PATNA (APP) : बिहार आरजेडी के मुखिया के पद पर जगदानंद सिंह फिर से काबिज हो गए हैं। उन पर लालू यादव के साथ ही तेजस्वी यादव को भी खूब भरोसा है। पटना स्थित आरजेडी मुख्यालय में पार्टी के राष्ट्रीय परिषद की बैठक में आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव के साथ ही तेजस्वी यादव ने भी जगदा बाबू को खूब बधाई दीl। उनके कार्यों को भी जमकर सराहा। दरअसल, जगदानंद सिंह, लालू यादव के पुराने दिनों के साथी रहे हैं। समाजवादी आंदोलन में भी समर्पित भाव से साथ रहे हैं। लालू के सभी बच्चे उन्हें गार्जियन के रूप में मानते हैं। रिश्ते में खटास आने के बाद भी तेजप्रताप कभी इसे मन में नहीं रखते हैं। ऐसे में जगदा बाबू एक बार फिर आरजेडी को नयी धार देंगे। जगदा बाबू पर लालू के भरोसे के कई कारण हैं। इनमें से पांच प्रमुख कारणों पर नजर डालते हैं। 

आरजेडी में फूंकी जान, बना नंबर वन                    जगदानंद सिंह अब 77 प्लस के हो गए हैं। उनका जन्म दिन 15 जुलाई 1945 है। इसके बाद भी वे किसी युवा से कम नहीं हैं। वे कहते भी हैं कि भले ही हम शरीर से थक गए हैं, लेकिन मन से अभी नहीं थका हूं। मेरा मन अभी भी पूरी तरह एनर्जेटिक है। इतना ही नहीं, जगदानंद सिंह ने अपने कार्यकाल में आरजेडी में जान फूंक दी है। 2020 के विधानसभा चुनाव में इन्होंने अपनी मेहतन के दम पर पार्टी को पहले नंबर पर पहुंचा दिया। इस बात को तेजस्वी यादव भी स्वीकार करते हैं और लालू फैमिली के लोग भी इसे मानते हैं। तभी तो जगदानंद सिंह के नामांकन के बाद तेजस्वी यादव ने कहा कि जगदा बाबू पार्टी के सबसे वरिष्ठ नेताओं में से एक हैं और समाजवादी विचारधारा के हैं। उनके नेतृत्व में पार्टी मजबूत हुई है और पिछले 2020 के विधानसभा चुनाव में बिहार की सबसे बड़ी पार्टी का दर्जा हमलोगों को मिला। जगदा बाबू ने आरजेडी में नई जान फूंकी है। बता दें कि 2020 के विधानसभा चुनाव के बारे में आपको पता ही होगा कि उस समय लालू यादव जेल में थे। चुनाव की पूरी कमान तेजस्वी यादव के हाथ में थी। वे चुनाव प्रचार में जुटे हुए थे और लालू-तेजस्वी के अब्सेंट में भी जगदानंद सिंह उनकी कमी नहीं होने देते थे। दफ्तर को संभाले हुए रहते थे। वे ऑफिस मैनेजमेंट भी बिलकुल टाइट रखते थे। 

सवर्ण वोट बैंक में भी आयी मजबूती                             यह तो सब जानते हैं कि बिहार पॉलिटिक्स पूरी तरह कास्ट बेस्ड है और आरजेडी के साथ माय समीकरण का बड़ा जनाधार है। तेजस्वी ने इसे विस्तार देते हुए उन्होंने ए टू जेड की ओर कदम बढ़ाया। साथ ही इस पर अमल भी किया। सर्वणों के वोट को आरजेडी के साथ जोड़ने में जगदानंद सिंह का अहम रोल है। दरअसल, जगदानंद सिंह राजपूत जाति का बड़ा चेहरा हैं और चुनाव के समय सवर्ण वोट बैंक में मजबूती से सेंध लगाने में भी इनकी मदद मिलती रही है। बिहार की सियासत में जब महागठबंधन का दौर आया तो लालू के इस फैसले के साथ भी जगदा बाबू मजबूती के साथ खड़े रहे। इतना ही नहीं, 2020 के चुनाव के समय भी ये प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर थे और इन्होंने पार्टी के फैसले, उम्मीदवारों का सेलेक्शन और स्ट्रैटजी बनाने में काफी मेहतन की। ये पार्टी के क्राइसिस मैनेजर भी हैं और जब भी पार्टी पर एक्सटर्नल या इंटरनल संकट आया तो इन्होंने उससे निजात दिलाने में भी काफी मदद की और आरजेडी के लिए संकटमोचक बन गए। तभी तो जब लालू ने इन पर भरोसा जताया तो इन्होंने कहा कि भले ही शरीर थक गया है, लेकिन मेरा मन अभी नहीं थका है। उन्होंने यह भी कहा कि हमने कभी कमान नहीं मांगी और ना ही मैं किसी कमान से मांगता हूं। हमारे नेता हैं लालू जी और उनका फैसला हम नहीं टाल सकते हैं। उनका जो भी फैसला होगा, उसे मैं पूरा करूंगा। हम पार्टी के किसी काम या जिम्मेवारी से भाग नहीं सकते हैं। हमने लोहिया और कर्पूरी ठाकुर से यही तो सीखा है कि जनता के लिए दी हुई जिम्मेदारियों को ईमानदारी से निभाना चाहिए। 

लालू फैमिली के लिए जगदा बाबू पीपल                     लालू यादव और जगदानंद सिंह की जोड़ी बिहार की सियासत में लगभग एक साथ शुरू हुई है। जनता दल बनाना हो या फिर जनता दल टूटने के बाद राष्ट्रीय जनता दल का निर्माण करना हो। वे लालू यादव के साथ बिलकुल साये की तरह रहे हैं। जब भी पार्टी का बुरा दौर आया हो या फिर लालू यादव के जेल जाने के बाद पार्टी को मजबूत और एकजुट रखने की बात हो तो जगदानंद सिंह मजबूती से खड़े रहे हैं। जब लालू यादव को चारा घोटालों के सभा मामलों में जमानत मिल गयी और इसके बाद वे दिल्ली से ही बिहार के लोगों से ऑनलाइन जुड़ रहे थे। तब उन्होंने जगदाबाबू को काफी संजीदगी से पुराने दिनों का साथी बताया था। यही वजह है कि कभी-कभी कुछ कारणों से मन खटास होने के बाद भी वे लालू यादव की बात को बिलकुल ही नहीं टालते हैं। वे हर परिस्थिति में उनके साथ खडे रहते हैं। जिस तरह सीबीआई ने लालू यादव के हनुमान कहे जाने वाले भोला यादव को पिछले दिनों गिरफ्तार किया है। ऐसी स्थिति में जगदानंद सिंह की जिम्मेवारी और बढ़ गयी है। इसलिए भी लालू यादव ने जगदाबाबू को ही पार्टी की कमान सौंपने का फिर से फैसला किया। आपको यह पता होगा कि लालू यादव उन्हें ‘जगदा भाई’ से ही संबोधित करते हैं। मालूम हो कि प्रदेश अध्यक्ष के रूप में अब्दुल बारी सिद्दीकी, उदय नारायण चौधरी जैसे कई नामों की चर्चा हो रही थी, लेकिन लालू यादव को ‘जगदा भाई’ ही पसंद आए। तभी तो लालू यादव इन्हें अपनी फैमिली के लिए ‘पीपल’ कहते रहे हैं, जो आंधी-पानी में भी उनके लिए सदा खड़ा रहते हैं। 

अनुशासन में भी कोई समझौता नहीं                     जगदानंद सिंह अनुशासन के मामले में भी फुल टाइट रहते हैं। इस मामले में किसी से कोई समझौता नहीं। दरअसल, इतनी उम्र के बाद भी वे एनर्जी से लबालब हैं। आज भी ये बिहार पॉलिटिक्स में काफी एक्टिव हैं और अपने सिद्धांतों, अपनी नीतियों से कभी समझौता नहीं करते हैं। जगदाबाबू कहते भी हैं कि हम अपनी नीतियों से समझौता करने वाले लोग नहीं हैं। हमारे लिए सत्ता मायने नहीं रखती है, बल्कि जनता से जवाबदेही मायने रखती है। अनुशासन के मामले में इतने कड़े हैं कि लालू यादव के बेटों से भी परहेज नहीं करते हैं। अनुशासन को लेकर ये किन्हीं के आगे नहीं झुकते हैं। जब इन्हें पहली बार आरजेडी प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेवारी मिली तो इन्होंने दफ्तर में नयी व्यवस्था लागू कर दी। हर काम सिस्टमैटिक ढंग से होने लगा। हालांकि, इसी बात को लेकर कई बार तेजप्रताप यादव से इनका मतभेद भी बढ़ा, लेकिन हर बार लालू यादव ने जगदाबाबू के साथ खडा रहे। यहां तक कि राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव भी जगदानंद सिंह के ही पक्ष में नजर आए। वहीं, अनुशासन को लेकर भी उन्होंने आरजेडी के तमाम नेताओं और कार्यकर्ताओं से कह दिया कि जब तक वे प्रदेश अध्यक्ष के पद पर हैं, कोई अनुशासन को नहीं तोड सकता और दूसरी बार लालू ने जगदा बाबू पर भरोसा जताकर यह भी साफ मैसेज दे दिया कि जगदानंद सिंह के ही नियम और कानून आरजेडी दफ्तर में चलेंगे। 

बेटे की ममता के आगे भी नहीं झुके थे                  जगदानंद सिंह बेटे के ममता के आगे भी नहीं झुके थे। भले ही आज इनके बेटे सुधाकर सिंह महागठबंधन की सरकार में कृषि मंत्री के पद पर हैं। लेकिन, एक समय था, जब ये अपने बेटे के विरोध में चुनाव प्रचार में उतर गए थे और उस चुनाव में बेटे की हार हो गयी थी। दरअसल, आरजेडी 2010 के विधानसभा चुनाव में जगदानंद सिंह के बेटे सुधाकर सिंह को रामगढ़ विधानसभा से मैदान में उतारना चाहती थी, लेकिन इसका विरोध किसी और ने ही नहीं, बल्कि जगदानंद सिंह ने ही कर दिया था। उन्होंने सुधाकर सिंह को टिकट देने का विरोध करते हुए यह कहा कि इससे परिवारवाद को बढ़ावा मिलेगा। तब सुधाकर सिंह ने भी अपने पिता से मुंह फुला लिया था। इतना ही नहीं, सुधाकर सिंह इतने अधिक गुस्से में आ गए थे कि उन्होंने आरजेडी छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया था। बीजेपी भी इसी मौके की तलाश में थी। बीजेपी ने सुधाकर सिंह को लगे हाथ टिकट भी दे दिया। तब जगदानंद सिंह के विरोध में आरजेडी के कुछ लोगों ने लालू यादव के कान भी भरे थे। इसके बाद भी लालू यादव ने उन पर भरोसा जताते हुए कहा कि जगदा भाई कुछ गलत नहीं करेंगे और हुआ भी ऐसा ही। इस कसौटी पर वे खरा उतरे। जगदानंद सिंह ने आरजेडी उम्मीदवार अंबिका यादव के पक्ष में जमकर प्रचार किया। उन्हीं की मेहनत रही कि आरजेडी को वहां से जीत मिली और बीजेपी को मात मिली। बाद में सुधाकर सिंह को अपनी गलती का अहसास हुआ और आरजेडी में शामिल हो गए। 2020 के चुनाव में सुधाकर सिंह को आरजेडी ने टिकट दिया। इस बार पिता ने भी पूरी तरह साथ दिया।

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