PATNA (APP TEAM) : बिहार का मोकामा विधानसभा क्षेत्र। अनंत सिंह का किला। भूमिहारों का गढ़। एक तरफ अनंत सिंह की ओर से इस किले को बचाने की चल रही जुगत। दूसरी ओर अनंत सिंह के इस किले में सेंधमारी की विरोधी बना रहे हैं रणनीति। दरअसल, मोकामा पर आजादी के बाद से ही भूमिहारों का कब्जा रहा है। गांव की भाषा में कहें तो एक चुनाव छोड़कर वहां से हमेशा से ‘बाबन’ यानी भूमिहार जाति से ही विधायक बनते आ रहे हैं।
और इसी मोकामा पर 90 के दशक से बाहुबलियों का कब्जा हो गया है। मोकामा इस दौरान कई बार इतिहास रचा है। इसने पहली बार 1967 में इतिहास रचा था। इसके बाद मोकामा ने दूसरी बार 1972 में इतिहास रचा। इसी तरह, इस विधानसभा ने 2010 में अपना नया इतिहास रचा। इसके बाद से यह 2022 के जून तक इतिहास ही रचते आया है। लेकिन, अब इतिहास दोहराने की बारी है। तो क्या मोकामा विधानसभा क्षेत्र इस बार अपने इतिहास को दोहराएगा। इस बार यह विधानसभा क्षेत्र क्या फिर से महिला विधायक देगा ? या नया इतिहास रचते हुए दो दशक से लगातार कब्जा जमाए अनंत सिंह के किले में सेंधमारी होगी।
बिहार में हर विधानसभा सीट का अपना एक प्रभाव है। अपना नाम और नेचर है। कोई विधायक के नाम से जाना जाता है तो कोई कास्ट फैक्टर के लिए फेमस है, तो कोई बाहुबलियों के लिए प्रसिद्ध है। लेकिन, मोकामा विधानसभा क्षेत्र तीनों ही सांचे-ढांचे में बिलकुल फिट है। आजादी के बाद से ही मोकामा विधान सभा क्षेत्र अस्तित्व में आ गया था और 1951 से ही यह जनरल सीट है। भूमिहारों का सबसे सुरक्षित चुनावी बेल्ट माना जाता है। यानी इस इलाके पर आजादी के बाद से ही भूमिहार वोटरों का दबदबा है। यहां से रिकॉर्ड 5 बार विधायक बनने वाले अनंत सिंह भूमिहार जाति से आते हैं और 1952 में हुए बिहार के पहले विधानसभा चुनाव में यहां से विधायक बनने वाले जगदीश नारायण सिंह भी भूमिहार जाति से ही आते थे। 2020 के चुनावी आंकड़ों के अनुसार, मोकामा में ढाई लाख से अधिक वोटर हैं। इनमें 1 लाख 40 हजार के आसपास पुरुष, तो सवा लाख के आसपास महिला वोटर हैं।
मोकामा से लगातार पांचवीं बार विधायक बनकर इतिहास रचने वाले अनंत सिंह की विधायिकी इसी साल रद्द हो गयी थी। सजायाफ्ता होने की वजह से सरकार ने यह कड़ा कदम उठाया था। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट का प्रावधान है कि दो वर्ष से अधिक की सजा होने पर जनप्रतिनिधियों की विधायिकी रद्द कर दी जाएगी और अनंत सिंह को 10 साल की सजा सुनायी गयी थी। इसके बाद विधानसभा की ओर से जारी अधिसूचना के अनुसार, इसी साल 21 जून को उनकी विधायिकी रद्द कर दी गयी। सीट खाली होने पर छह माह के अंदर उपचुनाव कराने का प्रावधान है और इसके तहत अब 3 नंवबर को वोटिंग होगी और 6 नवंबर को काउंटिंग होगी।
पॉलिटिकल पंडितों के अनुसार, आरजेडी के कोटे में मोकामा सीट का जाना तय है और यह भी तय है कि यहां से अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी को ही टिकट मिलेगा। दुर्गापूजा के दौरान नीलम देवी ने डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव से मुलाकात भी की थी। इसके बाद से इस कयासबाजी पर मुहर भी लगभग लग ही गयी है। बस ऐलान होना बाकी है। दूसरी ओर यह भी कहा जा रहा है कि महागठबंधन की देखादेखी एनडीए की ओर से भी महिला उम्मीदवार के ही देने की कयासबाजी तेज है। हालांकि बीजेपी की ओर से मोकामा वाले ललन सिंह के उम्मीदवार बनने की प्रबल संभावना है। वे जदयू को छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए हैं। यह भी संभव है कि उनकी पत्नी मैदान आ जाए। लेकिन इतना तय है कि दोनों में से ही कोई एक को बीजेपी टिकट देगी। बता दें कि 1995 से बीजेपी मोकामा से चुनाव नहीं लड़ी है। यही वजह थी कि पिछले एक सप्ताह से बीजेपी नेता इसे लेकर चुनावी मैदान में लगातार ताल ठोक रहे हैं। विजय सिन्हा, सम्राट चौधरी से लेकर संजय जायसवाल तक कह रहे हैं कि मोकामा में बीजेपी महागठबंधन को धूल चटा देगी।
जहां तक मोकामा के इतिहास रचने की बात है तो 1967 में यहां से विष्णुधारी लाल को सफलता मिली थी। वे रिपब्लिक पार्टी ऑफ इंडिया के टिकट पर विधायक बने थे। मोकामा ने तब पहली बार इतिहास रचा था। दरअसल, विष्णुधारी लाल लवकुश समाज से आते थे। इस तरह पहली बार भूमिहार के गढ़ में किसी गैरभूमिहार समाज से विधायक बने थे। तब इस रिजल्ट ने सबको चौंका दिया था। इसके बाद 1972 में कृष्णा शाही को यहां से सफलता मिली। कृष्णा शाही मोकामा की पहली महिला विधायक बनीं। इतना ही नहीं, वे वहां से दोबारा 1977 में विधायक बनीं। दोनों ही बार वे कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतीं। यह सफलता उन्हें तब हाथ लगी, जब बिहार में कांग्रेस की स्थिति काफी खराब थी, लेकिन मोकामा के भूमिहारों ने कृष्णा शाही के पक्ष में खुलकर वोटिंग की थी। लेकिन, 1980 में कृष्णा शाही को कांग्रेस ने बेगूसराय से लोकसभा का टिकट दे दिया और वह वहां से जीत भी गयीं। यह तो आपको पता ही है कि बेगूसराय भी भूमिहारों का गढ है और बेगूसराय से भी इतिहास में अब तक दो ही बार गैरभूमिहार सांसद बने हैं। यही वजह रही कि 1991 के लोकसभा चुनाव में पूरे बिहार में कांग्रेस की एकमात्र सीट पर जीत मिली थी और वह सीट थी बेगूसराय से कृष्णा शाही की।
अब बात करते हैं कि अनंत सिंह की। अनंत सिंह कथा तो ‘हरि अनंत हरिकथा अनंता’ की तरह है। अनंत सिंह मामले में भी मोकामा ने कई इतिहास रचा। जब अनंत सिंह लगातार तीसरी बार 2010 में विधायक बने थे, तब यह मोकामा के लिए रिकॉर्ड ही था, क्योंकि इसके पहले वहां से कोई भी नेता तीन बार विधायक नहीं बने थे। इसके पहले दो ही बार विधायक बनने का रिकॉर्ड तीन नेताओं के नाम पर था। लेकिन, अनंत सिंह की जब सियासी पारी शुरू हुई तो चलती ही गयी और यह पारी अब जाकर रुकी है। 2015 में जब अनंत सिंह को किसी दल ने टिकट नहीं दिया तो वे निर्दलीय ही मैदान में उतर गए। इनके सामने सभी बड़बोले नेता ठंडा पड़ गए। लेकिन, अनंत सिंह की सियासी पारी कानून के डंडे के आगे ठंडा गयी। इसी साल उनकी विधायिकी रद्द कर दी गयी।
लेकिन, अब सियासी चर्चा है कि अनंत सिंह की विरासत संभालने उनकी पत्नी नीलम देवी मोकामा के मैदान में उतरने वाली हैं। केवल अंतिम मुहर नहीं लगी है। उनका मोकामा में सियासी भ्रमण शुरू भी हो गया है। इसमें उन्हें इसलिए भी दिक्कत नहीं हो रही है कि 2020 में वे ऐसा कर चुकी हैं। दरअसल, 2020 में अनंत सिंह जब आरजेडी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे, तो उस समय वे जेल में थे और उनके पीछे में उनकी पत्नी नीलम देवी ही चुनाव प्रचार की कमान संभाली हुई थीं। ऐसे में मोकामा का चप्पा-चप्पा उनका छाना हुआ है। इतना ही नहीं, नीलम देवी मुंगेर लोकसभा क्षेत्र से 2019 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव भी लड़ चुकी हैं। हालांकि, इसमें उन्हें सफलता नहीं मिली थी, लेकिन मोकामा विधानसभा की बात कुछ और है। पॉलिटिकल पंडित भी मानते हैं कि कास्ट फैक्टर के साथ ही अनंत सिंह की बादशाहत और महागठबंधन का लाभ नीलम देवी को मिल सकता है। खास बात कि इस बार महागठबंधन में नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू भी शामिल है।
मोकामा भूमिहारों का गढ़ है और यहां भूमिहार के बाद सबसे अधिक वोटर ब्राह्मण, कुर्मी, यादव और पासवान जाति से आते हैं। वहीं इस सीट पर राजपूत और रविदास जातियों के भी ठीकठाक वोटर हैं, लेकिन माना यही जाता है कि जिसके पाले में सवर्ण (भूमिहार-ब्राह्मण, राजपूत) वोट जाएंगे, उसकी जीत तय है। लेकिन, बीजेपी अनंत सिंह से फरियाने को हर तरीके से तैयारी कर रही है। ऐसे में अब देखना दिलचस्प होगा कि नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के उम्मीदवार यानी अनंत सिंह के उम्मीदवार से मुकाबला करने के लिए बीजेपी कौन-सा गेम खेलती है। हालांकि, जिस अंदाज में नेता प्रतिपक्ष विजय सिन्हा गरज रहे हैं, उससे लोग कहने लगे हैं कि लड़ाई रोचक भी हो सकती है। दरअसल, विजय सिन्हा भी मोकामा से ही आते हैं और वर्तमान में लखीसराय के विधायक हैं। उनकी नीतीश कुमार से दुश्मनी जगजाहिर हो गयी है। चर्चा यह भी है कि बीजेपी भी एनडीए की ओर से किसी महिला को ही उतारे जाने का मन बना रही है। अगर यह कयासबाजी सही होता है तो फिर मोकामा से जीते कोई भी, जीत महिला विधायक के नाम हो सकती है। यदि अंतिम समय में उम्मीदवारी में कुछ उलटफेर होता है तो फिर रिजल्ट तक इंतजार करने में ही भलाई है।