PATNA / DELHI (APP) : बिहार RJD के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह सुर्खियों में हैं। वे अभी बिहार से लेकर दिल्ली तक की सियासत में हॉट केक बने हुए हैं। आरजेडी उनको लेकर जहां डिफेंसिव मोड में है। वहीं बीजेपी हमलावर बनी हुई है। जेडीयू इसे आरजेडी का अंदरुनी मामला बता कर किनारे से निकल जा रहा है। लेकिन, सवाल हर ओर यही कौंध रहा है कि जगदानंद सिंह आखिर कहां रह गए ? दरअसल, वे न तो पटना में ही हैं और न ही दिल्ली में आयोजित आरजेडी के पहले दिन की बैठक में शामिल हुए। ऐसे में बड़ा सवाल है कि आखिर जगदानंद सिंह कहां आराम फरमाने लगे ? क्या वे लालू के साथ की 40 साल की दोस्ती तोड़ देंगे ?
सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं कि हाल ही में नीतीश कैबिनेट से इस्तीफा देने वाले सुधाकर सिंह दिल्ली में शुरू हुई आरजेडी की बैठक में शामिल हुए। लेकिन, वे अपने पिता जगदानंद सिंह के बारे में कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया। यदि सुधाकर सिंह इतने पर रह जाते तो बात समझ में आती, लेकिन वे एक कदम आगे जाकर बोले कि उनके पिता के बारे में पार्टी के वरीय नेता ही बता सकते हैं। इस संबंध में पार्टी प्रवक्ता ही कुछ कह सकते हैं।
दरअसल, आरजेडी में यह सारा सियासी बखेड़ा सुधाकर सिंह से ही जुड़ा हुआ है। महागठबंधन सरकार में जगदानंद सिंह के बेटे सुधाकर सिंह को कृषि विभाग की जिम्मेवारी दी गयी थी। लेकिन, पद संभालते ही उन्होंने अपने विवादित बयानों से सरकार में रहकर भी तेजस्वी यादव को असहज कर दिया था। वे नीतीश कुमार पर लगातार हमले पर हमले कर रहे थे। ये हमले कभी डायरेक्ट होते थे तो कभी बिना नाम लिये तंज कसते थे। इतना ही नहीं, मामला तब गरमा गया, जब उन्होंने अपने ही कृषि विभाग के कर्मचारियों व अधिकारियों को चोर तथा अपने को चोरों का सरदार बता दिया। इसके बाद यह मामला इतना अधिक तूल पकड़ लिया कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सामने आना पड़ा। मुख्यमंत्री को कहना पड़ा कि कृषि विभाग के सभी अधिकारी ईमानदार हैं। कहा जाता है कि इसे लेकर कैबिनेट मीटिंग में नीतीश कुमार और सुधाकर सिंह में बात भी हुई, लेकिन बात बनी नहीं। मामला धीरे-धीरे आगे बढ़ता गया और बात आरजेडी और जेडीयू के एजेंडे तक पहुंच गयी.
खास बात कि सुधाकर सिंह लालू यादव और तेजस्वी यादव की नसीहत को भी दरकिनार कर रहे थे। इससे सियासी गलियारे में यह संकेत मिलने लगे थे कि सुधाकर सिंह का यही रवैया रहा तो उन्हें जल्द ही इस्तीफा देना पड़ सकता है। और ऐसा ही हुआ। सुधाकर सिंह ने आखिर दो अक्टूबर को अपना इस्तीफा मुख्यमंत्री के बजाय तेजस्वी यादव को भेजा। कहा जा रहा है कि तेजस्वी यादव की ओर से ही इस्तीफा मांगा गया। ऐसे में उन्होंने अपना इस्तीफा अपने पिता जगदानंद सिंह के हाथों भिजवा दिया, लेकिन इस्तीफा देने के पहले भी सुधाकर सिंह ने एक बार फिर विवादित बयान देकर सबको चौंका दिया था। एक मीडिया हाउस से बातचीत में उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार के जेडीयू का एजेंडा अलग है और आरजेडी का एजेंडा अलग है। जेडीयू का एजेंडा आरजेडी का नहीं हो सकता है। पॉलिटिकल एक्सपर्ट के अनुसार, इसी तरह के बड़बोले बयान से तेजस्वी यादव लगातार असहज होते चले गए और आज इसकी परिणति सब देख रहे हैं।
लेकिन, आरजेडी की टेंशन तब बढ गयी, जब उसके बाद से ही जगदानंद सिंह ने पार्टी की गतिविधियों से खुद को किनारा कर लिया। न उनके बयान आ रहे हैं और न ही वे पार्टी के दफ्तर जा रहे हैं। पिछले सप्ताह तो यह भी बात मीडिया में फैलने लगी कि जगदानंद सिंह आरजेडी से इस्तीफा देने वाले हैं। कहा गया कि वे गुरुवार 6 अक्टूबर को दिल्ली जाएंगे और 7 अक्टूबर को लालू यादव से मुलाकात करेंगे और अपना इस्तीफा देंगे। अचानक शुक्रवार को पता चला कि वे दिल्ली के लिए पंडित दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन तो गए, लेकिन ट्रेन में बैठे ही नहीं और वे वहां से अपने गांव चले गए।
इसे लेकर जितने मुंह, उतनी बातें होने लगीं। कोई कह रहा था कि ट्रेन छूट गयी तो कोई कह रहा था कि उन्होंने ट्रेन को जान-बूझकर ट्रेन को छोड़ दिया। इसके बाद फिर शुक्रवार को यह बात आयी कि वे अब फ्लाइट से दिल्ली जाएंगे और लालू से मिलेंगे। उनके दिल्ली जाने और नहीं जाने को लेकर मीडिया वाले भी कन्फ्यूज हो गए थे, किंतु आज जब दिल्ली में आरजेडी की दोदिवसीय बैठक शुरू हो गयी तो हर चेहरा जगदानंद सिंह को ही खोज रहा था। लेकिन, वे दिल्ली जाते, तब न मिलते। पता चला कि जगदानंद सिंह फ्लाइट से भी दिल्ली नहीं गए हैं। हालांकि, इसे लेकर भी मतभेद है।
लेकिन, मीडिया वालों को तब आश्चर्य हुआ, जब सुधाकर सिंह बैठक में शामिल होने के लिए दिल्ली पहुंच गए। फिर क्या? मीडिया वालों ने सुधाकर सिंह को घेर लिया और जगदाबाबू को लेकर तरह-तरह के सवाल पूछने लगे। उन्होंने खुद को किनारा करते हुए कहा कि उनके बारे में पार्टी के प्रवक्ता या वरीय नेता ही बता सकते हैं। बता दें कि कल ही तेजस्वी यादव को भी मीडिया ने घेरा था। उनसे भी सवाल की झड़ी लगा दी थी। तब तेजस्वी ने कहा कि जगदाबाबू से किसी तरह की नाराजगी नहीं है। अगर किसी तरह की नाराजगी रहती तो वे हमें जरूरत बताते, इसलिए ऐसी कोई बात नहीं है।
दूसरी ओर पॉलिटिकल एक्सपर्ट की मानें तो भले ही हर नेता अपनी-अपनी सफाई दे, लेकिन अंदरखाने कुछ न कुछ बात जरूर है और असली मुद्दे पर कोई कुछ नहीं बोल रहा है अथवा बोलने से वे लोग बच रहे हैं। पॉलिटिकल एक्सपर्ट की मानें तो इसे लेकर कई संकेत मिल रहे हैं, क्योंकि एक ओर दिल्ली में लालू यादव की ताजपोशी हो रही है और उनके सबसे निकटतम सहयोगी ही इस सिनेरियो से गायब हो गए हैं। बिहार प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह का कहीं अता-पता नहीं है। आरजेडी के सारे पदाधिकारी दिल्ली में चल रही बैठक में शामिल हो चुके हैं। अन्य प्रदेशों के अध्यक्षों और प्रमुख नेता भी शामिल हुए हैं। यहां तक कि जगदानंद सिंह के बेटे सुधाकर सिंह भी बैठक में शामिल हो गए हैं, लेकिन चार दशक से भी ज्यादा समय से लालू के साथ समाजवादी राजनीति करते आ रहे जगदानंद सिंह दिल्ली से दूर हैं। पटना में भी नहीं हैं। कहा जा रहा है कि सासाराम स्थित अपने गांव में डेरा जमा रखा है। बताया जाता है कि अपने पद से त्यागपत्र का प्रस्ताव वह पहले ही कर चुके हैं। हालांकि डैमेज कंट्रोल के भी प्रयास किये जा रहे हैं।
ऐसे में पार्टी के नेता-कार्यकर्ता एक-दूसरे से पूछ रहे हैं कि क्या जगदानंद इतने नाराज हैं कि चार दशकों के संबंध को तोड़ कर लालू को छोड़ भी सकते हैं ? 1973 में लालू यादव जब समाजवादी युवजन सभा के प्रत्याशी के रूप में पटना विश्वविद्यालय के छात्र संघ अध्यक्ष बने थे तो जगदानंद सिंह बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में इसी बैनर के साथ राजनीति कर रहे थे। पहली बार 1985 में विधायक बने तो उन्हें लालू यादव का साथ मिला। तब से कभी अलग नहीं हुए। ऐसे में इस बार सबकी निगाहें उनके अगले कदम पर हैं।
दरअसल, लालू यादव और जगदानंद सिंह की जोड़ी बिहार पॉलिटिक्स में लगभग एक साथ की है। जनता दल बनाना हो या फिर जनता दल टूटने के बाद राष्ट्रीय जनता दल का निर्माण करना हो। जगदानंद सिंह, लालू यादव के साथ बिलकुल साये की तरह रहे हैं। जब भी पार्टी का बुरा दौर आया हो या फिर लालू यादव के जेल जाने के बाद पार्टी को मजबूत और एकजुट रखने की बात हो तो जगदानंद सिंह मजबूती से खड़े रहे हैं। जब लालू यादव की चारा घोटालों के सभा मामलों में जमानत मिल गयी और इसके बाद जब वे दिल्ली से ही बिहार के लोगों से वे ऑनलाइन जुड़ रहे थे। तब उन्होंने जगदाबाबू को काफी संजीदगी से पुराने दिनों का साथी बताया था। यही वजह है कि कभी-कभी कुछ कारणों से मन खटास होने के बाद भी वे लालू यादव की बात को बिलकुल ही नहीं टालते हैं। वे हर परिस्थिति में उनके साथ खडे रहते हैं। खास बात कि तेजस्वी यादव की भी ये पहली पसंद हैं। तभी तो लालू यादव ने जगदाबाबू को ही पार्टी की कमान फिर से सौंपने का फैसला किया। प्रदेश अध्यक्ष के रूप में अब्दुल बारी सिद्दीकी, उदय नारायण चौधरी जैसे कई नामों की चर्चा थी, इसके बाद भी लालू को ‘जगदा भाई’ ही पसंद आए। लालू यादव इन्हें अपनी फैमिली के लिए ‘पीपल’ कहते हैं, जो आंधी-पानी में भी सदा खड़ा रहते हैं। ऐसे में अब सवाल उठने लगे हैं कि क्या इस बार यह पीपल ढह जाएगा..? इस पर फिलहाल कोई भी अपना मुंह खोलने को तैयार नहीं हैं। वहीं पिछले दिनों बीजेपी के कद्दावर नेता सुशील मोदी ने कहा था कि सुधाकर सिंह के बाद अब जगदानंद सिंह का विकेट गिरनेवाला है ? ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि सच में जगदानंद सिंह कोई बड़ा कदम उठाते हैं या लालू परिवार उन्हें मनाने में सफल रहता है. अथवा सुशील मोदी का कहा सही होता है।