PATNA (APP) : बिहार में अब कुढ़नी विधानसभा उपचुनाव को लेकर सियासी सिर फुटौव्वल शुरू हो गया है। नेताओं का जनसंपर्क चरम पर है। मुख्य तौर पर चार खेमों ने अपने पहलवानों को उतार दिया है। महागठबंधन की ओर से जेडीयू ने मनोज कुशवाहा को टिकट दिया है। बीजेपी ने अपने पुराने सेनापति केदार गुप्ता को प्रत्याशी बनाया है। जबकि असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने गुलाब मुर्तुजा अंसारी और मुकेश सहनी की पार्टी VIP ने साधु शरण शाही के पोते निलाभ कुमार को उम्मीदवार बनाया है। चारों दलों के प्रत्याशियों का नामांकन भी हो गया है। कुढ़नी की कहानी का स्क्रिप्ट इस बार चेंज होगा या फिर कुढ़नी नयी इबारत लिखेगी, यह तो 8 दिसंबर को पता चलेगा, लेकिन जातीय गणित पर यहां की जीत-हार का पूरा हिसाब टिका हुआ है। और, यहां सीधी लड़ाई नीतीश कुमार वर्सेज नरेंद्र मोदी की है। 

सियासी पंडितों की मानें तो कुढ़नी की लड़ाई बहुत आसान नहीं है। खास कर जेडीयू के लिए तो बिल्कुल ही आसान नहीं है। दरअसल, बिलकुल यही स्थिति में बीजेपी ने 2015 में महागठबंधन को पटकनी दे चुकी है और 2022 के उपचुनाव की स्थिति बिलकुल 2015 वाली ही है। ऐसे में आप कह सकते हैं कि इस बार भी मुकाबला काफी दिलचस्प होने वाला है तथा इसका सारा दारोमदार कुढ़नी के जातीय गणित पर डिपेंड करता है। 

यदि जातीय गणित के आईने में कुढ़नी को देखें तो इस विधानसभा में भूमिहार, कोइरी, मल्लाह, यादव वोटरों की संख्या अच्छी खासी है। मुसलमान और वैश्य वोटर भी प्रभावशाली भूमिका में हैं। ऐसे में सभी पार्टियां इस सीट को लेकर काफी सजगता से चुनाव लड़ रही हैं। बता दें कि मुजफ्फरपुर जिले में आने वाले कुढ़नी विधानसभा क्षेत्र पूरी तरह से गांव वाला इलाका है। यहां लगभग 3 लाख 12 हजार वोटर हैं। यहां वैश्य वोटरों की संख्या लगभग 37 हजार है। वहीं मुस्लिम वोटरों की संख्या करीब 34 हजार के आसपास है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, इसी तरह कुढ़नी में यादव – 35 हजार, भूमिहार – 30 हजार, मल्लाह – 30 हजार, कुशवाहा – 20 हजार, कुर्मी – 10 हजार, राजपूत – 10 हजार से अधिक, ब्राह्मण – 9 हजार, अनुसूचित जाति – 54 हजार, अन्य पिछड़ी जाति – 42 हजार से अधिक है। 

सियासी पंडितों की मानें तो मुस्लिम वोटरों की संख्या को देखते हुए ही असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने एक बार फिर कुढ़नी में महागठबंधन को टेंशन देने के लिए कमर कसी है। इसीलिए पार्टी ने कैंडिडेट देने का ऐलान गोपालगंज में रिजल्ट निकलने के तुरंत बाद ही कर दिया था। इसी के साथ ही वीआईपी पार्टी के मुखिया मुकेश सहनी ने भी अपना उम्मीदवार उतार दिया है। दरअसल, अपनी-अपनी जाति और संप्रदाय को देखते हुए मुकेश सहनी और असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेताओं ने यहां से किस्मत आजमाने के लिए ही प्रत्याशी दिये हैं। 

गौरतलब है कि एनडीए और महागठबंधन में घूम चुके मुकेश सहनी इन दिनों अपनी पार्टी के लिए जमीन तलाश रहे हैं। वहीं असदुद्दीन ओवैसी अपनी पार्टी के विस्तार के साथ 2024 लोकसभा और 2025 में होने वाले विधानसभा चुनाव में मुसलमानों को अपने पक्ष में लामबंद करने की कोशिश में जुटे हैं। यही वजह है कि AIMIM कुढ़नी में विधानसभा चुनाव लड़ कर अपने मुसलमान वोट बैंक के बेस को मजबूत करना चाहती है। दरअसल, AIMIM सीमांचल से निकलकर हाल ही गोपालगंज में महागठबंधन को जोरदार झटका दे चुकी है और इसकी पुनरावृति कुढ़नी में दोहराना चाहती है। 

यह तो आपको पता ही है कि 2020 के चुनाव में इस सीट से आरजेडी के टिकट पर अनिल सहनी जीते थे, लेकिन घोटाले में फंसने की वजह से उनकी विधायकी चली गई थी। जिसकी वजह से यह सीट खाली हो गयी और यहां से उपचुनाव कराए जा रहे हैं। कुढ़नी का ये उपचुनाव ऐसे वक्त में हो रहा है, जब बिहार में दो सीटों पर उपचुनाव के नतीजे आ चुके हैं और सामाजिक समीकरणों को लेकर पॉलिटिकल एक्सपर्ट जीत-हार का पोस्टमार्टम करने में जुटे हैं। बता दें कि कुढ़नी में बीजेपी को उम्मीदवार फाइनल करने में काफी माथापच्ची करनी पड़ी है। सारे जातीय समीकरण को देखते हुए पार्टी ने केदार गुप्ता को टिकट दिया है। हालांकि, केदार गुप्ता को टिकट देने के पहले बीजेपी ने भूमिहार और कुशवाहा वोट बैंक पर भी मंथन किया। लेकिन वैश्य वोट को टूटने का रिस्क वह नहीं उठा सकी। 

दरअसल, बिहार की राजनीति में इन दिनों जिस भूमिहार वोट को लेकर भूचाल मचा है, उस पर भी बीजेपी ने काफी मंथन किया। बीजेपी की चिंता के पीछे बोचहां इफेक्ट को लोग देख रहे हैं। बोचहां का गणित और उपचुनाव आपको याद होगा। वह चुनाव बिहार में बीजेपी से भूमिहारों की नाराजगी की प्रयोगशाला बना था। इसका असर गठबंधन टूटने से लेकर महागठबंधन मंत्रिमंडल और मोकामा में अनंत सिंह की जीत तक दिखा है। मुजफ्फरपुर जिले में भूमिहारों की नाराजगी की एक स्थानीय वजह भी है। असल में मुजफ्फरपुर शहर में भूमिहार जाति से आने वाले सुरेश शर्मा 2020 में चुनाव हार गए थे। इस हार की एक बड़ी वजह ये रही कि बीजेपी के कोर वोटर माने जाने वाले वैश्य समुदाय ने इस सीट पर महागठबंधन के उम्मीदवार विजेंद्र चौधरी को वोट किया था। मुजफ्फरपुर और कुढ़नी विधानसभा आसपास ही है। लिहाजा, इस समीकरण ने कुढ़नी पर भी असर डाला। कुढ़नी में तब बीजेपी से वैश्य उम्मीदवार केदार गुप्ता थे। भूमिहारों ने मुजफ्फरपुर का बदला कुढ़नी में बीजेपी के वैश्य उम्मीदवार के खिलाफ वोट देकर ले लिया था। 

बहरहाल, सारे समीकरण के बाद भी महागठबंधन 2015 के चुनाव को नहीं भूला है। 2015 में भी बिलकुल आज वाली ही स्थिति थी। उस समय भी बिहार की सियासत ऐसी ही थी। यानी जेडीयू और आरजेडी महागठबंधन के मजबूत पार्ट थे। नीतीश कुमार और लालू यादव एक बैनर के तले थे। इसके बाद भी कुढ़नी से बीजेपी ने अपना परचम लहराया था और केदार गुप्ता ने बाजी मारी थी। लेकिन इस बार मुकेश सहनी और ओवैसी, दोनों के उम्मीदवार मैदान में हैं। वे किसका खेल बिगाड़ेंगे, नहीं कहा जा सकता है। ऐसे में कुढ़नी की कहानी दिलचस्प मोड़ पर आ गयी है।

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