PATNA (RAJESH THAKUR) : मिशन 2024 को लेकर बिहार का मुंगेर लोकसभा क्षेत्र इन दिनो सुर्खियों में है। इस क्षेत्र पर पूरे बिहार की नजर टिकी हुई है। यहां से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की प्रतिष्ठा जुड़ी है। इस लोकसभा क्षेत्र से जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह की भी प्रतिष्ठा जुड़ी है। दरअसल, ललन सिंह ही मीर कासिम की नगरी मुंगेर लोकसभा क्षेत्र से वर्तमान सांसद हैं। एनडीए के बैनर तले उन्होंने 2019 में यहां से जीत हासिल की थी। इसके पहले वे 2009 में भी वे ही जीते थे। लेकिन, अब पॉलिटिकल सिनेरियो बदल गया है। नीतीश कुमार एनडीए से बाहर आ गए हैं। वे लालू यादव के साथ हो गए हैं। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल है कि ललन सिंह के सामने बीजेपी खुद लड़ेगी या एनडीए के घटक दल से कोई सामने आएगा?
पॉलिटिल एक्सपर्ट की मानें तो मुंगेर का जो जातीय समीकरण है और क्षेत्र का जो परिसीमन है, उसके अनुसार ललन सिंह आज काफी मजबूत स्थिति में हैं और पटकनी देने के लिए बीजेपी को काफी मजबूत रणनीति बनानी होगी। हालांकि, इसके लिए बीजेपी ठोस रणनीति में जुट भी गयी है और पिछले माह लखीसराय में बीजेपी के सबसे बड़े चाणक्य माने जाने वाले केंद्रीय मंत्री अमित शाह की हुंकार के रूप में बड़ा दांव भी चला था। अमित शाह न केवल बड़े-बड़े हमले किये थे, बल्कि वहां के पौराणिक मंदिर अशोक धाम जाकर आस्था से जुड़े लोगों में भी पैठ बनाने की कोशिश की थी।
अंदरखाने चर्चा है कि बीजेपी हर हाल में चाहती है कि बीजेपी कहीं से जीते या नहीं जीते, लेकिन मुंगेर से ललन सिंह जरूर हार जाए। दरअसल, आज जेडीयू और बीजेपी यदि अलग हैं तो उसके पीछे ललन सिंह को ही बड़ा कारण माना जाता है। और यह भी सत्य है कि ललन सिंह को मुंगेर में यदि कोई पटकनी दे सकता है तो वह भूमिहार उम्मीदवार ही देगा, दूसरा कोई नहीं। ललन सिंह खुद भूमिहार समाज से आते हैं। वैसे भूमिहार समाज से बीजेपी के पास गिरिराज सिंह, विजय सिन्हा, राकेश सिन्हा जैसे दिग्गज नेता हैं। वहीं, घटक दल में पूर्व सांसद सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी हैं। 2014 में वीणा देवी के हाथों ललन सिंह पराजित भी हो चुके हैं। कहा जाता है कि बीजेपी के दिग्गज इन सारी रणनीतियों पर मंथन कर रहे हैं। लेकिन, चर्चा यह भी है कि फिलहाल गिरिराज सिंह और राकेश सिन्हा मुंगेर से नहीं लड़ना चाहते हैं। विजय सिन्हा भी नहीं चाह रहे हैं, वहीं सूरजभान सिंह वेट एंड वाच के रोल में हैं।
दरअसल, मुंगेर पर पहले भूमिहार समाज का कब्जा नहीं था। एक समय था, जब यहां यादव जाति का वर्चस्व था। लेकिन नये परिसीमन ने यहां का इतिहास-भूगोल सबकुछ बदल दिया। यहां तक कि राजनीति की धारा भी बदल गई। मुंगेर लोकसभा क्षेत्र की भौगोलिक बनावट ऐसी थी कि 1991 से 2004 तक के लोकसभा चुनाव में यादव और कुशवाहा समाज का ही बोलवाला रहा। इन्हीं दो जातियों से नेता सांसद बनते रहे। यादव के अलावा यहां से लवकुश समीकरण में आनेवाले कोईरी और धानुक जाति की आबादी भी काफी है।
2008 में नये सिरे से हुए परिसीमन ने भूमिहार समाज के पाले में यह सीट चली गयी। इस लोकसभा क्षेत्र में भूमिहार बाहुल्य विधानसभा क्षेत्र मोकामा, लखीसराय और बाढ़ को जोड़ दिया गया। वहीं हवेली खड़गपुर, तारापुर जैसे पिछड़ी आबादी वाला क्षेत्र बाहर हो गया। इसके बाद तीन टर्म से मुंगेर से भूमिहार समाज के नेता ही सांसद बन रहे हैं। बहरहाल, इस बार महागठबंधन में जेडीयू के अलावा राजद, कांग्रेस और वामदल भी शामिल हैं। इससे ललन सिंह को कमजारे समझने की भूल विरोधी तो नहीं ही करेंगे। ऐसे में अब देखना दिलचस्प होगा कि उनके सामने कौन आते हैं ?
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