MUNGER (SMR) : छठ पूजा के महात्मय पर, छठी मईया की आस्था पर, उनकी मान्यताओं पर, उनकी पौराणिक कथाओं-गाथाओं पर तो लोगों ने खूब लिखा है, गाया भी है, साथ में खूब वाचा भी है। लेकिन, शांति निकेतन के रिसर्चर सिद्धार्थ शंकर उर्फ मोहित ने इसे इतनी सरल भाषा में परोसा है कि वह सीधे हृदय पटल पर उतर आता है। आप खुद देखिए, उन्होंने नहाय-खाय का कितना सरल-सहज भाषा में अपने शब्द चित्र के जरिए उकेरा है, वह इस महापर्व की जीवंतता को दरसाता है। सिद्धार्थ शंकर सोशल मीडिया पर लिखते हैं-
‘मिट्टी के चूल्हे पर चढ़ी हांडी में उबलते चने दाल की खुशबू से महकता आंगन जब आम की जलती लकड़ियों के साथ कोरस करता है तो यह दिन नहाय-खाय के साथ चार दिनों के महापर्व छठ की घोषणा करता है…’
‘खदकते अरवा चावल की मीठी खुशबू और गुनगुनी धूप के साथ मौसम की हल्की ठंड लोक गीतों की गुनगुनाहट के साथ जब मिलते हैं तो वाकई लगता है कि लोक आज भी विशिष्ट ही है…’
‘अधहन में डबकते अरवा चावल, चने के दाल में लगता घी का तड़का, सिलबट्टे पर पिसी धनिये की चटनी, आलू-गोभी की मसालेदार अरवा सब्जी, और बुआ-चाचियों की चहचहाहट में कड़कते चक्के-बचके की आवाज इस पर्व की खूबसूरती की शुरुआत है…’
‘गंगा स्नान के बाद की इन प्रक्रियाओं से जो पावन माहौल बनता है वह अपने आप में किसी पूर्णता के एहसास से कम नहीं होता…’
‘लोक हमें हमारी जड़ों का एहसास कराता है और मजबूत-गहरी जड़ों की बुनियाद किसी भी संरचना की मजबूती निर्धारित करती है… छठ इन्हीं जड़ों को बांधने का एक अनवरत प्रयास पर्व है। आइए, मिलकर छठ मनाते हैं…’