PATNA (MR) : अशोक कुमार सिन्हा। बिहार में किसी परिचय के मोहताज नहीं। साहित्य गलीचे से लेकर प्रशासनिक महकमे तक में इनके कार्यों की अमिट छाप देखने को मिलेंगे। उपेंद्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान के निदेशक और बिहार राज्य खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड के मुख्य कार्य पालक पदाधिकारी के पद की जिम्मेदारी निभा चुके हैं। वर्तमान में ये पटना में स्थित विश्वप्रसिद्ध बिहार संग्रहालय में अपर निदेशक के पद पर कार्यरत हैं। कला और साहित्य पर अब तक इनकी 36 पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। साहित्यिक उपलब्धियों के लिए ये दर्जनों पुरस्कार/सम्मान से नवाजे गये हैं। इन दिनों वे मैक्सिको की यात्रा पर हैं। यात्रा के दौरान रास्ते में और मैक्सिको में इन्हें भाषा संकट से जूझना पड़ रहा है। वो भी तब, जब इनकी हिंदी की तरह अंग्रेजी भी काफी समृद्ध है। पूरा आलेख उनके सोशल मीडिया से लिया गया है।
अशोक कुमार सिन्हा लिखते हैं- भाषा का संकट बहुत बड़ा संकट है। इस संकट को भू-मंडलीकरण ने और गहराया है। अपने मैक्सिको प्रवास के दौरान इस बात को मैं बखूबी महसूस कर रहा हूं। इसकी शुरुआत नई दिल्ली से मेक्सिको के लिए उड़ान के दौरान ही हो गई थी। दरअसल, नई दिल्ली से मैक्सिको सिटी के लिए कोई सीधी विमान सेवा नहीं है। नई दिल्ली से इस्तानबुल (तुर्की) और कुछ घंटों के वहां प्रवास के बाद मैक्सिको सिटी के लिए हमारी अगली फ्लाइट थी। थकावट और हरारत से बचने के लिए हमने इस्तानबुल के एयरपोर्ट परिसर में अवस्थित होटल में एक कमरे का अग्रिम आरक्षण करा रखा था।

वे आगे लिखते हैं, नई दिल्ली से इस्तानबुल तक के हवाई सफर के दौरान तो सब कुछ ठीक-ठाक रहा। लेकिन, इस्तानबुल एयरपोर्ट पर भाषा की काफी दिक्कतें आईं। ड्यूटी पर तैनात कई कर्मियों से मैंने होटल के बावत जानकारी मांगी, पर कोई भी अंग्रेजी का जानकार नहीं मिला। मैं परदेसी था। वहां की भाषा तुर्की मुझे आती नहीं थी और अंग्रेजी चल नहीं पा रही थी। किसी तरह इशारों और संकेतों के सहारे हम होटल तक पहुंच पाए। उसी होटल से विमान तक हमारी वापसी भी मुश्किल में हुई।
अपने देश में अंग्रेजी की व्यापकता का बड़ा शोर है। यहां तक कि राष्ट्रभाषा हिंदी भी उसके समक्ष सहम कर रहती है। लेकिन, मैक्सिको में अंग्रेजी का प्रचलन बहुत कम है। वहां की जनसामान्य और सरकारी कामकाज की भाषा स्पैनिश है। अगर वहां के कुछ पढ़े-लिखे और नौकरी पेशा लोगों की बात छोड़ दें तो बाकी अंग्रेजी नहीं जानते। स्ट्रीट फूड वाले, टैक्सी वाले, दुकान वाले-सभी से मैंने बात करने की कोशिश की, लेकिन उनमें अंग्रेजी जानने-समझने वाला कोई नहीं मिला।
इसलिए मेरा मानना है कि जो व्यक्ति स्पैनिश नहीं जानता, वह मैक्सिको को समग्रता में नहीं देख सकता। मैं मैक्सिको भ्रमण के लिए पूर्ण रूप से अपने बेटे पर निर्भर हूं। वह मेरे लिए दुभाषिए के तौर पर काम कर रहा है। भाषा की इस समस्या के चलते कई सवाल मेरे मन में ही रह जा रहे हैं। यह है भाषा की समस्या। भाषा के अभाव में मैं मूक और बधिर बनकर रह गया हूं। मेरा मैक्सिको प्रवास एक माह से कुछ अधिक का है। अभी दस दिन ही हुए हैं। यहां बिना स्पैनिश के एक कदम भी नहीं चला जा सकता, इसलिए मैंने मैक्सिको के दैनिक जीवन में अक्सर प्रयोग में आने वाले कुछ स्पैनिश शब्दों को बेटे से सीखना शुरू कर दिया है।
