PATNA (SMR) : बिहार में आज सुबह से ही लोगों के घरों में ‘ चुलहिया लेबार’ है। आज खाना नहीं बनना है। आज सत्तू खाने का पर्व है। आज सतुआन पर्व है। साहित्यकार और भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी ध्रुव गुप्त ने इस साहित्यिक सत्तू को बेहतरीन ढंग से डिजिटल बरतन में परोसा है। इसके साथ प्राकृतिक चटनी ने तो इसे जबरदस्त सुस्वादु बना दिया है। यह आलेख ध्रुव गुप्त के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से अक्षरशः लिया गया है। इसमें लेखक के निजी विचार हैं। 

ज सतुआन का दिन है। बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश का लोकपर्व। बिहार के मिथिलांचल में इसे ‘जुड़- शीतल’ कहते हैं। यह दिन आम के पेड़ों पर लगे नए-नए फल और खेतों में चने एवं जौ की नई फसल के स्वागत का उत्सव है। 

आज इन नई फसलों के लिए भगवान सूर्य का आभार प्रकट करने के बाद नवान्न के रूप में आम के नए-नए टिकोरों की चटनी के साथ नए चने और जौ का सत्तू खाया जाता है। समय के साथ सतुआन पर्व में पूजा-पाठ, स्नान-ध्यान और दान-दक्षिणा के कर्मकांड जुड़ते चले गए, मगर इस दिन की परिकल्पना का आधार पूरी तरह वैज्ञानिक है। 

दरअसल, यह मौसम प्रचंड गर्मी की शुरुआत का है। सत्तू की तासीर ठंडी होती है और आम का टिकोला हमें लू से बचाता है। लू के खिलाफ कारगर हथियार प्याज भी है। गर्मी के महीनों में सत्तू भोजपुरिया लोगों का प्रिय भोजन है तो यह अकारण नहीं है। 

सत्तू को देशी फास्ट फूड भी कहते हैं। इसमें नमक मिलाकर, पानी में सानकर कभी भी, कहीं भी, कैसे भी खा लिया जा सकता है, लेकिन सत्तू खाने का असली मजा तब है, जब उसके कुछ संगी-साथी भी साथ हों। भोजपुरी में प्रसिद्ध कहावत है- सतुआ के चार यार / चोखा, चटनी, प्याज, अचार। एक दूसरी कहावत है – आम के चटनी, प्याज, अचार / सतुआ खाईं पलथी मार। चटनी अगर मौसम के नए टिकोरे की हो तो सत्तू के स्वाद में चार चांद लग जाते हैं।

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