DELHI (SMR) : आज बुद्ध पूर्णिमा है। आज के ही दिन भगवान गौतम बुद्ध ने जन्म लिया था। बौद्ध धर्म वाले इस दिन शांति और अहिंसा के प्रतीक भगवान गौतम बुद्ध की उपासना करते हैं। उनके बताए मार्ग पर चलने का प्रण लेते हैं। कुछ लोग उन्हें सनातन विरोधी भी बताते हैं, लेकिन बुद्ध ऐसा नहीं थे। देश के वरीय पत्रकार अरविंद शर्मा भी ऐसा ही मानते हैं। गौतम बुद्ध पर उनका यह सारगर्भित आलेख उनके सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से लिया गया है। इसमें उनके निजी विचार हैं।
महात्मा बुद्ध को कुछ लोग सनातन धर्म के विरोधी बताते हैं। इससे मैं सहमत नहीं हूं। बुद्ध की आत्मा में भी वही है, जो सनातन में है। प्रेम, करुणा और मानवहित की भावना से बुद्ध अलग नहीं थे। सनातन धर्म उनकी प्राणवायु था। वेदों-पुराणों की जिन शिक्षाओं को विस्मृत कर दिया गया था उसे नए चिंतन में दुनिया के सामने लाकर बुद्ध ने भारतीय परंपरा को मजबूत किया। अगर तथागत हिंदू धर्म के विरोधी होते तो अपने उपदेशों का आधार हिंदू शास्त्रों और वेदों को नहीं बनाते। बुद्ध ने ही सिखाया कि व्यक्ति को आलोचक होना चाहिए निंदक नहीं।
बुद्ध को हिंदू संत और विद्वानों का भरपूर साथ मिला। तथागत को अध्यात्म की ओर ले जाने वाले सारे के सारे ब्राह्मण संत और विद्वान थे। इनमें गुरु विश्वामित्र, अलार, कलम और उद्दाका राम्पुत्त का नाम प्रमुख है। ये सभी सनातनी संत थे। विश्वमित्र ने तथागत को वेद और उपनिषद की शिक्षा भी दी थी।
तथागत ने कभी सनातन मूल्यों को अस्वीकार नहीं किया। कभी हिंदू धर्म के विरुद्ध आचरण नहीं किया। वे सिर्फ हिंदू धर्म में फैले आडंबर और कुप्रथाओं के विरोधी थे। वह वैदिक कर्मकांडों, अंधविश्वासों और बलि परंपरा से लोगों को बचाना चाहते थे। यहां तक कि बुद्ध के विरोध का तरीका भी अनुकरणीय था। यही कारण है कि उस समय के आम जन ने बुद्ध को अपनाया। उनके रास्ते पर चलना स्वीकार किया। ऐसी कुरीतियों से वह समाज को उबरना चाहते थे। अलग दिशा देना चाहते थे। बाद में इसे ही गलत रूप में परिभाषित कर बुद्ध को हिंदू धर्म की परंपरा से अलग दिखाने और बताने की साजिश की गई।
तथागत ने सनातन ज्ञान-योग और चिंतन को अलग दिशा देने का प्रयास किया, जिसके मूल में प्राचीन भारतीय परंपरा ही थी। बुद्ध जिज्ञासु थे। सनातन परंपरा में जिज्ञासा ही आत्मज्ञान का आधार रहा है, जिज्ञासु व्यक्ति ही चिंतन की धारा को प्रभावित कर ज्ञान और चिंतन को विकसित करता है। बुद्ध ने भी यही किया था।
बुद्ध के बाद उन्हें सनातन से अलग करने की साजिश की जाने लगी। यहां तक कि विष्णु के दसवें अवतार की अवधारणा को भी ब्राह्मणवादी मानसिकता से जोड़कर बताया जाने लगा। किंतु ऐसा करने वाले लोग भूल जाते हैं कि बुद्ध ने मानवता को तोड़ने नहीं, जोड़ने का प्रयास किया। यही कारण है कि स्वयं महात्मा गांधी भी बुद्ध को सर्वश्रेठ हिंदू मानते थे। वे अक्सर कहा करते थे कि बुद्ध की शिक्षाओं को संपूर्ण आर्यावर्त ने आत्मसात किया है, इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है।