PATNA (APP) : 18 मार्च 1974 को पटना में आंदोलन की जो चिंगारी छिंटकी। उसकी लपटें देखते ही देखते पूरे देश में फैल गयी और इन सबके पीछे 11 अक्टूबर 1902 को जन्म लेने वाले लोकनायक जयप्रकाश नारायण थे। उन्होंने बिहार की राजधानी पटना के गांधी मैदान से संपूर्ण क्रांति का आह्वान किया। यह आह्वान उन्होंने 5 जून 1974 को किया था, इस तारीख ने भारत में नया इतिहास लिख दिया। तब वे लोकनायक भी नहीं थे। केवल JP थे। लेकिन, पटना के आंदोलन से देश की सत्ता ने ऐसी करवट ली, जिसकी मिसाल आज भी दी जाती है। इसके बाद तो जयप्रकाश लोकनायक-महानायक सब बन गए। JP जयंती पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बिहार से लेकर नागालैंड तक आयोजित कार्यक्रम में शामिल हुए। वहीं जेपी के गांव सिताब दियारा में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ शामिल हुए। आइये लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जयंती पर उनसे जुड़े पांच किस्सों को बताते हैं…
1 नीतीश-लालू, जेपी के चेले : जयप्रकाश नारायण कहते थे- ‘जात-पात तोड़ दो, तिलक-दहेज छोड़ दो, समाज के प्रवाह को नयी दिशा में मोड़ दो।’ इसी आह्वान के साथ पटना के गांधी मैदान से शुरू हुई संपूर्ण क्रांति। उन्होंने संपूर्ण क्रांति का नारा दिया। उनका संपूर्ण क्रांति से तात्पर्य था समाज के सबसे अधिक दबे-कुचले व्यक्ति को सत्ता के शिखर पर देखना और इस आंदोलन के रास्ते बिहार की राजनीति जब आगे बढ़ी, तो देश में सामाजिक बदलाव की कहानी भी बुनी जाने लगी। पिछड़ा उभार हुआ और सत्ता-समाज में उपेक्षित तबके की भागीदारी लगातार बढ़ने लगी और आज इसका असर बिहार से लेकर देश की सियासत में दिख रहा है। तब जयप्रकाश नारायण को लोग जेपी कहकर पुकारते थे और इनके कई अनुयायियों में से कइयों को ‘जेपी का चेला’ भी कहा जाने लगा। जेपी के इसी आंदोलन से ऐसे कई नेता निकले जो सत्ता के शीर्ष तक पहुंचे। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक जेपी के 1974 आंदोलन के ही उपज हैं. लालू यादव ने तो जेपी की संपूर्ण क्रांति को ही अपना सियासी शस्त्र बनाया और उसे जमीन पर भी लागू किया। राम विलास पासवान, सुशील कुमार मोदी, रवि शंकर प्रसाद.. लंबी फेहरिस्त है नेताओं के नामों की, जो आज राजनीति और सत्ता के शीर्ष पर पहुंच चुके हैं। आज के सारे नेता जेपी के उसी छात्र युवा संघर्ष वाहिनी का हिस्सा थे। हालांकि, यह अलग बात है कि जात-पात नहीं टूटा और आज बिहार में सियासत की यही रीढ़ है।
2 धन्य हुआ सिताब दियारा : बिहार के सारण जिले में एक छोटा-सा गांव है सिताब दियारा। इसी सिताब दियारा 1974 के महानायक का जन्म हुआ था। वे कायस्थ समाज से आते थे। प्रारंभिक पढ़ाई गांव में करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए पहले पटना आए, फिर अमेरिका चले गए। कहा जाता है कि उनकी मां की तबियत बिगड़ जाने के बाद वे इंडिया लौट आए और इसी वजह से उनकी पीएचडी भी पूरी नहीं हो सकी। बाद में उनकी शादी कर दी गयी। उनका विवाह 1920 में बिहारी बृज किशोर प्रसाद की पुत्री प्रभावती के साथ हुआ। इसी बीच डॉ राजेंद्र प्रसाद और डॉ अनुग्रह नारायण सिन्हा ने बिहार विद्यापीठ की स्थापना की। इसी संस्था में जयप्रकाश नारायण शामिल हो गये। इसके बाद ये जनांदोलनों से जुड़ते चले गए। ये समर्पित भाव से गरीब-गुरबों की लड़ाई लड़ रहे थे। 1948 मे जेपी ने राम मनोहर लोहिया के साथ मिलकर कांग्रेस के समाजवादी दल का नेतृत्व किया और बाद में गांधीवादी दल के साथ मिल कर समाजवादी सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की। इन्होंने 1954 में 19 अप्रैल को विनोबा भावे के साथ काम करने का फैसला किया और उनके सर्वोदय आंदोलन के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। इसके बाद वे राजनीति में किसी भी पद पर नहीं गए। इसके बाद इन्होंने 1957 में राजनीति छोड़ने का निर्णय लिया, लेकिन देश की गिरती स्थिति को देख वे राजनीति में फिर से सक्रिय हो गए और 1974 में किसानों के बिहार आंदोलन में जेपी ने तत्कालीन राज्य सरकार से इस्तीफे की मांग की। वे इंदिरा गांधी की प्रशासनिक नीतियों के खिलाफ थे। उनकी कार्यशैली और इमरजेंसी के विरोध में ही जेपी ने पटना के गांधी मैदान से 5 जून 1974 को ‘संपूर्ण क्रांति’ का नारा दिया और क्रांति की हवा ऐसी चली कि इंदिरा गांधी की सत्ता उखड़ गयी। तब कहा जाता था- इंडिया इज इंदिरा और इंदिरा इज इंडिया। लेकिन, जेपी ने इसकी परवाह नहीं की।
3 यह मेरा अपमान है : जयप्रकाश नारायण ने घोषणा कर रखी थी कि वे सत्ता के किसी पद पर नहीं जाएंगे, जबकि पंडित नेहरू चाहते थे कि जेपी सत्ता में भी भागीदार बनें। अच्छे आदमी सियासत में रहें। इसी को लेकर सत्ता समेत सभी विपक्षी दल चाहते थे कि उन्हें राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया जाय, लेकिन इस पर तो जेपी काफी नाराज हो गए। बोले कि यह मेरा अपमान है। दरअसल, साल 1974 में जब समाजवादी नेता राज नारायण ने राष्ट्रपति पद के लिए जयप्रकाश नारायण का नाम चलाया। मीडिया में भी बात आ गयी। तब जेपी ने कहा, ‘मैं नहीं जानता कि हितैषी मित्र भी मुझे अपमानित करने पर क्यों तुल जाया करते हैं। कभी मैं राष्ट्रपति बनने लगता हूं, कभी सब विरोधी दलों का नेता होने लगता हूं.’ बाद में राजनारायण ने सफाई देते हुए कहा कि ‘एक अख़बार ने मेरे बयान को तोड़ मरोड़ कर छापा, जिससे जयप्रकाश जी दुखी हुए।’ जेपी ने 11 अप्रैल, 1974 को एक बयान जारी कर कहा कि ‘पद और पार्टी वाली राजनीति तथा व्यापक अर्थवाली राजनीति में अंतर करने का मेरा यह पहला प्रयास नहीं है। मैंने साल 1954 के शुरुआत में कह दिया था कि मैं सत्ता और राजनीति में किसी भी पद पर नहीं रहूंगा। देश के राजनीतिक जीवन में मेरा कर्ममय सहयोग जारी रहेगा। वरीय पत्रकार सुरेंद्र किशोर लिखते हैं कि जयप्रकाश नारायण तथा अन्य समाजवादी नेताओं के नेतृत्व में सोशलिस्ट पार्टी ने 1952 में आम चुनाव लड़ा था, लेकिन खुद जेपी चुनाव में उम्मीदवार नहीं बने थे और वे कभी चुनाव नहीं लड़े। बाद में मांगों को लेकर पंडित नेहरू से रिश्ते खराब हो गए।
4इंदिरा गांधी के लिए रोने लगे : इंदिरा गांधी के प्रसंग के बिना जेपी की चर्चा अधूरी है। सबसे बड़ी बात यह है कि जिस इंदिरा गांधी को हराने के लिए जेपी ने पूरे देश में आंदोलन खड़ा कर दिया। उसी इंदिरा गांधी को जेपी की पत्नी प्रभावती अपनी बेटी मानती थीं, क्योंकि वह उनकी सखी कमला नेहरू की बेटी थीं। कहते हैं कि अगर प्रभावती जीवित रहतीं तो शायद जेपी यह आंदोलन ही नहीं खड़ा कर पाते। 1973 में कैंसर से प्रभावती की मौत के बाद जेपी बहुत अकेले पड़ गए। इस पीड़ा से उबरने में जेपी को करीब एक साल लग गया और उसके बाद जेपी ने जो आंदोलन खड़ा किया, उसने इतिहास रच दिया। दरअसल, इंदिरा को बेटी मानने के पीछे एक बड़ा कारण यह है कि प्रभावती की एक शपथ ने जेपी के व्यक्तित्व के एक और पहलू को उजागर किया। 1920 में हुई शादी के कुछ साल बाद ही प्रभावती ने ब्रह्मचर्य व्रत ले लिया था। कहा जाता है कि जेपी शुरू में इसके समर्थन में नहीं थे, लेकिन अपनी पत्नी की इच्छा का मान रखते हुए जेपी ने भी उनके साथ ब्रह्मचर्य व्रत का पालन किया। यह अनोखी घटना थी, क्योंकि इससे पहले केवल स्त्रियां ही अपने पति का अनुसरण करते हुए ब्रह्मचर्य का पालन करने के संदर्भ मिलते हैं। इसके बाद प्रभावती का इंदिरा गांधी से स्नेह और अधिक बढ़ गया। और यही वजह रही कि जब इंदिरा गांधी हार गयीं तो वे जेपी रो पड़े। दरअसल, 1977 में जेपी के आंदोलन के फलस्वरूप इंदिरा को हराकर जब जनता पार्टी सत्ता में पहुंची तो 24 मार्च को दिल्ली के रामलीला मैदान में विजय रैली का आयोजन किया गया। लेकिन, खुद जेपी ही उस रैली में नहीं पहुंचे अपनी राजनीतिक विजय के सबसे बड़े दिन जेपी गांधी शांति प्रतिष्ठान से निकलकर रामलीला मैदान जाने की जगह सफदरजंग रोड की एक नंबर कोठी में गए। जहां पहली बार हारी हुई इंदिरा बैठी थीं। जेपी से मिलकर इंदिरा के आंसू आ गए, लेकिन उससे भी ज्यादा हैरत की बात थी कि अपनी पराजित पुत्री के सामने जेपी भी रो रहे थे।
5 जेल में तबीयत बिगड़ी, मरणोपरांत भारत रत्न : जयप्रकाश नारायण अपने जीवन में कई दफा जेल गए। वे आजादी के पहले गए और आजादी के बाद भी गए। वे 1974 के आंदोलन को लेकर भी जेल गए थे, लेकिन अंतिम बार जब वे जेल गए तो उनकी तबियत बिगड़ने लगी थी। दरअसल, गिरते स्वास्थ्य के बावजूद उन्होंने बिहार में सरकारी भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन किया। उनके नेतृत्व में पीपुल्स फ्रंट ने गुजरात राज्य का चुनाव जीता। 1975 में इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की, जिसके अंतर्गत जेपी सहित 600 से भी अधिक विरोधी नेताओं को बंदी बनाया गया और प्रेस पर सेंसरशिप लगा दी गई। जेल में जेपी की तबीयत और भी खराब हुई। तब लगभग 7 माह बाद उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया। 1977 में जेपी के प्रयासों से एकजुट विरोधी पक्ष ने इंदिरा गांधी को चुनाव में हरा दिया। 70 के दशक में उन्हें डायबिटीज हो गयी। इसी के बाद उन्हें हार्ट अटैक आया और वे चल बसे। उन्होंने अंतिम सांस पटना में अपने निवास स्थान पर ली थी। उन्होंने जिस तारीख को अंतिम सांस ली, वह तारीख थी 8 अक्टूबर 1979। उस समय देश के प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह थे। जेपी के निधन से सारा देश दुखी था। वे कोई पद पर नहीं थे, फिर भी संपूर्ण क्रांति के महानायक हो गए थे और लोगों के लिए लोकनायक बन गए थे। और यही वजह रही कि उनके निधन पर और उनके सम्मान में तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने देश में 7 दिन के राष्ट्रीय शोक की घोषणा की थी कि इसके पहले 1956 में जेपी को समाजसेवा के लिए मैगसेसे अवार्ड से सम्मानित किया गया था और 1999 में उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न प्रदान किया गया। और हाँ, उनके निधन से भी जुड़ा एक किस्सा यह है कि उनकी मृत्यु के पहले ही तत्कालीन प्रधानमंत्री ने गलती से उनकी मौत की घोषणा कर दी थी, जिससे पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई थी। उस समय जेपी हॉस्पिटल में भर्ती थे… जब उन्हें इस बारे में पता चला तो मुस्कुरा दिए।