बाइस्कोप : आगरा के ताजमहल, दिल्ली के कुतुब मीनार, ई है बंबई नगरिया तू देख बबुआ; कहीं जगदीश कहीं कोई और मिलेंगे

PATNA (APP) : मायानगरी में 70 के दशक में एक फिल्म आयी थी दुश्मन। इसका एक गाना सुपरहिट हुआ था- ‘देखो, देखो, देखो! बाइस्कोप देखो!! दिल्ली का कुतुब मीनार देखो, बंबई शहर की बहार देखो। ये आगरे का है ताजमहल, घर बैठे सारा संसार देखो। पैसा फेको तमाशा देखो…’ आज भी लता मंगेश्कर का गाया हुआ यह गाना जहां बजता है तो बच्चे ही नहीं बड़े से लेकर बूढ़े तक झूम जाते हैं और गांव-गलियों में कांधे पर बाइस्कोप लेकर दिखाने वाले लोगों के चेहरे जेहन में कौंध जाते हैं। बच्चे कैसे बाइस्कोप देखने के​ लिए मार करते थे। उस बड़े से बक्से में छोटे-छोटे पांच खाने बने होते थे। उन्हीं में बच्चे अपना पूरा चेहरा ढुकाए रहता था और अंदर चलने वाली तस्वीरों को देख झूम उठते थे। अब तो यह बाइस्कोप भी​ विलुप्त होता जा रहा है। हां, कहीं-कहीं गांव गलियों में यह दिख जा रहा है। पटना के मरीन ड्राइव पर बाइस्कोप आप देख सकते हैं। हालांकि, वह कब वहां से भी विलुप्त हो जाए, नहीं कहा जा सकता है। वहां तो बाइस्कोप के साथ गाना भी चलता रहता है कि मम्मी भी देखा, पापा भी देखा, अब तुम देख बबुआ। वहीं पटना सिटी इलाके में अशोकराज पथ पर पिछले दिनों इसी तरह का बाइस्कोप वाला दिख गया। तब वरीय पत्रकार रजिया अंसारी ने न केवल उसे देखा, बल्कि बाइस्कोप वाले से बात भी की। उनकी परेशानियों को महसूस किया। साथ ही अपने अनुभवों को साझा भी किया। पढ़ें उनकी यह पूरी रिपोर्ट :

गरा के ताजमहल देख ला, दिल्ली के कुतुब मीनार, बंबई नगरिया देख ला, आमिर, सलमान, शाहरूख खान भी देखा। बचपन में देखे थे, फिर अचानक से पटना सिटी चौराहे के पास बाइस्कोप दिख गया। फिर क्या, अंदर का बचपन मन फिर चंचल हो उठा और हमने देख लिया बाइस्कोप। हालांकि, बाबा के बाइस्कोप का पर्दा फटा हुआ था। बाबा की तरह ही उनका बाइस्कोप भी दयनीय अवस्था में था। फिर भी उस टूटे बाइस्कोप को देखकर भी दिल को बहुत खुशी मिली। मेरे साथ मेरी मित्र रूपा झा भी थीं। उन्होंने बताया कि कुछ महीने पहले भी ये बाबा त्रिपोलिया के पास दिखे थे। तब मेरी बहुत इच्छा हुई कि बाबा के बारे में जानकारी लें कि क्या अब भी उनका ये बाइस्कोप लोग देखते हैं। हमने बात की उनसे तो उन्होंने बताया कि यह अब खराब हो चुका है। बस इसे ढो रहे हैं। इस बाइस्कोप से उनकी कोई आमदनी नहीं हो रही है। कुछ लोग ऐसे ही दया करके कुछ पैसे दे देते हैं। रूपा ने कहा कि आप ये बाइस्कोप बनवा लीजिए। उन्होंने बाबा को जरुरत भर मदद भी की।

बातचीत में पता चला कि बाइस्कोप वाले बाबा का नाम जगदीश है। उम्र 70-75 के करीब होगी। पटना सिटी में दिख जाएंगे आपको। इनके बेटे और बहू गांव में हैं। पत्नी का निधन हो चुका है। जगदीश गांव में नहीं बसे। वह शहर में ही रह रहे हैं और एक ऐसी पीढ़ी को बाइस्कोप दिखाने का प्रयत्न कर रहे हैं, जो मोबाइल में गुम है। वे बच्चे एक क्लिक पर मनचाही पिक्चर देख रहे हैं, दुनिया की सैर कर रहे हैं और खुद भी वीडियो बना रहे हैं। आज हर हाथ में मोबाइल है, हर शहर में कई मल्टीप्लेक्स सिनेमा हैं। लेकिन, सुखद है कि इंटरनेट के जमाने में भी बाबा बाइस्कोप दिखा रहे हैं। लेकिन, दुखद है कि इस दौर में बाइस्कोप से इतनी आमदनी नहीं हो रही है कि दो पल का चैन खरीद सके।

आज की पीढ़ी तो बाइस्कोप जानती ही नहीं होगी, पर एक वक़्त था कि मेलों में सबसे ज्यादा भीड़ बाइस्कोप देखने वालों की होती थी। गली-मोहल्ले में भी अगर कभी बाइस्कोप आ जाए तो बच्चे के साथ बड़े-बूढ़े भी इसे बहुत पसंद से देखते थे। यह लकड़ी का एक बक्सा जैसा होता है, जिसमें आगे की ओर किसी में तीन तो किसी में पांच गोले बने होते थे। उसमें देखने पर अंदर परदे पर आपको कई शहरों की मशहूर इमारतें, इतिहास के फेमस नायक और फिल्मी सितारों की तस्वीरें दिखती थी। इसकी सबसे खास बात होती थी कि बाइस्कोप दिखाने वाले को सब याद रहता था कि अंदर परदे पर क्या चल रहा है। और, वह गाना गाते हुए सभी दृश्यों का वर्णन करता था। हमने भी बचपन में बाइस्कोप देखे हैं और मेरे मन में हमेशा य​ह कौतूहल रहता था कि बाइस्कोप दिखाने वाले को कैसे पता कि अब परदे पर क्या चल रहा है? कौन-सा हीरो या हिरोईन आयी है। जगदीश जब बाइस्कोप दिखा रहे थे तो डब्बे के अंदर एक-दो हीरो की तस्वीर दिखी बाकी सारे पर्दे फटे हुए थे, पर जगदीश बड़ी तन्मयता से सुना रहे थे कि परदे पर क्या चल रहा है और दर्शक क्या देख रहा है। हालांकि, यह भी पता चला है कि पटना के मरीन ड्राइव पर भी बाइस्कोप दिखाया जाता है। लोग उसे धरोहर के रूप में देखते हैं। बाइस्कोप देखते हुए लोग सेल्फी लेते हैं और फोटो भी खिंचवाते हैं।

बहरहाल, समय के साथ अब यह पुरानी तकनीक धरोहर हो गयी है। अब जीवन पूरी तरह से आधुनिक हो चुका है। इंटरनेट, थ्री-डी और मल्टीप्लेक्स के जमाने में अब इसकी डिमांड नहीं रही। फिर भी जगदीश और उनके जैसे कुछ लोग इस धरोहर को ढो रहे हैं। मोबाइल इंटरनेट में गुम पीढ़ी को दिखा रहे हैं कि बाइस्कोप भी कुछ होता है।

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