बिहार के नए राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान को जानें 5 पॉइंट्स में, जनता पार्टी से 26 की उम्र में बने थे MLA; कांग्रेस में भी रहे हैं

  • यूपी के बुलंदशहर के रहने वाले हैं बिहार के नए राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान, अपने बयानों को लेकर रहते हैं सुर्खियों में
  • इसी साल फरवरी में आए थे मधुबनी, तब कहा था- मिथिला के बगैर अयोध्या की कल्पना बेकार
  • इन्होंने यूपी CM योगी के स्लोगन ‘बंटोगे तो कटोगे का किया था समर्थन, भोपाल में हुआ था कार्यक्रम का आयोजन
  • छात्र जीवन से ही आ गए थे पॉलिटिक्स में, जपा के बाद कांग्रेस, जनता दल और बसपा में भी हुए थे शामिल, फिर BJP में आए और अब तक हैं
  • पेशे से वकील पत्नी रेशमा आरिफ भी कानपुर से रह चुकी हैं MLA, दो बेटे हैं जो पॉलिटिक्स में नहीं हैं
  • कांग्रेस में रहते राजीव गांधी से हुआ था विवाद, केरल के राज्यपाल रहते CM विजयन से चल रही थी ‘खटपट’

PATNA (RAJESH THAKUR) : बिहार के ‘नए सियासी माहौल’ के बीच राज्य में अचानक बड़ा फेरबदल हो गया है। राज्य को नया राज्यपाल मिल गया। बड़ा दिन की पूर्व संध्या पर देर रात केंद्र सरकार ने बड़ा निर्णय लेते हुए केरल के वर्तमान राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान (Arif Mohammad Khan) को बिहार के नए राज्यपाल की जिम्मेदारी दी। देर रात राष्ट्रपति भवन ने इसकी अधिसूचना भी जारी कर दी। बिहार के निवर्तमान राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर को केरल की जिम्मेदारी दी गयी है। वे अब केरल के राज्यपाल होंगे। आरिफ मोहम्मद खान छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय रहे हैं। ये और इनकी पत्नी दोनों विधायक रहे हैं। 26 साल के बाद बिहार को मुस्लिम राज्यपाल मिला है।

आइये जानें नए राज्यपाल को

1. बुलंदशहर के हैं रहने वाले

बिहार के नए राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान मूल रूप से उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के रहने वाले हैं। छात्र राजनीति से सियासत में कदम रखने वाले आरिफ मोहम्मद खान की पहचान एक ऐसे नेता की रही है, जो तमाम मुद्दों पर बेबाकी से अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इनके परिवार का राजनीति से पुराना संबंध रहा है। इनकी प्रारम्भिक पढ़ाई बुलंदशहर में हुई है। हाई एजुकेशन में इन्होंने जामिया मिलिया स्कूल, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अलावा लखनऊ के शिया कॉलेज से भी डिग्री हासिल की।

2. छोड़ दी थी MBBS की पढ़ाई

आरिफ मोहम्मद खान के पिता चाहते थे कि उनका पुत्र डॉक्टरी की पढ़ाई करे। वे इन्हें डॉक्टर बनाना चाहते थे। इनका अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में मेडिकल की पढ़ाई के लिए एडमिशन भी करा दिया गया। लेकिन, इनकी रूचि तो पॉलिटिक्स में थी। सो, इन्होंने MBBS की पढ़ाई बीच में ही ड्राप कर दी तथा स्नातक (BA) में फिर से नामांकन करा लिया। इसके बाद पूरी तरह पॉलिटिक्स के मैदान में कूद गए और इन्होंने राजनीति का लंबा सफर तय किया और अब तो राज्यपाल की दूसरी पारी में इन्हें केरल के बाद बिहार की जिम्मेदारी मिली है।

3. 26 की आयु में बने विधायक

छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय होने वाले आरिफ मोहम्मद खान पहले ही साल AMU में जनरल सेक्रेटरी का चुनाव जीत गए। आरिफ मोहम्मद खान अगले साल फिर चुनाव मैदान में उतरे और इस बार अध्यक्ष बन गए। इसके बाद बुलंदशहर के स्याना विधानसभा क्षेत्र से किस्मत आजमायी। पहली बार 1972 में भारतीय क्रांति दल के टिकट पर महज 21 साल की उम्र में इन्होंने चुनाव लड़ा, किंतु सफलता नहीं मिली। लेकिन, आपातकाल के बाद 1977 में हुए चुनाव में इन्हें जनता पार्टी ने टिकट दिया। इस बार इन्हें इंदिरा विरोधी लहर का लाभ मिला और चुनाव जीतकर विधायक बन गए। इसके बाद तीन टर्म सांसद भी रहे और केंद्र में मंत्री भी बने। इनकी पत्नी रेशमा आरिफ भी विधायक रही हैं। वे पेशे से वकील हैं। इनके दो बेटे हैं, लेकिन वे दोनों फिलहाल राजनीति से दूर हैं।

4. राजीव गांधी से हुआ था मतभेद

आरिफ मोहम्मद खान का सियासी सफर काफी लंबा रहा है। एक बार विधायक के साथ ही तीन टर्म सांसद भी रहे। 1980 तथा 1984 में कांग्रेस तो 1989 में जनता दल के टिकट पर चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे थे। दरअसल, जनता पार्टी के बाद ये कांग्रेस में शामिल हो गए थे। लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ को लेकर इनका राजीव गांधी से मतभेद हो गया था। इसके बाद ये जनता दल में शामिल हो गए। यहां भी मतभेद के कारण इन्होंने बहुजन समाज पार्टी का दामन थाम लिया। बाद में ये भारतीय जनता पार्टी में आ गए। तब इन्हें केरल का राज्यपाल बनाया गया।

5. बयानों से रहते हैं सुर्खियों में

आरिफ मोहम्मद खान अपने बयानों को लेकर हमेशा सुर्खियों में रहते हैं। केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन से भी इनका विवाद जगजाहिर रहा है। आरोप-प्रत्यारोप चलते रहे हैं। सबसे बड़ी बात कि इसी साल ये बिहार आए थे। फरवरी में दरभंगा आए आरिफ खान को मखाने की माला, पाग और मधुबनी पेंटिंग से सम्मानित किया गया था। तब उन्होंने कहा था- पूरे राष्ट्र में उत्सव और खुशी का माहौल है। अयोध्या में राम प्रतिष्ठा के बाद अयोध्या की कल्पना मिथिला के बगैर नहीं की जा सकती है। भारत की पहचान ही ज्ञान है। एक तरह से देखें तो मिथिला और भारत की पहचान ही ज्ञान है। इतना ही नहीं, इसी साल भोपाल में आयोजित कार्यक्रम में इन्होंने यूपी के CM योगी आदित्यनाथ के उस बयान का समर्थन किया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘बंटोगे तो कटोगे’। उन्होंने अपने बयान में कहा था, ‘एकता का भाव सभी में होना ही चाहिए। इसमें कोई खास बात नहीं हैं। यह गलत भी नहीं है।’