MADHUBANI (SMR) : बिहार में हर मौसम की अलग-अलग धार्मिक संस्कृति है. यहां ड्रबते-उगते सूर्य की पूजा होती है तो चांद की भी उसी तन्मयता के साथ आराधना होती है. वैसे तो चांद को कई रूपों में पूजा की जाती है, लेकिन भादो माह में गणेश चतुर्थी के मौेके पर चांद की जो आराधना होती है, उसकी बात ही निराली है. बिल्कुल छठ के अंदाज में. उसी के आस्था के साथ अर्घ्य दिया जाता है. मिथिलांचल में तो ‘पूजा के करबै ओरियान गै बहिना, चौरचन के चंदा सोहाओन’ गीत काफी प्रचलित है.
मूलत: मिथिलांचल का है चौरचन
हिंदी माह भादो के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेशोत्सव के साथ बिहार में चौरचन पर्व मनाया जाता है. यह पर्व इस बार आज शुक्रवार (10 सितंबर) को मनाया जा रहा है. यह पर्व मूलत: मिथिलांचल का है. इस दिन चांद की आराधना-उपासना की जाती है. किंवदंती है कि जो भी व्रती या श्रद्धालु भादो की शुक्ल चतुर्थी की शाम भगवान गणेश के साथ चांद की पूजा करते हैं, वे चंद्र दोष से मुक्त हो जाते हैं. इस पर्व को चकचंदा या चौठ चांद भी कहा जाता है.
चंद्रमा को लगा था दोष
दरअसल, चौरचन के संबंध में कहा जाता है कि चांद या चंद्रमा को इसी दिन दोष (कलंक) लगा था. पुराणों में कहा गया है कि इसी चंद्र दोष की वजह से चांद को चौरचन के दिन लोगों को देखने से मना किया गया है. यह पर्व बिल्कुल छठ की तरह मनाया जाता है. अंतर केवल इतना है कि छठ पूजा चार दिनों का होता है. उसमें सूप में फल-फूल व पकवान के साथ नदी किनारे भगवान सूर्य को परवैतिन अर्घ्य देती हैं, जबकि चौरचन में डलिया में फल-फूल व पकवान के साथ उसी आस्था के साथ परवैतिन चंद्रमा को आंगन या घर की छत पर अर्घ्य देते हैं. चंद्रमा को अर्घ्य देने से लोग झूठ के कलंक से मुक्त होते हैं.
भगवान गणपति एक दिन अपने वाहन मूषकराज के साथ कैलाश में भ्रमण कर रहे थे. तभी अचानक चंद्रमा यानी चंद्र देव वहां पहुंचे और उन्हें देखकर हंसने लगे. भगवान गणेश यह नहीं समझ सके कि चंद्र देव क्यों हंसे?
चंद्रमा को दिया जाता है अर्घ्य
पुराणों के अनुसार, चौरचन या चकचंदा के दिन परवैतिन सुबह से शाम व्रत रखकर भक्ति भाव में लीन रहती हैं. शाम के समय घर के आंगन को गाय के गोबर से लीपकर साफ करते हैं. हालांकिे, अब तो आंगन भी सीमेंट हो गया है. ऐसे में साफ पानी से धो दिया जाता है. शहरों में फ्लैट कल्चर आ गया है, इसलिए लोग अब इस पूजा को घर की छत पर भी मनाते हैं. कोरोना काल में तो छठ पूजा भी घर की छत पर लोग मनाने लगे हैं. हां, तो बता रहे थे, आंगन या छत को साफ कर वहां पर केले के पत्ते की मदद से गोलाकार चांद बनाया जाता है. डलिया को फल-फूल के साथ पकवान से सजाया जाता है. पकवानों में खीर, मिठाई, गुजिया आदि शामिल किये जाते हैं. इसके बाद पश्चिम दिशा की ओर मुख करके हाथ में डाला लेकर चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है. कहीं-कहीं बिना अर्घ्य के ही चंद्रमा को भोग लगाया जाता है. डलिया के साथ दही का भी भोग लगाया जाता है. इसके बाद घर के लोग चंद्रमा के सामने शीश नवाते हैं. वे सुख-समृद्धि की कामना करते हैं. लंबी उम्र व परिवार की खुशहाली का आशीष मांगते हैं.
चतुर्थी को मनाया जाता है भगवान गणेश का जन्म दिन
पौराणिक गाथाओं में कहा गया है कि भगवान गणपति एक दिन अपने वाहन मूषकराज के साथ कैलाश में भ्रमण कर रहे थे. तभी अचानक चंद्रमा यानी चंद्र देव वहां पहुंचे और उन्हें देखकर हंसने लगे. भगवान गणेश यह नहीं समझ सके कि चंद्र देव क्यों हंसे? उन्होंने इसकी वजह पूछी. इस पर चंद्र देव ने कहा- ‘वह भगवान गणेश का विचित्र रूप देखकर हंस रहे हैं.’ भगवान गणेश को चंद्रमा का यह व्यवहार पसंद नहीं आया. उन्होंने शाप दे दिया. कहा- ‘तुम्हें अपने रूप पर बहुत अभिमान है कि तुम बहुत सुंदर दिखते हो, लेकिन आज से तुम कुरूप हो जाओ. जो कोई भी व्यक्ति इस दिन तुम्हें देखेगा, उसे झूठा कलंक लगेगा. कोई अपराध न होने के बाद भी वह ‘अपराधी’ कहलाएगा.’ चांद के पाश्चाताप के बाद भगवान गणेश ने उन्हें क्षमा कर दिया. चूंकि शाप तो वापस लिया नहीं जा सकता था, सो उन्होंने इससे मुक्त होने के उपाय सुझाए. कहा- जो भादो माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को चांद के साथ मेरी पूजा करेगा, उसको कलंक नहीं लगेगा.’ बता दें कि भादो माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को ही भगवान गणेश का जन्म दिन है.