कहां जा रहा बिहार : सांसद और पत्रकार का सरेराह इस कदर पीटा जाना बेहद चिंताजनक

PATNA (RAJESH THAKUR) : बिहार क्या फिर से अराजकता की ओर लौट रहा है ? क्या यहां अब कोई सेफ नहीं रहा ? सुशासन का इकबाल क्या खत्म होता जा रहा है ? बिहार पुलिस का भय क्या अब लोगों में नहीं रहा ? ये कुछ ऐसे बुनियादी सवाल हैं, जो 24 घंटे के अंदर दो घटनाओं के बाद से लोगों के बीच उठने लगे हैं। भागलपुर में दो स्थानीय पत्रकारों की बेरहमी से पिटाई और सासाराम में स्थानीय लोगों द्वारा सांसद मनोज राम की कुटाई से सरकार के प्रशासनिक सिस्टम पर अंगुली उठने लगी है। पत्रकारों को पिटाई करने का सांसद अजय मंडल व उनके समर्थकों पर लगा है। इस मामले में दोनों ओर से प्राथमिकी दर्ज करायी गयी है। वहीं पिछले सप्ताह मोकामा फायरिंग को भी आप नहीं भूल सकते हैं। विरोधी पार्टियां सरकार को घेरने में लग गयी हैं और सत्ता पक्ष अपने बचाव में।

दरअसल, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इन दिनों प्रगति यात्रा पर हैं। वे विभिन्न जिलों का दौरा कर रहे हैं। यह यात्रा लगभग सभी जिलों को टच करेगी। यह एक सरकारी यात्रा है और इसके जरिए वे विकास कार्यों का फीडबैक ले रहे हैं। वे आज इसी कड़ी में भागलपुर भी पहुंचे हैं और उसी भागलपुर में अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी की पुण्यतिथि की पूर्व संध्या पर पत्रकार कुणाल शेखर और सुमित कुमार को बुरी तरह पीटा गया। वहीं गांधीजी की पुण्यतिथि पर कमोवेश ऐसी ही घटना सासाराम में घटी। यहां भीड़ ने स्थानीय कांग्रेसी सांसद मनोज राम को बुरी तरह पीटा। दोनों मामलों में पीड़ितों को प्राथमिक इलाज के लिए अस्पताल जाना पड़ा।

सबसे बड़ी बात है कि पत्रकार के पास तो कोई सुरक्षा व्यवस्था भी नहीं होती है, न आगे किसी की होगी। इक्के-दुक्के को छोड़ दिया जाए तो पत्रकारों के पास इतनी ताकत भी नहीं होती है कि वे पर्सनल सिक्योरिटी लेकर चले। कहें तो वे अपनी जान हथेली पर लेकर चलते हैं। यही वजह है कि आए दिन पत्रकारों के साथ मारपीट होती रहती है। यह नहीं भूलना चाहिए कि पत्रकार भी आम आदमी है और आम आदमी को भी सुरक्षा चाहिए। लेकिन, सबसे बड़ा सवाल यह है कि विधायक और सांसद के पास तो सिक्योरिटी होती है। इसके बाद भी भीड़ ने जिस तरह सासाराम के सांसद मनोज राम को पीटा, उनका सिर फोड़ दिया, वह सीधे सरकार के भोथर हो चुके सिस्टम को कठघरे में खड़ा करता है।

बता दें कि प्रगति यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का एक भाषण काफी वायरल हो रहा है कि 2005 के पहले बिहार में ‘ये’ नहीं होता था, ‘वो’ नहीं होता था। शाम में घर से लोग निकलते नहीं थे। अपराधियों का बोलबाला था। बदमाशों के डर से शाम में ही दुकानें बंद हो जाती थीं। बिहार में जंगलराज था। जब से वे सत्ता में आए हैं, तब से राज्य में विकास कार्य हो रहे हैं। बेशक यह सच भी है। लोग भी मानते हैं कि पहले अपराधियों का बोलबाला था। नीतीश कुमार के सत्ता में आने के बाद बिहार में काफी परिवर्तन हुआ है। विकास कार्य भी हुए हैं। शिक्षा के प्रति लोगों में जागरूकता आयी है। काफी संख्या में लड़कियां स्कूल-कॉलेज जाने लगी हैं। लेकिन लोग यह भी मानते हैं कि उनका पहला कार्यकाल काफी इफेक्टिव था। शिक्षा, अस्पताल, बिजली से लेकर प्रशासनिक व्यवस्था तक, सब सुधर गया था। लेकिन, बाद का कार्यकाल पहले की तरह नहीं रहा और इन दिनों एक बार फिर बिहार उसी रास्ते पर चल रहा है। अपराध के साथ भ्रष्टाचार भी बढ़ गये हैं। खुद भूमि सुधार व राजस्व मंत्री डॉ दिलीप जायसवाल कई बार भ्रष्ट अफसरों को चेतावनी दी है कि वे सुधर जाएं।

बहरहाल, विरोधियों का सीधा आरोप है कि 2005 के पहले दिनदहाड़े न पत्रकारों को पीटा जाता था और न ही दिन के उजाले में इस तरह सांसद को कुटा जाता था। दोनों ही घटनाएं निंदनीय है। मोकामा में भी जिस तरह पूर्व विधायक अनंत सिंह के सामने फायरिंग की घटना हुई, वह भी चिंता का विषय है। विरोधी ही नहीं, NDA के घटक दल में शामिल लोजपा (रामविलास) की पार्टी ने भी भागलपुर में पत्रकारों के साथ मारपीट की घटना को निंदनीय बताया है। बीजेपी ने उस घटना की निंदा की है। राजद की ओर से हवेली खड़गपुर में आरोपी सांसद का पुतला दहन किया गया। भागलपुर और सासाराम, दोनों ही घटनाओं में गलती किसकी है, इस पर बड़ी बहस हो सकती है, लेकिन ऐसी घटनाएं भविष्य में नहीं हो, इस पर सरकार को गंभीर होने की जरूरत है। अन्यथा बिहार की छवि फिर से खराब होने में देर नहीं लगेगी।