PATNA (MR) : लोकआस्था के महापर्व की भक्ति में पूरा बिहार डूब गया है। आज बुधवार को अस्ताचलगामी सूर्य को पहला अर्घ्य दिया जाएगा। छठ महापर्व में संध्याकालीन अर्घ्य का विशेष महत्व है। सूर्य षष्ठी यानी छठ पूजा के तीसरे दिन शाम के वक्त सूर्यदेव अपनी पत्नी प्रत्युषा के साथ रहते हैं. किंवदंती है कि सांझ का अर्घ्य देने से प्रत्युषा को भी अर्घ्य प्राप्त होता है।
मान्यताओं के अनुसार प्रत्युषा को अर्घ्य देने से इसका लाभ भी अधिक मिलता है। मान्यता यह भी है कि संध्या अर्घ्य देने और सूर्य की पूजा-अर्चना करने से जीवन में तेज बना रहता है और यश, धन, वैभव की प्राप्ति होती है। शाम को अस्ताचलगामी सूर्यदेव को पहला अर्घ्य दिया जाता है, इसलिए इसे संध्या अर्घ्य भी कहा जाता है। इसके पश्चात विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना की जाती है।
अर्घ्य का यह है समय
- 10 नवंबर को पहला अर्घ्य, सूर्यास्त का समय 5.03 बजे। 11 नवंबर को सुबह का अर्घ्य, सूर्योदय का समय 6.04 बजे।
अर्घ्य देने की विधि
- बांस की टोकरी में सभी सामान रखें। सूर्य को अर्घ्य देते समय सारा प्रसाद सूप में रखें और सूप में ही दीपक जलाएं। फिर नदी में उतरकर सूर्य देव को अर्घ्य दें।
व्रत की क्या हैं सावधानियां
- यह व्रत अत्यंत सफाई और सात्विकता का है। इसमें कठोर रूप से सफाई का ख्याल रखना चाहिए। घर में अगर एक भी व्यक्ति छठ का उपवास रखता है तो बाकी सभी को भी साथ सात्विकता और स्वच्छता का पालन करना चाहिए। व्रत रखने से पूर्व अपने स्वास्थ्य की स्थिति को जरूर देख लें।
छठ पूजा का महत्व
- अर्घ्य देने के पीछे मान्यता है कि सुबह के समय अर्घ्य देने से स्वास्थ्य ठीक रहता है। दोपहर के समय अर्ध्य देने से नाम और यश होता है और वहीं शाम के समय अर्घ्य देने से आपकी हर मनोकामना पूर्ण होती है। इसके अलावा माना जाता है कि भगवान सूर्य शाम के समय अपनी पत्नी प्रत्युषा के साथ होते हैं. जिसका फल हर भक्त को मिलता है।
छठ व्रत से लाभ
- जिन लोगों को संतान ना हो रही हो या संतान होकर बार-बार समाप्त हो जाती हो, ऐसे लोगों को इसे व्रत से अद्भुत लाभ होता है। अगर संतान पक्ष से कष्ट हो तो भी यह व्रत लाभदायक होता है। अगर कुष्ठ रोग या पाचन तंत्र की गंभीर समस्या हो तो भी इस व्रत को रखना शुभ रहता है। जिन लोगों की कुंडली में सूर्य खराब हो अथवा राज्य पक्ष से समस्या हो ऐसे लोगों को भी इस व्रत को अवश्य रखना चाहिए।