PATNA (MR) : हलक का दारोगा। मलय जैन का पहला व्यंग्य संग्रह। कवि व लेखक राहुल देव ने इस व्यंग्य संग्रह की समीक्षा की है। राहुल देव उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के रहने वाले हैं। यह पुस्तक समीक्षा उनके फेसबुक पोस्ट से अक्षरशः ली गयी है। इसमें समीक्षक के निजी विचार हैं।
पुस्तक समीक्षक राहुल देव लिखते हैं- वर्ष 2015 में अपने पहले ही व्यंग्य उपन्यास ‘ढाक के तीन पात’ से साहित्य जगत में पदार्पण कर धूम मचाने वाले युवा रचनाकार मलय जैन का व्यक्तित्व व कृतित्व हिंदी व्यंग्य के पाठकों के लिए अब किसी परिचय का मोहताज नहीं है। उनकी पहली पुस्तक में हम उनके टेस्ट मैच वाली लंबी इनिंग देख चुके हैं। ‘हलक का दरोगा’ उनका पहला व्यंग्य संग्रह है, जो इसी वर्ष राधाकृष्ण प्रकाशन नयी दिल्ली से प्रकाशित होकर आया है। इस व्यंग्य संग्रह में लेखक के कुल 30 चुनिंदा व्यंग्य शामिल किये गये हैं। बाजारवाद पर केंद्रित इसमें कुछ बेहतरीन रचनाएं हैं, जैसे कि ‘झीकती लाइफ हो झिंगालाला’ में बाजार का जिन्न कहता है कि- ‘कंफ्यूज मत हो दोस्त तू तो बस बाजार की सलाह मान… बाजार से सवाल नहीं किए जाते बावले, हमने अरमानों को जगाने के लिए कहा था, तू तो बुद्धि जगाने बैठ गया, तू सिर्फ बाजार लीला का चमत्कार देख…’
बाजारवाद पर लेखक ने कई आयामों से अलग-अलग लिखा है। यह वर्तमान समय का ज्वलंत मुद्दा भी है, क्योंकि आज सबकुछ बाज़ार के नियंत्रण में जो चला गया है। ‘ब्रेक लेने की परंपरा’ शीर्षक व्यंग्य में वे कहते हैं- ‘ब्रेक लेना हमारी परंपरा का अंग रहा है। हम ब्रेक लेते थे, लेते हैं और आगे भी खम ठोक कर लेते रहेंगे। बसंत पर केंद्रित व्यंग्य ‘कम ऑन सखी वसंत आया’ में लिखते हैं कि, ‘नायिका हिंदी विषय की पाठ्यपुस्तक लिए कवित्व से जूझ रही है और बालक को क्लिष्ट पंक्तियां हटाने का असफल प्रयास कर रही है। बालक चूंकि अंग्रेजी का अभ्यस्त है और नटखट भी अतः वह हिंदी काव्य को ठेंगे पर रख नाना प्रकार की बाल सुलभ हरकतें कर रहा है।’ बसंत पर हिंदी साहित्य में खूब ढेर सारे व्यंग्य निबंध लिखे गए हैं, लेकिन इस व्यंग्य में लेखक का अलहदा नजरिया हमें वर्तमान की विसंगति से सीधे जोड़ देता है। ऐसा ही एक और व्यंग्य है ‘भारहीनता की उल्टी थ्योरी’ जिसमें लेखक कहता है कि- ‘मैंने ऐसे तमाम लोगों को देखा है जिनके पैर ऊंचाई पर पहुंचे बगैर भी जमीन पर नहीं पड़ते। वह उलट-पुलट होते रहते हैं और खींचे निपोरकर इस बात को प्रकट करते रहते हैं कि वह इतना गिर चुके हैं कि अब इससे और नीचे गिरना संभव नहीं, अर्थात वे अब भारहीनता की उच्चतम स्थिति को प्राप्त कर चुके हैं।’
लेखक के इस संग्रह में हमें व्यंग्य निबंध और व्यंग्य कथा दोनों का बेहतरीन कॉन्बिनेशन देखने को मिलता है। ‘गिरवी बाबू बहती हुई गंगा और गणतंत्र’ पाठक को हास्य से करुणा की ओर ले चलती एक सशक्त व्यंग्यकथा बन पड़ी है। मलय जी किस्सागोई के तो उस्ताद हैं, इसमें कोई शक नहीं रह जाता। संग्रह की लगभग सभी व्यंग्य रचनाएं पठनीयता से सराबोर हैं। इनमें कहीं कोई बुना हुआ भाषाई कृत्रिम जाल नहीं है, उधार का शिल्प नहीं है, व्यर्थ का एकालाप नहीं, कोई विषयांतर नहीं है। हर रचना में वह एक सहज प्रवाह के साथ शुरू करते हैं और एक प्रवाह के साथ खत्म करते हैं। लंबी व्यंग्य रचनाएं गढ़ने में मलय जैन की कोई सानी नहीं है। न सिर्फ परिवेश बल्कि मनुष्य के चरित्र का आकलन करने में भी वे जरा भी चूकते नहीं हैं। ‘बारूद भाई की फ्रेंड रिक्वेस्ट और फुल प्रोफाइल’ शीर्षक व्यंग्य में फेसबुकीय मित्रता अनुरोधों के नानाविधि प्रकारों पर इस प्रकार बढ़िया कटाक्ष कर जाते हैं कि अंत में पराए कब्जे से डरे बारूद भाई प्रोफाइल पर ताला मार कर खुद बंकर में दुबके पड़े नजर आते हैं। एक अच्छे व्यंग्य लेखक को केवल भाषा का इस्तेमाल करना ही नहीं आना चाहिए, बल्कि उस भाषा से किस तरह व्यंग्य के पक्ष में उपकरण बनाकर प्रयोग कर सकते हैं यह भी तमीज होनी चाहिए। व्यंग्य ‘नवाचार की रेसिपी’ पढ़कर पाठक नए-नए स्वाद की रेसिपी चखता नजर आता है। उनके द्वारा इस्तेमाल किए गए कुछ क्रियाविशेषणों की बानगी देखिए- उकताहट, अकुलाहट, हड़बड़ाहट, बुलबुलाहट, फिल्मिनाहट, टरटराहट, कुलबुलाहट, गुदगुदाहट, चहचहाहट, हिनहिनाहट आदि के खुलकर प्रयोग से व्यंग्य का भाषायी सौंदर्य और निखरकर सामने आने लगता है।
व्यंग्यकार मलय जैन मध्य प्रदेश पुलिस सेवा में एक आला अधिकारी हैं। इस नाते उन्होंने समाज के निम्न, मध्यम से उच्च वर्गों तक हर किस्म के लोगों को, उनकी स्थितियों को करीब से देखा है। ‘मक्कारखाने में आत्मा की आवाज’ शीर्षक व्यंग्य मनुष्य की चारित्रिक विसंगतियों को लक्ष्य करती एक सार्थक व्यंग्य रचना है। इसमें लेखक लिखता है- ‘सत आत्मा ने कई शरीर बदले एक के बाद एक मगर हर जगह पाया कि जो है वह नहीं है और जो नहीं है वह है। खोपड़ी घूम गई उसकी, वह हर शरीर में खूब चीखी-चिल्लाई मगर बेकार, तब समझी कि मनुष्य के मन में बड़े-बड़े मक्कारखाने हैं और मन के मक्कारखाने में आत्मा की आवाज वैसी है, जैसी नक्कारखाने में तूती की आवाज। मनुष्य कहता अवश्य है कि आत्मा अमर है मगर उसे मारने में आप ही रात-दिन लगा रहता है। बात आत्मा के कल्याण की करता है और असलियत यह है कि कृपाण उसी में भोंकता है।’ संग्रह में एक और व्यंग्य ‘वैद्य रगड़ जी और चिपका वायरस’ में शिष्ट हास्य का प्रयोग करते हुए वे लिखते हैं- ‘इस बार दुनिया भर में फैले कोरोना वायरस से निपटने के लिए उन्होंने पुराने सारे वायरसों के उपचार निचोड़-निचोड़कर उनकी अपनी भाषा में, एकदम ओरिजिनल नुस्खा तैयार किया है जो व्हाट्सएप वीरों की वरेण्य विद्वता से वायरल हो चुका है। वायरल हुए इस विचित्रोपचार पर मैं सिर पीटने के लिए विवश हूँ।’ गद्य में अनुप्रास अलंकार की ऐसी व्यंजना दुर्लभ है। ‘शहरी पुत्री के नाम प्रहरी पिता के मेल’ शीर्षक व्यंग्य अपनी तरह का एक अलग ही प्रयोग है, जो लेखक की नैसर्गिक प्रतिभा को दिखाता है। अपने कथ्य में यह अद्भुत भी है और रोचक भी- ‘जीवन में इस बात का हमेशा ख्याल रखना भले तुम हिंदी साहित्य की विद्यार्थी हो, मगर जिसे भी डांटना हमेशा अंग्रेजी में डांटना। तुम्हें बिलावजह विवाद के बीज खोजने की दृष्टि विकसित करनी होगी। यह वर्तमान की सबसे बड़ी आवश्यकता है।’ ‘डरे हुए गांव वालों के मुंह में पैसे और दिमाग में गुलाबी सपने ठूंस दिए गए हैं। जुबान सील दी गई है। चारों ओर देखकर ऐसा लगता है मानो कूलन में, केलिन में, कुंजन में, कछारन में, बनन में, बागन में, बीथिन में, बाहरन में अब बसंत नहीं, बस अंत पसरो है।’ ‘तुमने एलेनिस ओबमसाविन की चार पंक्तियां पढ़ी होंगी न, ‘जब आखिरी पेड़ कट जाएगा, जब आखिरी नदी के पानी में जहर घुल जाएगा और जब आखिरी मछली का शिकार हो जाएगा, तब इंसान को एहसास होगा कि वह पैसे नहीं खा सकता। यह एहसास तुम अभी से लोगों में जगा पाओ तो तुम्हारा गांवों में जाना सार्थक मानूँ’ निश्चित ही समय हम सब के अपराध लिख रहा है। वह समय दूर नहीं, जब पूरी मानवता को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी।
मलय की खूबी है उनका सूक्ष्म ऑब्जरवेशन, उनकी मौलिकता, उनके कहन का अंदाज-ए-बयां जो उन्हें भीड़ से अलग करता है। वह खबरिया व्यंग्यकार नहीं, जबरिया व्यंग्यकार हैं यानी खबरदस्त नहीं, जबरदस्त वाले व्यंग्य लेखक। तमाम खूबियों के बावजूद उनके यहां लैक आफ शार्पनेस नजर आती है। वह भेदते नहीं, बल्कि कुरेदते हैं। लेकिन चूंकि लेखक का यह पहला व्यंग्य संग्रह है इसलिए अभी कोई जजमेंट दे देना ठीक नहीं होगा। राजनीतिक विषयों के चयन संबंध में भी यही कहा जा सकता है। लेखक के कुछ अन्य विशेषताओं की बात की जाए तो उनमें बीच-बीच में पंचतंत्र, वेद ऋचाएं, दुष्यंत कुमार, निदा फाजली, रहीम, अदम गोंडवी, रामधारी सिंह दिनकर आज की काव्य पंक्तियाँ आती हैं, जिनका विषय अनुरूप व्यंग्य के पक्ष में बढ़िया प्रयोग किया गया है। इस संग्रह की लगभग सभी रचनाओं में एक सजग व्यंग्यदृष्टि हमेशा बनी रही है। सरोकार व्यंग्य के पूरे प्रारूप में बहुत अच्छी तरह अंतर्निहित प्रतीत होते हैं। जैसे ‘तीन तूफानी एक नरक में’ शीर्षक व्यंग्य में देखें, ‘कालू ने गंभीर स्वर में कहा- ‘आदमियों का तो कोई भगवान है जो बात-बात पर उन्हें बचाता है, लेकिन हमें कौन बचाएगा’ ‘पिज्जा की मांग ना मानने पर चौरसिया जी की नई बहू पंखे तक से लटक गई।’ ‘खाली पेट होता तो बकौल परसाई उन्हें व्यंग्य सूझता, मगर पेट भरा था सो बदमाशी सूझने लगी।’
‘मॉल, मुहूर्त और मुसीबत’ बाजार के स्वार्थसिद्धि की व्यंग्य कथा है, तो वहीँ ‘उल्टे लटकते हम और सीधा होता उल्लू’ में वह लिखते हैं- ‘तू अभागा टेलीग्राम के युग का जीव है और अब युग इंस्टाग्राम का है। इन दो युगों के बीच बाजार आ गया है और अब वही सब तय करता है।’ संग्रह का एक और उल्लेखनीय व्यंग्य है ‘खमीर-सा उठता जमीर’ जहां आप देखते हैं कि क्या हो तब, जब वर्षों से सोया जमीर एकाएक खमीर-सा उठने लगे। जमीर जागरण का ज्वार अलग-अलग रूपों में फैलता जाता है। जज्बाती जमीर, फितरती जमीर, करामाती जमीर, खुराफाती जमीर, अकड़े जमीर, जकड़े जमीर, पैर पकड़े जमीर ऐसी तमाम किस्में हैं जमीर नाम के इस विचित्र जीव की। लेखक की मुहावरेदार भाषा हो या मुहावरों का व्यंग्य में भाषाई कलेवर, दोनों ही तत्व रचना में ताजगी भरने का काम करते हैं। मलय जैन को साहित्यिकता की कीमत बखूबी मालूम है। वे अखबारीपन के खतरों के वाकिफ हैं, इसलिए उनकी रचनाशीलता व्यंग्य की समृद्ध परंपरा से जुड़ती नजर आती है। संग्रह का शीर्षक व्यंग्य ‘हलक का दारोगा’ इस संग्रह की प्रतिनिधि व्यंग्य रचना है और संग्रह का शीर्षक रखे जाने के लिए एकदम उपयुक्त भी। समाज के तमाम सुपर मॉम मम्मा और माचो मैन पप्पा को लेकर रचा गया व्यंग्य ‘कोटि की रोटी का प्रश्न’ है और ‘हाई डेफिनेशन दुम का लेटेस्ट वर्जन’ देखना हो तो आपको इसी शीर्षक का व्यंग्य इस पुस्तक में मिल जाएगा, जिसमें लेखक की व्यंग्य भाषा अपने पूरे उफान पर दिखाई देती है- ‘बॉस के कमरे से बाहर आते ही उन्होंने मुझे दुम को लेकर टोका, “कैसी दुम है यार तुम्हारी, हिलती ही नहीं? अच्छा खासा प्रोजेक्ट गवां दिया! मुझे देखो, जरा-सा हिलाई और बन गया काम,” कहते हुए उन्होंने अपनी अदृश्य दुम पर प्यार से हाथ फेरा।’
लेखक ने अपने इस संग्रह में अपनी कल्पनाशक्ति का भरपूर इस्तेमाल किया है, लेकिन यथार्थ से भी एक प्रकार का कनेक्ट बना रहता है। लॉकडाउन स्टोरी को लेकर लिखी गई ‘तीन निठल्लों की कूड़ा कथा’ एक मार्मिक व्यंग्यकथा है, जिसमें आप सामाजिक कार्य-कारण संबंध साफ देख सकते हैं कि किस तरह एक बेरोजगार जिसे समाज तानों की भाषा में निठल्ला कहता है और किस तरह वह एक दिन अपराध की तरफ कदम बढ़ा देता है। ‘हेलीकॉप्टर में बारात’ शीर्षक व्यंग्य में वह दिखावे की संस्कृति पर कड़ा प्रहार करते हैं। मलय एक दृष्टि संपन्न, प्रतिभा संपन्न और सरल-सहज रहने वाले व्यंग्यकार हैं। उनका अनुभव संसार लगातार विस्तार ले रहा है। हालांकि सरकारी सेवा में होने के कारण बहुत ज्यादा मुखरता से वे बचते दिखाई दिए हैं। पाठकों को भविष्य में उनकी रचनाशीलता के अभी बहुत से कोण देखने बाकी है। उनके इस संग्रह में लेखक की संवेदनशीलता और समाज की बेहतरी का संकल्प साफ दिखाई देता है। वह अपने लेखन के माध्यम से समाज की विसंगतियों पर भरसक प्रहार करते नजर आते हैं। हर तरह से उनकी यह किताब पढ़े जाने योग्य है। समकालीन व्यंग्य समय में जब हर तरफ़ क्वांटिटी और क्वालिटी को दबाने पर आमादा हो, मलय जैन जैसे समर्थ व्यंग्यकार की उपस्थिति आश्वस्तिपरक है।
//हलक का दारोगा/ व्यंग्य संग्रह/ मलय जैन/ राधाकृष्ण प्रकाशन, नई दिल्ली/ 2023/ पृष्ठ 184/ मूल्य 250/-//