की बैठक के पहले दिन मामला तनातनी ही दिख रहा था और उम्मीद थी कि अमित शाह के आने पर संभव है कि डैमेज कंट्रोल की बात हो। इसे लेकर लाइव सिटीज ने कल अपनी स्पेशल रिपोर्ट में इस डैमेज कंट्रोल के मुद्दे को जोरशोर से उठाया भी था। और रात में जब बैठक खत्म हुई तो ऐसा ही मामला उभर कर सामने आया। अमित शाह ने डैमेज कंट्रोल के संकेत दिए। और बाद में अरुण सिंह और गिरिराज सिंह ने इसका जिक्र मीडिया से किया, लेकिन उन दोनों नेताओं ने अब तक इस पर खुलकर बात नहीं की है। दरअसल, अमित शाह जानते हैं नीतीश कुमार की ताकत को। यह ताकत 2013 में बिहार के साथ ही बीजेपी ने भी देखी है। बाद में जब नीतीश कुमार एनडीए में दोबारा शामिल हुए, तब उन्होंने पटना की एक चुनावी सभा में कहा था कि बिहार में तीन राजनीतिक शक्तियां हैं। इनमें बीजेपी, जेडीयू और आरजेडी शामिल हैं। इन तीनों शक्तियों में जेडीयू के नीतीश कुमार जिस दूसरी शक्ति के साथ रहेंगे, बिहार में उसकी सरकार बनेगी। 

पॉलिटिकल एक्सपर्ट भी मानते हैं कि भले ही जेपी नड्डा को इस शक्ति का अहसास हो या न हो, लेकिन अमित शाह को आज भी नीतीश कुमार की ताकत के बारे में जानकारी है। ऐसे में वे नहीं चाहते हैं कि 2024 के चुनाव में किसी तरह का अडंगा बिहार में लगे। यदि बिहार गड़बड़ा गया तो बीजेपी के लिए 2024 का सफर काफी मुश्किल भरा हो जाएगा, इसलिए वैचारिक मतभेद के बाद भी बीजेपी, जेडीयू से अलग होने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है और उनकी हर शर्त मानने को तैयार रहता है। बीजेपी की यह बहुत बड़ी मजबूरी है। वह जानती है कि बिहार में अपने दम पर सत्ता में वह नहीं आ सकती है। इस बात को बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व भी समझता है।  

बहरहाल, यह भी सच है कि बीजेपी चुनावी तैयारी के मामले में सबसे आगे है। वह एक सोची-समझी रणनीति के तहत आगे बढ़ती है। कोई सियासी खेला करना हो या किसी राज्य में ऑपरेशन कमल चलाना हो तो उसे भी बड़े सलीके से अंजाम देती है, लेकिन नीतीश कुमार के आगे उनकी हर सियासी चाल फेल हो जाती है। वहीं, इधर के दिनों में जेडीयू ने भी अपना सांगठनिक ढांचे को काफी मजबूत किया है। बिहार में तो इसका असर दिख ही रहा है। बाहर के राज्यों में भी दिख रहा है। बीजेपी को यही डर सता रही है कि जेडीयू यदि रार्ष्टीय पार्टी बन जाएगी तो क्या होगा ? यह तो बीजेपी के लिए सुखद है कि आरजेडी बिहार में केस-मुकदमों में ही उलझा हुआ है। वह इन्हीं सब से काफी परेशान है। बाकी गतिविधियां सोशल मीडिया पर चल रही है। उसे भी अब जमीन पर उतरना होगा। तेजस्वी यादव को अपने पिता लालू यादव की तरह जन-जन का नेता बनना होगा। गांव-गलियों की खाक छाननी होगी। तभी बीजेपी को आरजेडी पटकनी दे सकता है। फिलहाल हर दल बीेजेपी की ताकत को देख नये सिरे से रणनीति बनाने लगा है। वहीं आरजेडी की चिंता बीजेपी ने यह कहकर बढ़ा दी है कि चुनावों में बीजेपी और जेडीयू साथ मिलकर लड़ेगा। अब यह बीजेपी का सरेंडर है या कोई पेंच, इस पर अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगा…

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