बर्गर-पिज्जा में न उलझें; सादा बनाएं या मक्खन डाल कर, लेकिन बिहार वालों साग जरूर खाएं

BIHAR DESK (SMR) : हमारे भोजन में हरी पत्तियों का समावेश हमेशा से रहा है। हम इन पत्तियों को न केवल कच्चे खाते हैं, वरन कुछ को पका कर भी खाते हैं। सलाद की जो पत्तियां होती हैं, उन्हें हम कच्चा खाते हैं, पर पका कर खाने वाली पत्तियों को हम साग की श्रेणी में रखते हैं। वैसे साग शब्द शाक से निकला हुआ है जो हरी पत्तियों आदि के लिए प्रयुक्त होता है। साग-पात भी एक शब्द है। पर यहाँ हम ग्रामीण इलाकों में बेहद ही लोकप्रिय व्यंजन साग की आज चर्चा करने जा रहे हैं। यह आलेख प्रकृति प्रेमी डॉ शंभु कुमार सिंह के फेसबुक वाल से उद्धृत है, जो यहां अक्षरशः प्रकाशित किया जा रहा है: 

बिहार में साग केवल स्थानीय भोजन परंपरा में ही शामिल नहीं है, वरन यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी लोकप्रिय है। साग बिहार का बेहद सुस्वादु व्यंजन है। पर, हरियाणा और पंजाब में सरसों का साग और मकई की रोटी काफी ख्यात है। हम अपने गांव में किस्म किस्म के साग खाते रहे हैं। लाल साग, चौलाई का साग, चना का साग, खेसारी का साग, बथुआ का साग, सरसों का साग, कुसुम का साग, पालक का साग, मेथी का साग, पटुआ का साग, नूनी का साग, सनई का साग मतलब किस्म गिनाते हुए थक जाऊं उतने साग हैं। 

सामान्यतया हमारे बिहार में साग को महीन-महीन काट कर उसे हंडे में पकने हेतु आंच पर चढ़ा दिया जाता है और पूरा गलने पर उतार नमक, हरी मिर्च, लहसुन, अदरख के साथ सरसों का तेल डाल सान लिया जाता है। फिर परोसा जाता है खाने हेतु। खाने वाले वाह-वाह कहते रह जाते हैं। यह एक सामान्य विधि हुई साग बनाने की, पर क्षेत्र विशेष और अपने विशिष्ट स्वाद के लोग इसे अन्य तरीकों से भी बनाते हैं। कोई इसे प्लेन केवल छौंक लगा कर बनाते तो कुछ लोग मसाला भी डालते हैं। कुछ लोग इस साग में मक्खन भी डालते हैं, पर अपने बिहार में सीधे लोग और उनका सीधा सादा बनाने की आदत है। साग में नमक तेल साने और परोस दिए। 

हमलोग साग में आलू, पनीर, मशरूम आदि डाल भी बनाते हैं पर उसे हम साग नहीं कहेंगे वरन वह तरकारी का एक अलग व्यंजन हो जाता है। साग का मतलब ही है कि इसे एक गरीब से लेकर अमीर तक खा सके। खेत से तोड़ ताजा-ताजा ले आये, पकाए और नमक, मिर्च, तेल, लहसुन, अदरख डाल बना डाले। लेकिन, कुछ साग बिना मसाला का ठीक नहीं लगता उसमें सनई का साग, मेथी का साग और कुसुम का साग मुख्य हैं। 

हम तो गांव से जुड़े हुए हैं तो इन सागों का रसास्वादन किये हुए हैं, पर हमारे बच्चे पिज्जा और बर्गर में उलझ कर इस अप्रतिम स्वाद से विलग हो रहे हैं। अभी हाल में ही मैं घर से चना का साग लाया था, जिसे पत्नी कई दिनों तक कुछ-कुछ कर बनाती रहीं और हम इसका आनंद लेते रहें। बल्कि एक दो मित्रों को भी हमने उपहार में दिया। इस साल कुसुम का साग बहुत दिनों बाद मुझे खाने को मिला। गांव में जब रहता था तो आलू के खेत में कुसुम, मूली, मेथी, पालक आदि के बीज छींट दिए जाते थे, जो हम समय-समय पर उखाड़ लाते थे, जिनकी पत्तियों के साग घर में एक उत्सव का माहौल तैयार करते थे। बथुआ तो अनेरा ही खेतों में उपजा मिलता था, जो पटना में 100/- रुपये किलो तक बिका है इस बार। 

अब रसायनिक खादों का अवैज्ञानिक प्रयोग और खरपतवारनाशी का अंधाधुंध व्यवहार बथुआ जैसे सागों के भी नैसर्गिक अस्तित्व पर संकट की काली छाया डाल चुके हैं। एक वक्त आएगा, जब अलुआ, केसउर, मंडुआ, कउनी की तरह यह भी गांव से विलुप्त हो जाएगा और हमारे जीवन से पौष्टिकता की कमी को और बढ़ा देगा। हाँ, यह तब बड़े-बड़े मॉल में भुट्टे आदि के संग बिकते नजर आएंगे। खैर, आगे जो हो, लेकिन आजकल आप भी जरूर इसका आनंद लें। अभी पटना में उपलब्ध है। सीजन भी है। पटना में अंटाघाट सब्जी मंडी में कुसुम, चना, पालक, मेथी, बथुआ के साग मिल रहे हैं। खरीदिये और आनंद लीजिये। 

साग बनाना भी एक कला है। पहले तो इसे सही ढंग से झाड़-झुर देना चाहिए, क्योंकि यह है तो सागपात ही तो है। ऐसे में पिल्लू-पताई को सही ढ़ंग से देखना अनिवार्य है। तो अच्छी तरह से झाड़ने के बाद इसे धोकर महीन-महीन काटिए। साग काटना भी एक कला है। बिना अंगुली काटे साग काटना बहुत बड़ा स्किल्ड कार्य है। पकाने में पानी नहीं दें, क्योंकि साग जब पकता है तो खुद पानी भी छोड़ता है। आप या तो साग को बिना जलाए इस पानी को आंच पर ही सूखा दें, अन्यथा आप इसे निथार (पसा) लें। 

साग पकने और गलने के बाद यह महीन-सा सना जाए, इसके लिए दलघोंटना से महीन घोंट दें या दलघोंटना नहीं है रसोईघर में, जो अब स्वाभाविक है, क्योंकि कुकर और मिक्सी ने इसे बाहर का रास्ता दिखा दिया है तो साग को मिक्सी से हल्के पीस लें, पर इस स्थिति से बचने की ही कोशिश करें तो अच्छा है। 

साग को ताजा खाइए, पर बासी भी यह काफी स्वादिष्ट होता है। बासी मकई की रोटी संग साग खाने का भी क्या गजब का स्वाद होता है! साग के साथ मकई की रोटी, भात और अलुआ संग का मेल बहुत ही सुस्वादु होता है। अब आप पूरी, पुआ संग साग का मजा नहीं ले सकते ! उसके लिए पालक पनीर ठीक है, जो साग नहीं, तरकारी है। मेथी, कुसुम, सनई को आप सरसों के मसालों के साथ बना सकते हैं। पालक आदि को सरसों एवं गरम मसालों के साथ भी बना सकते हैं। नखरेबाज बच्चे भी इसे खाना पसंद करेंगे, जो सपने में भी पिज्जा-पिज्जा चिल्लाते हैं। तो कीजिए एक कोशिश। थोड़ा ही खाइए, पर जरूर खाइए।

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