Bihar Diwas 2025 : ‘B’rilliant / ‘I’nnovative / ‘H’ard Working / ‘A’ction Oriented and ‘R’esourceful… जानिए अपने #बिहार को

1. बिहार या विहार
बिहार के नाम पर सबसे पहले चर्चा करते हैं। दरअसल, हर साल 22 मार्च को बिहार दिवस मनाया जाता है। लेकिन आपने कभी जाना कि इसका नाम बिहार कैसे पड़ा ? तो आपको बता दें कि बिहार शब्द संस्कृत और पाली शब्द ‘विहार’ मठ से बना है। विहार बौद्ध संस्कृति का जन्म स्थान है, जिस वजह से इस राज्य का नाम पहले ‘विहार’ था। विहार मतलब भ्रमण करना होता है। बाद में बोलचाल में इसका नाम बिहार पड़ गया। थोड़ा इसके इतिहास में जाते हैं तो पाते हैं कि इस प्रदेश को एक समय मगध कहा जाता था। मगध का सर्वप्रथम उल्लेख अथर्ववेद में मिलता है। अभियान चिंतामणि के अनुसार, मगध को कीकट कहा गया है। बुद्धकालीन समय में मगध एक शक्‍तिशाली राजतंत्रों में एक था। दक्षिणी बिहार से इसका उत्तर बिहार की ओर विस्तार हुआ। फिर देखते-देखते उत्तर भारत तक इसका प्रभाव हो गया। एक समय ऐसा भी आया, जब मगध उत्तर भारत का सर्वाधिक शक्‍तिशाली महाजनपद बन गया। वर्तमान में बिहार के गया जोन को लोग मगध के नाम से जानते हैं। जिस समय बिहार मगध के नाम से जाना जाता था, उस समय इसकी राजधानी का नाम पाटलिपुत्र था। मुगल बादशाह औरंगजेब ने 1704 में इस शहर का नाम अजीमाबाद कर दिया था। इसके पहले यह शहर कुसुमपुर के नाम से भी फेमस था। बाद में इसका नाम पटना पड़ गया और आज भी यह पटना के नाम से ही जाना जाता है।

2. पहला गणतंत्र वैशाली
1912 में बिहार संयुक्त प्रांत से अलग होकर स्वतंत्र अस्तित्व में आया था। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सत्ता संभालने के बाद बिहार दिवस की शुरुआत की थी। दरअसल, बिहार का इतिहास काफी समृद्ध रहा है। इसी प्रदेश ने वैशाली के रूप में देश को पहला लोकतंत्र दिया था। इतिहास के पन्नों को पलटते हैं तो पाते हैं कि ईसा से लगभग छठी सदी पहले वैशाली में ही दुनिया का पहला गणतंत्र बना था। यह वैशाली गणराज्य के नाम से जाना जाता था। दिल्ली के संसद भवन में आज जो आप लोकसभा के रूप में अपर हाउस और राज्यसभा के रूप में लोअर हाउस सिस्टम को देख रहे हैं। ऐसा ही सबकुछ उस समय वैशाली गणराज्य में था। तब के प्रतिनिधि आज की सरकार की तरह जनता के लिए नीतियां बनाते थे। कहा जाता है कि उस समय वैशाली गणराज्य में छोटी-छोटी समितियां थीं। इन समितियों में शामिल प्रतिनिधि जनता के लिए नियम व नीति बनाते थे। उस समय वज्जी महाजनपद की राजधानी के रूप में वैशाली नगर था। प्राचीन भारत में शक्तिशाली राज्यों को महाजनपद कहा जाता था। वैशाली में गणराज्य की स्थापना लिच्छवी शासन में हुई थी। यह भी बता दें कि केवल वैशाली गणराज्य ही नहीं, बल्कि भारत के प्रसिद्ध सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य, विक्रमादित्य और सम्राट अशोक भी बिहार से ही हुए थे। देश को पहला राष्ट्रपति भी बिहार ने ही दिया है। जीरादेई के डॉ राजेंद्र प्रसाद बने थे देश के पहले राष्ट्रपति। और तो और पूरी दुनिया को जीरो देने वाले महान खगोलशास्त्री आर्यभट्ट भी बिहार के ही थे।

3. बुद्ध-महावीर से दशमेश गुरु त​क
बिहार में केवल राजे-महाराजे ही नहीं हुए हैं, बल्कि कई भगवान भी जन्म लिये हैं। वे शांति के संदेश दिए हैं। पूरी दुनिया में शांति का संदेश देने वाले भगवान बुद्ध और भगवान महावीर का जन्म बिहार में ही हुआ था। भगवान बुद्ध ने बौद्ध धर्म और भगवान महावीर ने जैन धर्म की शुरुआत की थी। दोनों धर्मों का विस्तार विदेशों तक हुआ। खासकर बौद्ध धर्म तो बिहार से बाहर निकलकर भारत के कोने-कोने में पहुंच गया। चीन, जापान, श्रीलंका, म्यांमार, तिब्बत आदि देशों में आज भी आपको बौद्ध धर्म के अनुयायी मिल जाएंगे। मां सीता का जन्म भी बिहार की धरती पर ही हुुआ था। इतना ही नहीं, मां सीता का भगवान राम से पहली बार मिलन भी इसी धरती पर हुआ था। सीतामढ़ी के पुनौरा धाम में भव्य जानकी मंदिर है। प्राचीन काल में यहां पुण्डरीक ऋषि का आश्रम हुआ करता था। मां जानकी का यह ऐसा इकलौता मंदिर है, जहां सीता की बहनों की भी प्रतिमाएं स्थापित की गयी हैं। अब तो यहां मां सीता की विशाल प्रतिमा स्थापित होगी। अष्टधातु से बनी यह प्रतिमा दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा होगी। रामायण रिसर्च काउंसिल की ओर से इस प्रतिमा का निर्माण कराया जाएगा, जो 251 मीटर ऊंची होगी। दरअसल, अयोध्या में भगवान श्रीराम की दुनिया की सबसे विशाल प्रतिमा स्थापित की गयी है। उसी के तर्ज पर मां सीता की भी प्रतिमा बनेगी। यह भी बताते हुए गर्व होता है कि बिहार के ऋषिकुंड में रहने वाले श्रृंगी ऋषि के यज्ञ कराए जाने के बाद ही राजा दशरथ के घर भगवान श्रीराम और उनके सभी भाइयों का जन्म हुआ था। इसके अलावा सिखों के 10वें गुरु यानी गुरु गोबिंद सिंह का जन्म भी बिहार में ही हुआ था। पटना साहिब स्थित हरमंदिर तख्त में दशमेश गुरु का जन्मोत्सव हर साल धूमधाम से मनाया जाता है। उनकी पावन जन्मभूमि को देखने और वहां प्रार्थना करने के लिए पंजाब से सालोंभर सिख समाज के लोग आते रहते हैं।

4. नालंदा विश्वविद्यालय
एक समय था, जब नालंदा विश्वविद्यालय का नाम बड़े गर्व से लिया जाता था। अब यह धरोहर का रूप ले लिया है। दरअसल, यह दुनिया के सबसे पुराना विश्वविद्यालय रहा है और हमें गर्व है कि यह भी इसी माटी पर अवस्थित है। 12वीं शताब्दी के आसपास इस विश्वविद्यालय को अताताइयों ने नष्ट कर दिया था। इसे तोड़-फोड़ कर बुरी तरह क्षतिग्रस्त कर दिया गया था। यहां की किताबों को लेकर वे भाग गए थे। इस स्थान पूरी तरह खंडहर में तब्दील हो गया था, लेकिन 2016 में बिहार सरकार ने इसकी सुधि ली। इस स्थान को यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज (UNESCO World Heritage) में शामिल किया गया। अब इस विश्वविद्यालय की इमारतें नयी हो गयी हैं। इसकी भव्य इमारतों को देख लोग भाव विह्वल हो जाते हैं। नालंदा विश्वविद्यालय की मनमोहक तस्वीरों को देखकर अब तो हर बिहारी को गर्व की अनुभूति होने लगी है। खास बात कि नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त काल के दौरान यानी पांचवीं सदी में की गयी थी। प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के निकट गुप्तकालीन 52 तालाब हैं। इन तालाबों को नालंदा विश्वविद्यालय का समकालीन माना जाता है। कहा जाता है कि इनमें कई ऐसे तालाब हैं, जो बुद्ध काल के समय से ही हैं। इतना ही नहीं, आज जो हम संविधान देख रहे हैं, उसका अलंकरण विश्वप्रसिद्ध चित्रकार आचार्य नंदलाल बसु ने किया था। नंदलाल बसु भी बिहार के ही रहने वाले थे। उनका जन्म मुंगेर के हवेली खड़गपुर में हुआ था।

5. लिट्टी चोखा व बापू की लाठी
इस नंबर पर भी कई तथ्यों को रखा गया है, जिसमें लिट्टी चोखा से लेकर बापू की लाठी तक शामिल हैं। लिट्टी-चोखा तो ‘बिहारी ट्रेड मार्क’ बन गया है। देश हो या विदेश, कहीं भी आप लिट्टी-चोखा खाएं, बिहार का नाम जुबान पर आ ही जाएगा। बिहार की इन लिट्टी- चोखा से भी विशेष पहचान बन गयी है। इस लिट्टी-चोखा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी जमकर प्रशंसा कर चुके हैं। दरअसल, प्रधानमंत्री से जुड़ा यह वाकया 2020 का है। तब दिल्ली में इंडिया गेट के पास राजपथ पर हुनर हाट का आयोजन किया गया था। इस हुनर हाट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अचानक पहुंच गए। मेला घूमने के दौरान वे ‘बिहारी व्‍यंजन लिट्टी चोखा’ के नाम से लगे स्‍टॉल पर चले गए। लिट्टी-चोखा को देख उनसे रहा नहीं गया। इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी ने लिट्टी-चोखा का टेस्ट लिया। उन्‍होंने न केवल इसका भुगतान किया, बल्कि दुकानदार की प्रशंसा करते हुए कहा- मजा आ गया, वाकई लिट्टी-चोखा लाजवाब व्यंजन है। इसके बाद उन्‍होंने हुनर हाट को टैग करते हुए ट्वीट भी किया। बॉलीवुड की कई बड़ी ​हस्तियों ने भी यहां के लिट्टी-चोखा की जमकर प्रशंसा अपने बिहार दौरे के समय की थी। लिट्टी-चोखा तो यहां का ट्रेड मार्क बन ही गया है, लेकिन कई अन्य फूड आयटम्स भी हैं, जो इस स्टेट को गौरवान्वित करता है। इसमें गया का तिलकुट, सिलाव का खाजा, बाढ़ की लाई आदि प्रमुख हैं।
वहीं, बापू की लाठी का भी बिहार से काफी गहरा संबंध है। महात्मा गांधी की हाथों में जिस लाठी को आप देखते हैं, वह लाठी उन्हें मुंगेर में ही मिली थी… दरअसल, 1934 में 15 जनवरी को भयंकर भूंकप आया था। इसमें सर्वाधिक क्षति इसी जिले को हुई थी। आज भी 15 जनवरी को भूकंप की याद में पूरा मुंगेर शहर बंद रहता है। उस समय भूकंप पीड़ितों से मिलने के लिए देश के दिग्गज लोग पहुंचे थे। उन्हीं में महात्मा गांधी भी शामिल थे। मुंगेर के बाद वे घोरघट गांव गए। घोरघट में पता चला कि यहां की लाठी काफी प्रसिद्ध है और यह लाठी अंग्रेजों को बेची जाती है। इसी का इस्तेमाल अंग्रेज भारत के फ्रीडम फाइटर के खिलाफ वे करते हैं। इसी दौरान गांव के लोगों ने महात्मा गांधी को उपहार में लाठी दी। तब बापू ने कहा कि इस लाठी को तभी मैं स्वीकार करूंगा, जब आपलोग इसे अंग्रेजों को नहीं बेचेंगे। लोगों ने बापू की बात मान ली। मुंगेर के घोरघट की बनी यह लाठी ताउम्र उनके साथ रही और हां, बापू को ‘महात्मा’ की उपाधि भी बिहार में ही मिली थी, चंपारण के किसान पंडित राजकुमार शुक्ल उन्हें पहली बार महात्मा कहकर संबोधित किया था। उनके ही कहने पर बापू पहली बार बिहार आए थे। बाद में यहां की धरती उनकी कर्मभूमि बन गयी।