PATNA (MR) : शिर्डी के साईं बाबा को लेकर कुछ तथाकथित स्वयंभू सनातनी कथावाचक दुष्कथा वाचन में दिनरात सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं। उन्हें लेकर ‘अनाप-शनाप’ बयान दे रहे थे। इसे लेकर बाबा के भक्तों और समर्थकों में बेहद नाराजगी है। पटना के कंकड़बाग स्थित श्री साईं मंदिर के सचिव राजेश कुमार उर्फ डब्लू ने सोशल मीडिया पर उन तथाकथित स्वयंभू सनातनी कथावाचकों को करारा जवाब दिया है। यहां उनके विचार अक्षरशः प्रकाशित किए जा रहे हैं। इस आलेख में लेखक के निजी विचार हैं। इससे ‘मुखियाजी डॉट कॉम’ का कोई लेना-देना नहीं है।
अभी से कुछ साल पहले इस संसार से प्रस्थान कर चुके शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती जो संतों के चरित्र के विपरित मधुर वाणी के बदले शिर्डी के साईं, जिन्हें उनके अनुयायी सद्गुरू के रूप में पूजते हैं, उनके खिलाफ जहर उगलने का काम करके नाम और शोहरत हासिल करके अपनी दुकान चलाना चाहते थे। लेकिन एक महान संत के खिलाफ उनका दुष्प्रचार अभियान कुछ भी काम न कर सका। मैं पूरी विनम्रतापूर्वक कुछ तथ्य से आप सभी को रूबरू कराना चाहता हूं। साईं बाबा का जन्म कैसे हुआ, इसकी जानकारी किसी को भी नहीं है, क्योंकि 16 वर्ष की तरुण अवस्था में शिर्डी वासियों से पहली बार रूबरू हुए थे। वे मूलत: किस धर्म या जाति के थे, वह भी किसी को भी ज्ञात नहीं था. दूसरी बार वे एक धनाढ्य मुस्लिम चांद पाटिल के आग्रह पर उनके साले की बारात में शिर्डी आए। जहां महाल्सापति समेत अन्य ग्रामवासियों ने ‘आओ साईं’ कहकर उनका स्वागत किया। इसके बाद वे ‘साईं’ नाम से लोकप्रिय हो गए। फिर जीवनपर्यंत शिर्डी में ही निवास करते रहे।
सबको पता है कि बाबा जीवनयापन के लिए भिक्षा पर आश्रित थे और भिक्षाटन के पैसों और खाने की वस्तुएं अन्य जरूरत मंद गरीबों में बांट दिया करते थे। वे मदिरा सेवन के घोर विरोधी थे और उन्होंने कभी भी शराब का सेवन नहीं किया। वे भिक्षाटन के पैसों से ही गांजा खरीदते और धूनी के लिए लकड़ियां भी मोल लिया करते थे। पूरा जीवन उन्होंने एक अग्निहोत्र ब्राह्मण की तरह समाधिपर्यंत धूनी प्रज्जवलित करके रखा, जो आज भी शिर्डी समेत सभी महत्वपूर्ण साईं मंदिरों में प्रज्जवलित है, बाबा की तपोअग्नि के रूप में। आज भी दिव्य उदी असाध्य रोगों के उपचार में कारगर है।
बाबा के प्रारंभिक काल में भी उनसे जुड़े हुए भक्तों ने साईं बाबा के भीतर व्यापक रूप से एक संत चरित्र को परखा और शिर्डी जैसा एक छोटा-सा गांव आज अंतरराष्ट्रीय मानचित्र पर ख्याति प्राप्त कर रहा है। बाबा ने अपने भक्तों को विष्णुसहस्त्रनाम के श्लोकों को पढ़ने के लिए प्रेरित किया। राजाराम के नामजप के लिए प्रेरित किया तो किसी को गीता पाठ का महत्व भी बताया। शिर्डी के तत्कालीन सभी हिंदू मंदिरों के जीर्णोद्धार करवाया। उनके अनुयायी सिर्फ अशिक्षित गांववाले ही नहीं थे, बल्कि उच्चशिक्षित महाराष्ट्र हाईकोर्ट के जज बैरिस्टर मामलतदार और धनाढ्य व्यापारी भी थे, जिनका बाबा पर दृढ़ विश्वास था। उन्होंने अपने अनुयायियों को श्रद्धा और सबुरी का महामंत्र प्रदान किया, जिसका अर्थ है ईश्वर के प्रति सच्ची श्रद्धा और धैर्य, जिसके बूते समस्त प्राणी इस भवसागर से पार निकल सकते हैं। बाबा भले ही समाधिस्थ हों, लेकिन उनके वचनानुसार समाधि में विश्राम पा रही उनकी अस्थियां भी अपने भक्तों के कल्याणार्थ सदैव उपस्थित रहती हैं, जिसका अनुभव हम भक्तों ने सदैव महसूस किया है। जया मनी जैसा भाव तया तैसा अनुभव।
बाबा के समाधिस्थ हुए एक लंबा अरसा बीत चुका है, लेकिन शिर्डी संस्थान की मासिक आमदनी तिरुपति बालाजी मंदिर के समकक्ष है और करोड़ों रुपये हैं, जिसका प्रबंधन सरकार के रिसीवर के हाथों में है और उसके पैसों से चल रही कई संस्थाओं से लाखों लोगों को नौकरी मिली है और कई जनकल्याणकारी योजनाएं चल रही हैं। बाबा का ना तो कोई अपना परिवार ही था जिसके लिए उन्होंने कोई निजी धन संचय किया, बल्कि शिर्डी संस्थान एक जनकल्याणकारी सार्वजनिक संस्था है। उनके व्यक्तित्व के खिलाफ आजादी के समय अंग्रेजों ने भी काफी षड्यंत्र किया, क्योंकि वे सर्वधर्म सम्भाव के पक्षधर थे। हिंदू-मुसलमान को आपस में लड़वाने की अंग्रेजों की नीति को बाबा ने धराशायी कर दिया। इसके कारण उनकी काफी जांच-पड़ताल की गयी, जिसका जिक्र तत्कालीन ब्रिटिश गजेटियर में भी मिलता है। बाद में ब्रिटिश सरकार ने भी उन्हें संत माना।
सनातन धर्म की चिंता से ग्रसित तथाकथित छुटभैयों को सबसे पहले अपने गिरेबान में झांकना चाहिए। मंदिरों और मठों में दुराचार और अत्याचार से प्राप्त हजारों एकड़ जमीन और अकूत धन संपत्तियों को हड़प के बैठे हुए हैं। उससे कितने मंदिरों को भव्य बनाया जा सकता है। धर्मार्थ कार्य किए जा सकते हैं। एक बात का ख्याल रहे, हम साईं को सद्गुरु मानते हैं। उनके बताए मार्ग का अनुसरण करते हैं और शुद्ध रूप से हिंदू हैं। श्रीराम और श्रीकृष्ण, मां आदिशक्ति, बजरंगबली और सभी हिंदू देवी-देवताओं का श्रद्धापूर्वक पूजा करते हैं। श्री साईं के अनुयायी एक या दो नहीं, बल्कि करोड़ों की संख्या में हैं। हम आपके जैसे टुच्चों की भाषा नहीं बोलते, लेकिन हर तरह से आपके जैसे चवन्नी-अठन्नी को औकात में रखने की औकात भी रखते हैं। मेरी बातें किसी को व्यथित करने के लिए नहीं कही गयी है।
(लेखक राजेश कुमार उर्फ डब्लू पटना के कंकड़बाग स्थित श्री साईं मंदिर में सचिव हैं और यहां प्रकाशित आलेख उनके निजी विचार हैं।)