‘जुल्फिकार अली: 1857 के गुमनाम योद्धा’ का उषा किरण खान ने किया विमोचन, कहा- यह दस्तावेज है

PATNA (MR) : पद्मश्री चर्चित लेखिका उषाकिरण खान ने लेखक संजय कुमार लिखित एवं कीकट प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘जुल्फिकार अली: 1857 के गुमनाम योद्धा’ का पटना में आज 8 अक्टूबर को लोकार्पण किया। मौके पर पुस्तक के लेखक संजय कुमार, लेखक-शिक्षाविद डॉ ध्रुव कुमार मौजूद रहे।

लोकार्पण के दौरान पद्मश्री चर्चित लेखिका उषाकिरण खान ने कहा कि हमारे गुमनाम योद्धा ही स्वतंत्रता आंदोलन  के नींव के पत्थर हैं। उनके बारे में जानने में और गुमनाम योद्धाओं को सामने लाने में यह पुस्तक प्रेरणादायक साबित होगी।

उन्होंने कहा कि जिस तरह से संजय ने जुल्फिकार अली  का परिचय कराया है, वह प्रेणादायक है। यह केवल पुस्तक नहीं, बल्कि एक दस्तावेज है। उन्होंने कहा कि आज जरूरत है इस बात की कि 1857 क्रांति के गुमनाम योद्धाओं को खोज-खोज कर सामने लाया जाये, ताकि नई पीढ़ी रूबरू हो सके। उन्होंने कहा कि संजय ने जुल्फिकार अली के अनछुए पक्षों को सामने लाया है।

लोकार्पण के दौरान लेखक एवं भारतीय सूचना सेवा के वरिष्ठ अधिकारी संजय कुमार ने अपनी पुस्तक ‘जुल्फिकार अली : 1857 के गुमनाम योद्धा’ पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि जुल्फिकार अली इतिहास के पन्नों में गुम एक योद्धा हैं, जो प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महानायक योद्धा बाबू कुंवर सिंह के  विश्वास पात्र सहयोगियों में से एक थे। जुल्फिकार अली  ने बाबू कुंवर सिंह के आदेश पर सेनापति का कार्यभार संभाला था। वे कूटनीति के माहिर व्यक्ति थे, जिन्होंने  देशभक्त वीरों की टुकड़ी तैयार कर खुफिया विभाग बनाया था और उसका संचालन किया था, इसलिए  बाबू कुंवर सिंह उनका सम्मान करते थे।

उन्होंने कहा कि दिल्ली प्रस्थान करते समय रास्ते में अंग्रेजों के साथ सैनिक झड़प में जुल्फिकार अली की  मौत हो गयी थी। मौत के बाद उनका शव नहीं मिला था, इसलिए शहादत की सही तारीख नहीं मिलती है। नगवां (काको) ग्राम के काजी जुल्फिकार अली ने नगवां गाँव में जहानाबादी रेजिमेंट का गठन किया, जो मेरठ, गाजीपुर, बलिया आदि जगहों पर छापामार युद्ध कर के अंग्रेजों को खूब छकाया था। उन्होंने बताया कि गुमनाम योद्धा जुल्फिकार अली के नाम प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 के महानायक बाबू कुंवर सिंह द्वारा कैथी लिपि में तीन पत्र जसवंत  सिंह से लिखवायी थी, जो अपने आप में इतिहास है। पत्र गवाह है कि जुल्फिकार अली आजादी के दीवाने और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ मोर्चा लेने वाले सैनिक थे। उनके वंशज बल्ख रूस से आये थे। आज भी जुल्फिकर अली के वंशज काजी अनवर अहमद जीवित हैं, लेकिन दुर्भाग्य कि गुमनाम योद्धाओं को भुला दिया गया है।

मौके पर डॉ ध्रुव कुमार ने कहा कि 1857 का जिक्र आते ही कुंवर सिंह जेहन में आते हैं और आज उनके सहयोगी गुमनाम योद्धा जुल्फिकार अली की जानकारी का मिलना अद्भुत है। उन्होंने कहा कि देश के लोगों की जिम्मेदारी है कि देश की आजादी के लिए शहीद होने वालों योद्धाओं को सामने लाया जाये।

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