महाराष्ट्र नहीं यह बिहार है, नीतीश के रहते बीजेपी की दाल नहीं गलनेवाली; ‘भारत रत्न’ के नाम पर सरेंडर ?

PATNA (RAJESH THAKUR) : बिहार से लेकर दिल्ली तक सियासी हलचल तेज है। बीजेपी क्या करना चाह रही है, इसका संदेश साफ है। लेकिन कैसे करे, उसे समझ में नहीं आ रहा है। बीजेपी ‘टेस्ट’ तो करती है, लेकिन रिजल्ट के पहले ही वह ‘डैमेज कंट्रोल’ में भी जुट जाती है। पिछले दिनों केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने CM पद को लेकर ‘कंफ्यूजन’ वाला बयान देकर ‘सियासी टेस्ट’ किया तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ऐसी चाल चली कि बीजेपी के सारे नेता उनके आगे एक पैर पर खड़े हो गए। इतना ही नहीं, ‘आंबेडकर पॉलिटिक्स’ पर भी अमित शाह घिरे हुए हैं, जबकि इस मुद्दे पर नीतीश कुमार पूरी तरह चुप हैं। इसे लेकर ‘सांकेतिक हमले’ चल ही रहे थे कि उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा का बयान ने जदयू खेमे में हलचल मचा दिया। इसका ऐसा असर हुआ कि विजय सिन्हा को चंद घंटे में ही ‘डैमेज कंट्रोल’ वाला प्रेस बयान जारी करना पड़ा और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी का सबसे ‘चेहेता नेता’ बताना पड़ा। यही नहीं, गिरिराज सिंह जैसे दिग्गज नेता व केंद्रीय मंत्री को कहना पड़ा कि नीतीश कुमार को ‘भारत रत्न’ मिले।

दरअसल, देश की सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी की दिली इच्छा है कि बिहार में उसकी अपनी सत्ता हो। उसका अपना मुख्यमंत्री हो। यह इच्छा पार्टी नेताओं को अंदर ही अंदर सालता रहता है। इसे लेकर समय-समय पर दबी जुबान से नेता बयान भी देते हैं, लेकिन नीतीश कुमार की भृकुटी जैसे ही तनती है, सबके होश फाख्ता हो जाते हैं। हां, जब नीतीश कुमार महागठबंधन के साथ होते हैं, तब बीजेपी की ओर से अपनी सत्ता को लेकर बड़े-बड़े बयान आते हैं, किंतु उनके NDA में आते ही सबकी बोलती बंद हो जाती है। वे मुख्यमंत्री के कसीदे भी पढ़ने लगते हैं। भाजपा को अच्छे से पता है की बिहार में नीतीश कुमार जिधर रहेंगे, सरकार उसकी ही बनेगी। खुद अमित शाह बिहार की चुनावी सभा में इस सच को खुले मंच से स्वीकार कर चुके हैं। तब उन्होंने चुनावी सभा में कहा था कि बिहार में नीतीश कुमार NDA के साथ रहेंगे तो NDA की सरकार बनेगी, महागठबंधन के साथ रहेंगे तो उसकी सरकार बनेगी। पिछले कई चुनाव इसके गवाह भी हैं। 2015 और 2020 में हुए विधानसभा चुनावों के रिजल्ट को पूरे देश ने देखा।

2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार महागठबंधन के साथ थे। तब नारा दिया गया था- फिर से नीतीशे कुमार… एक बार फिर जदयू ने NDA में आपसी खींचतान के बीच पोस्टर जारी किया है, जिसमें सिर्फ नीतीश कुमार का खड़ा फोटो है और उस पर लिखा है- 2025 फिर से नीतीश। इसके पहले पार्टी की ओर से एक और पोस्टर जारी हुआ था, जिसमें लिखा हुआ था- ‘जब बात बिहार की हो, नाम सिर्फ नीतीश कुमार का हो…’। आपको बता दें कि पिछले पखवारे अमित शाह से एक टीवी चैनल के कार्यक्रम में एकंर ने पूछा कि क्या नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार में चुनाव लड़ेंगे? इस पर उन्होंने कहा, ‘देखिए इस तरह का मंच पार्टी के डिसिजन लेने के लिए या बताने के लिए नहीं होता है। मैं पार्टी का डिसिप्लिन कार्यकर्ता हूं। पार्टी पार्लियामेंट्री बोर्ड की बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा होगी और फैसला लिया जाएगा।’ यह मामला ऐसा गरमाया कि पार्टी के सारे लोग नीतीश कुमार के आगे नतमस्तक हो गए। यहां तक कि भाजपा वाले ही नीतीश कुमार को ‘भारत रत्न’ देने की मांग करने लगे। अब यह अलग बात है कि वे ‘भारत रत्न’ की मांग किससे कर रहे हैं, जबकि केंद्र में सरकार भी भाजपा की ही है।

सियासी पंडितों की मानें तो नीतीश कुमार के मन में क्या रहता है, इसे भांपने की ताकत किसी में नहीं है। वे कब, कौन-सी चाल चलेंगे, यह कहना मुश्किल है। इसी बार जैसे ही अमित शाह का बयान आया, वे बीमार पड़ गए। बिहार बिजनेस कनेक्ट जैसे बड़े कार्यक्रम में भी वे नहीं गए। जबकि, इस बार रिकॉर्ड 1 लाख 80 हजार करोड़ के MoU पर साइन हुआ है। मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में नहीं जाने से उद्योगपतियों को तो निराशा हुई ही, साथ ही उद्योग मंत्री नीतीश कुमार को भी काफी निराशा हुई। यहां तक कि एक बार फिर नीतीश कुमार के पलटने की चर्चा गरम है। राजद के कुछ MLAs इसे हवा भी दे रहे हैं। ‘पलटने’ और ‘नहीं पलटने’ के पक्ष-विपक्ष में लंबी-लंबी बहस जरूर चल रही है, लेकिन गारंटी से कोई नहीं कह रहा है कि नीतीश कुमार क्या करेंगे?

दरअसल, भाजपा का ‘सियासी खेल’ अभी-अभी लोगों ने महाराष्ट्र में देखा है, किस तरह एकनाथ शिंदे को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। फडणवीस के रास्ते बीजेपी महाराष्ट्र की सत्ता में आ गयी। लेकिन यह बिहार है। बिहार और महाराष्ट्र की राजनीति में अंतर है। वहां लालू यादव की तरह उद्धव ठाकरे ‘मजबूत’ नहीं हैं। यदि यहां बीजेपी के मन में लालू यादव का डर नहीं रहता तो वह नीतीश कुमार को कब का सत्ता से बाहर कर दिया रहता। जम्मू-कश्मीर की पिछली सरकार में महबूबा मुफ्ती को भी सत्ता से हटाने में बीजेपी को देर नहीं लगी थी। बिहार में इसी मजबूरी की वजह से महज 45 विधायक रहने के बाद भी नीतीश कुमार को CM बनाना स्वीकार है। जब नीतीश दूसरी बार महागठबंधन में गए थे तो उन्होंने कई दफा कहा था कि हमें CM बनने का कोई शौक नहीं था, लेकिन उनलोगों ने जबरदस्ती बना दिया। बहरहाल, बिहार की सियासत एक बार गरम है। बयानों और पोस्टरों का दौर चल रहा है। पलटने और नहीं पलटने पर भी बहसबाजी तेज है, लेकिन इन सबके बीच न नीतीश कुमार कुछ बोल रहे हैं और न ही आंबेडकर के नाम पर सियासी दरिया में हलचल मचाने वाले अमित शाह ही कुछ बोल रहे हैं। दोनों को ही लोग सियासत का ‘चाणक्य’ मान रहे हैं, जबकि कम लोगों को पता है कि नीतीश कुमार में ‘चाणक्य’ के साथ ही ‘चंद्रगुप्त’ के गुण का भी समावेश है।