PATNA (MR) : पूरे बिहार में मां दुर्गा की प्रतिमाओं का विसर्जन किया जा रहा है। शहरी क्षेत्रों में प्रतिमाओं का विसर्जन रात में ही हो गया, जबकि गांवों में 24 से 48 घंटे में विसर्जन हो जाएगा। लेकिन इन सबके बीच पटना में बड़ी देवी और छोटी देवी का खोइंछा मिलन ने लोगों की आंखें डबाडबा दीं, वहीं बंगाली समुदाय और उसकी संस्कृतियों से जुड़े श्रद्धालुओं ने ‘सिंदूर खेला’ रस्म के साथ मां दुर्गा की आराधना की और उन्हें विदाई देते हुए महिलाएं मां-बेटी की तरह गले मिलीं।
दशहरा के उल्लास के बीच मां दुर्गा की प्रतिमाओं के विसर्जन चल रहा है। पटना समेत बिहार के कई जिलों खासकर भागलपुर, गया, नालंदा, कटिहार, दरभंगा आदि जिलों के कई दुर्गा मंदिरों व पंडालों में बंगाली समाज की महिलाओं ने ‘सिंदूर खेला’ रस्म के साथ की मां शेरावाली की आराधना की। मां दुर्गा की भक्ति में डूबीं ये महिलाएं नृत्य भी कीं। सिंदूर खेला को ये लोग सिंदूर होली भी कहते हैं। पटना के बंगाली अखाड़ा व भागलपुर के आदमपुर स्थित कालीबाड़ी, दुर्गाबाड़ी व सरकारीबाड़ी में सिंदूर खेलकर मां को विदाई दी गई। महिलाओं की मानें तो सिंदूर, बिंदी और चूड़ी सुहाग की निशानी के रूप में जाना जाता है। मां दुर्गा को सिंदूर सबसे ज्यादा प्रिय है। यही वजह है कि विजयादशमी और मां की विदाई के अवसर पर महिलाएं एक-दूसरे के चेहरे पर सिंदूर लगाकर मां को विदाई देती हैं। अपने पति के लंबे आयु की कामना करती हैं। यह परंपरा बंगाली समाज से जुड़ी है। बिहार में इनका प्रचलन उन्हीं जगहों पर ज्यादा है, जहां बंगाली समाज से जुड़े लोग हैं।
किंवदंती है कि बंगाली समाज में सिंदूर खेला या सिंदूर होली की परंपरा लगभग 400 वर्षों से चली आ रही है। इस मौके पर महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं और माता रानी से सुख समृद्धि के साथ पति के लंबी उम्र की कामना करती है। फिर मां को मुंह मीठा कराकर विदाई दी जाती है। महिलाएं पान पत्ता से मां का गाल सहलाती हैं और अगले साल फिर आने के लिए निमंत्रण देती हैं। कहा जाता है कि इस सिंदूर खेला की रस्म के दौरान कुंवारी लड़कियां भी पहुंचती हैं। कुंवारी लड़कियों को यदि सिंदूर लग जाता है तो उसकी शादी में कोई परेशानी नहीं होती है। यारपुर में लगभग 69 वर्ष पूर्व कालीबाड़ी मंदिर की स्थापना की गई थी। यहां नवरात्रि के समय 10 दिनों तक आयोजित होने वाली इस पूजा में षष्टी के दिन से ही महिलाएं माता के पट खुलने के साथ पूजा आराधना में जुटी रहती हैं। विसर्जन के दिन बंगाली समाज की महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर सिंदूर होली खेलती हैं।
दूसरी ओर, विजयादशमी को दिनभर पूरे पटना में मूर्ति विसर्जन का सिलसिला चलता रहा। इस दौरान पटना सिटी में बड़ी देवी व छोटी देवी के खोइंछा मिलन की बात ही निराली रही। अनुमंडल कार्यालय के समीप शेख बूचर का चौराहा में रात लगभग 11 बजे मारूफगंज की बड़ी देवी जी (बड़ी बहन) और महाराजगंज की छोटी देवी जी (छोटी बहन) का खोइंछा मिलन हुआ तो दर्शन को उमड़े श्रद्धालुओं व भक्तों की आंखें डबडबा गयीं। दोनों बहनों के बीच खोइंछा की अदला-बदली हुई। इस विह्वल और पुलकित करने वाले क्षण के लिए लोग साल भर से पलक पावड़े बिछाए रहते हैं। लोगों ने खोइंछा मिलन को अपनी आंखों में कैद करने को व्याकुल दिखे। कुछ लोग मोबाइल फोन में इस सुखद पल को सदा के लिए कैद कर रहे थे।