हवेली खड़गपुर की धरती पर पत्नी कस्तूरबा संग फिर आए महात्मा गांधी, मनोज सिंह की हो रही सराहना

PATNA / MUNGER (APP) : बिहार ऐसे बिहार नहीं है। यहां की माटी के कण-कण में महात्मा गांधी की अमिट छाप है। कभी वे अकेले आए तो कभी अपनी पत्नी कस्तूरबा गांधी के संग। हवेली खड़गपुर की धरती इस मामले में सौभाग्यशाली रही है। महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी यहां के मल्टीपर्पस स्कूल में सौ साल पहले एक साथ आए थे और अब पूरे 100 साल के बाद फिर आए। उन्हें लाने का श्रेय स्कूल के ही पूर्ववर्ती छात्र मनोज सिंह को जाता है। इसके लिए लोग मनोज सिंह की काफी प्रशंसा भी कर रहे हैं। खास बात कि मनोज कुमार सिंह वर्तमान में उसी स्कूल में शिक्षक हैं। 

सम्राट चौधरी ने किया अनावरण : वरीय पत्रकार संजय सिंह बताते हैं कि यह हवेली खड़गपुर के लिए गौरव की बात है कि जिस मल्टीपर्पस स्कूल में महात्मा गांधी और कस्तूरबा 20 के दशक में आए थे, वहां मनोज कुमार सिंह ने गांधी और कस्तूरबा की प्रतिमा को स्थापित कर एक कृतिमान गढ़ा है… दोनों प्रतिमाओं का एक साथ अनावरण करने के दौरान बिहार विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष सम्राट चौधरी ने कहा कि बिहार महात्मा गांधी की कर्मभूमि रहा है। वे व्यक्ति नहीं विचार थे। अनावरण के मौके पर पूर्व प्राचार्य राम चरित्र प्रसाद सिंह, स्कूल के प्रधानाचार्य कपिलदेव सिंह, रविंद्र सिंह कल्लू, रंजन सिंह समेत अनेक गणमान्य लोग मौजूद रहे। इस प्रतिमा को वरीय पत्रकार सह कलाकार सुरेश कुमार ने बनाया है।

बिहार में पहली बार पत्नी संग बापू : बिहार में पहली बार पत्नी कस्तूरबा गांधी संग महात्मा गांधी की प्रतिमा स्थापित की गयी है। इसके लिए लोग उनकी सराहना कर रहे हैं। महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी की एक साथ प्रतिमा को लेकर मनोज सिंह बताते हैं कि यह उनका वर्षों का सपना था, जो अब जाकर पूरा हुआ। जब मैं बचपन में यहां पढ़ता था, तब अपने पिताजी से सुनता आ रहा था कि आजादी की अलख जगाने महात्मा गांधी 1923 में हवेली खड़गपुर आए थे और इस स्कूल में उन दोनों के चरण पड़े थे। आज यह स्कूल धन्य हो उठा, जब 100 साल के बाद फिर से वे दोनों प्रतिमा में जीवित हो उठे। 

दायित्व के साथ कर्तव्य भी : बता दें कि मनोज सिंह पिछले 5 वर्षों से काफी बीमार चल रहे हैं। इसके बाद भी उनके जीने की जीजिविषा और समाजसेवी कार्य लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। कैंसर होने की वजह से पैसे दवा में काफी खर्च हो रहे हैं। इसके बाद भी वे समाजसेवी कार्यों में बढ़-चढ़ कर भाग ले रहे हैं। इतना ही नहीं, गरीब छात्रों को पाठ्य सामग्री भी वितरित करते हैं। इसी अवस्था में सरकारी ड्यूटी के प्रति भी अपना दायित्व निभा रहे हैं और समाज के प्रति अपने कर्तव्य से भी पीछे नहीं हट रहे हैं। 

नंदलाल बसु के कहने पर बनाते थे चित्र : गौरतलब है कि महात्मा गांधी का बिहार से गहरा नाता रहा है। उनकी यादें बिहार के चप्पे-चप्पे में बिखरी पड़ी हैं। लेकिन सबसे बड़ी बात कि बापू ने बिहार में ही लंगोटा धारण करने का प्रण लिया था। चंपारण के किसानों व महिलाओं की माली हालत ने उन्हें काफी द्रवित कर दिया था। फिर उन्होंने जीवनभर में लंगोटा व धोती में गुजार दिया। आधी धोती पहनते थे और आधी ओढ़ते थे। इसके साथ ही अंतिम सांस तक उनके साथ रहनेवाली लाठी भी बिहार की ही बनी हुई थी और यह लाठी उन्हें इसी हवेली खड़गपुर ने दी थी। पहली बार महात्मा कहकर उन्हें चंपारण के किसान राजकुमार शुक्ल ने ही संबोधित किया था। हालांकि कविगुरु रवींद्रनाथ टैगोर ने बापू को महात्मा की उपाधि दी थी। और खास बात कि खड़गपुर के लाल आचार्य नंदलाल बसु भी गांधी जी के कहने पर चित्र के साथ मंच सज्जा भी तैयार करते थे। 

घोरघट की बनी लाठी थामे रहे जीवनभर : महात्मा गांधी लाठी वाले बाबा के नाम से भी फेमस हैं और यह लाठी मुंगेर के हवेली खड़गपुर के घोरघट गांव में बनी थी। पहले यहां की लाठियां अंग्रेजी हुकुमत भारतीय क्रांतिकारियों को पीटने के लिए करते थे। तब अंग्रेजों को नहीं पता था कि यही लाठी उनका अंत करेगी। वाकया 1934 का है। तब मुंगेर में जबर्दस्त भूकंप आया था। पूरा शहर तबाह हो गया था। इसी क्रम में गांधीजी अप्रैल के माह में मुंगेर के घोरघट पहुंचे। वे जब लौटने लगे तो गांववालों ने निशानी के रूप में उन्हें लाठी दी। फिर तो वे लाठी वाले बाबा बन गए और यह लाठी जीवनभर उनके साथ रही। गांधीजी के कहने पर ही गांव के लोगों ने अंग्रेजों को लाठी देना बंद कर दिया था।

बिहार पहली बार 1917 में आए थे बिहार : किसान राजकुमार शुक्ल को कोई नहीं भूल सकता है। उनका गांधी से गहरा लगाव था। चंपारण में नील के रोजगार से जुड़े किसानों की समस्या को उन्होंने ही गांधीजी को बताया था। बात 1917 की है। कहा जाता है कि राजकुमार शुक्ल ने कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में चंपारण के किसानों की समस्या को उठाया। उन्होंने पंडित मदनमोहन मालवीय और लोकमान्य बालगंगाधर तिलक से भी मिले, लेकिन उनकी गुहार को गांधीजी ने गंभीरता से लिया और वे पहली बार 10 अप्रैल 1917 को गांधी पटना पहुंचे। 

तब बापू ने लिया प्रण : कहा जाता है किसान राजकुमार शुक्ल के साथ चंपारण आए गांधी से वहां के किसानों की माली हालत नहीं देखी गई। वे काफी द्रवित हो उठे। जब उन्होंने यह देखा कि नील की खेती में महिलाएं तो हैं ही नहीं। जबकि, नील के निर्माण में उस समय कई काम ऐसे थे जिन्हें महिलाएं बखूबी अंजाम देतीं। ऐसा नहीं था कि गांव में महिलाएं नहीं थीं, वे थीं और गांधी को अपने घरों के ठाट-खिड़की से हुलक (झांक) रही थी। पता चला कि वहां इतनी गरीबी है कि वे लोग सही से वस्त्र तक नहीं जुटा पाते हैं। ऐसे में महिलाओं को बाहर आने में और भी परेशानी थी। उन लोगों की माली हालत देखकर बापू ने प्रण किया कि वे भी अब वस्त्र नहीं पहनेंगे। बस लंगोटी और धोती ही उनका ड्रेस होगा। तब से वे अच्छे व धनाढय परिवार के होने के बाद भी ताउम्र एक ही धोती से काम चलाते रहे। 

पटना में बापू की सबसे ऊंची प्रतिमा : पटना के गांधी मैदान में बापू की सबसे ऊंची प्रतिमा है। अंग्रेज के जमाने में पटना के इस मैदान में घुड़दौड़ होती थी। तब इसे पटना लॉन कहा जाता था। आजादी मिलने के बाद शहर में हुए दंगे-फसाद ने बापू को पटना आने पर विवश कर दियाा बापू ने गांधी मैदान में सर्वधर्म प्रार्थना सभा का आयोजन किया, जहां हजारों लोग जमा हुए। मैदान का नाम उनके नाम पर पड़ा और आज इस मैदान में गांधीजी की भारत की सबसे ऊंची प्रतिमा है। 

बिहार में विद्यापीठ की स्थापना : पटना के कुर्जी स्थित सदाकत आश्रम का एक हिस्सा बिहार विद्यापीठ है। बापू ने छह फरवरी 1921 को बिहार विद्यापीठ की स्थापना की थी। यहां महात्मा गांधी, मजहरूल हक, डॉ. राजेंद्र प्रसाद आदि हस्तियों ने समय बिताया है। गांधी से प्रभावित होकर मजहरूल हक ने यह जमीन विद्यापीठ के नाम से दान कर दी थी। देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने राष्ट्रपति बनने पहले और बाद के दिन यहां गुजारे थे। राजेंद्र प्रसाद ने अपनी अंतिम सांस भी इसी विद्यापीठ में ली थी। इतना ही नहीं, पटना में सदाकत आश्रम से ही गांधीजी ने चंपारण आंदोलन के लिए हुंकार भरी थी और स्वतंत्रता संग्राम का आह्वान किया था। यहीं से देश के नामी शिक्षा मंदिर बिहार विद्यापीठ का संचालन किया जाता था। किसान राजकुमार शुक्ला के साथ गांधीजी जब कोलकाता के रास्ते बिहार के चंपारण आ रहे थे, तो वे सदाकत आश्रम पहुंचे थे। इस आश्रम का उन्होंने 1921 में शिलान्यास किया था।

पटना का गांधी संग्रहालय जरूर घूमिये : राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से जुड़ी कई निशानियां गांधी संग्रहालय में देखी जा सकती हैं। गांधी और उनके दर्शन को जानने-समझने के लिए राजधानी की यह सबसे महत्वपूर्ण जगह है। यहां गांधी के जीवन की विभिन्न अवस्थाओं और कार्यों की तस्वीरें मौजूद हैं। दीवारों पर गांधी के जीवन की झलकियां उकेरी गई हैं। पटना एनआइटी के पास गंगा घाट को गांधी घाट से जोड़ा गया है। इस घाट पर उनकी अस्थियां प्रवाहित की गई थीं। और आज अपनी 75 वीं पुण्यतिथि पर महात्मा गांधी पत्नी कस्तूरबा गांधी संग बिहार के हवेली खड़गपुर में फिर से जीवित हो उठे। 

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