रोचक स्टोरी : एक वोट से चली गयी थी कुर्सी, वाजपेयी सरकार से सरदार वल्लभ भाई पटेल के बारे में जानें

PATNA (RAJESH THAKUR) : लोकतंत्र में वोटों की अहमियत से हर कोई परिचित है। इसके बाद भी कई लोग सोचते हैं कि उसके एक वोट से क्या होगा। वे नहीं भी देंगे तो जीतने वाले जीत ही जाएंगे। लेकिन उन्हें तब काफी अफसोस होता है, जब उनके ही उम्मीदवार फकत एक वोट से हार जाता है। तब वैसे लोगों के पास पछताने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है। ऐसे ही उदाहरणों से इतिहास भरे पड़े हैं। नगर निकाय चुनाव से लेकर विधानसभा चुनाव तक में इस छोटे मार्जिन से जीत-हार देखने को मिलता रहा है और लोग कटु अनुभव से गुजरते रहे हैं।

लोकतंत्र के महापर्व में हर वोट कितना कीमती होता है, चुनाव परिणाम से ही पता चलता है। विश्वास ना हो तो राजस्थान कांग्रेस के दिग्गज नेता सीपी जोशी की हार से आप समझ सकते हैं एक वोट का महत्व। तब कांग्रेस के दिग्गज नेता सीपी जोशी महज एक वोट से हार गए थे और इस वजह से वे मुख्यमंत्री भी नहीं बन सके थे। यह भी आपको पता होगा कि एक वोट की वजह से तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी की कुर्सी फ्लोर टेस्ट में महज एक वोट से चली गयी थी।

दरअसल, सीपी जोशी का वाकया 2008 का है। वे नाथद्वारा विधानसभा सीट पर महज एक वोट से जीती बाजी हार गए थे। कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी चुनाव मैदान में थे। उनके खिलाफ बीजेपी के कल्याण सिंह चौहान चुनाव लड़ रहे थे। इस चुनाव में कल्याण सिंह चौहान को कुल 62 हजार 216 वोट मिले थे, जबकि सीपी जोशी को 62 हजार 215 वोट आए थे। इस तरह जोशी एक वोट से हार गए थे। इस हार से सीपी जोशी का मुख्यमंत्री बनने का सपना भी टूट गया था, क्योंकि उस समय वे मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार भी थे।

जोशी के लिए दुखद स्थिति यह थी कि उनका ड्राइवर और उनकी पत्नी वोट देने नहीं जा सके थे। कहा जाता है कि यदि दोनों वोट दे दिए रहते तो उस समय राजस्थान का इतिहास बदल जाता, लेकिन अब पछताए होत क्या…। जाहिर है कि उसके बाद उनकी पत्नी या ड्राइवर को कितना अफसोस हुआ होगा कि वे वोट डालते तो जोशी जरूर जीत जाते। कहा जाता है कि तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने सीपी जोशी को राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाने का आश्वासन दिया था। यानी विधायकी के साथ उनकी सीएम की कुर्सी पर भी एक वोट ने ग्रहण लगा दिया।

बहरहाल, राजस्थान के सीपी जोशी या कर्नाटक के कृष्णामूर्ति जैसा हाल किसी नेता का न हो, इसका ख्याल मतदाता जरूर रखें। वे चूकें नहीं, वोट जरूर करें। अन्यथा यह बहुत संभव है कि आपका पसंदीदा उम्मीदवार सफलता का स्वाद नहीं चख सके। बिहारशरीफ के वरीय पत्रकार सुजीत कुमार बताते हैं कि इस बार के नगर निकाय चुनाव में महज एक वोट से उनकी मां वार्ड कॉउंसलर का चुनाव जीती थीं। पूरे मतगणना के दौरान टेंशन बना रहा। बाद में इस जीत ने उनकी झोली में खुशियां भर दी। पंचायत चुनावों में भी इस तरह के कई उदाहरण हैं। इतना ही नहीं, विदेशों में भी इस तरह के उद्धरण मिलते हैं। साल 1875 में इसी एक वोट की वजह से फ्रांस में राजशाही खत्म हो गयी थी और फ्रांस एक लोकतांत्रिक देश बन सका था। वहीं हिटलर भी एक वोट से जीते थे।

बगल से निकल गयी थी जीत : एक वोट की वजह से कर्नाटक के कृष्णमूर्ति के बगल से जीत निकल गयी थी। यह वाकया साल 2004 का है। तब जेडीएस नेता एआर कृष्णमूर्ति सांथेमरहल्ली विधानसभा सीट पर चुनाव लड़ रहे थे और वे कांग्रेस के आर ध्रुव नारायण से महज एक वोट से हार गए थे। इस चुनाव में कृष्णमूर्ति को 40 हजार 751 वोट मिले थे, जबकि 40 हजार 752 वोट लाकर ध्रुवनारायण ने जीत को अपनी झोली में डाल ली थी।

गिर गयी थी अटल सरकार : प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी को फ्लोर टेस्ट से ठीक पहले तक उम्मीद थी कि सरकार बच जाएगी, लेकिन जब वोटिंग हुई तो सरकार के पक्ष में 269 वोट पड़े, जबकि विरोध में 270 वोट पड़ गए। इससे सरकार गिर गयी। इस हार के बाद सदन में उनकी आंखों से आंसू छलछला पड़े थे। बाद के जीवन में उन्होंने इस प्रसंग को कई बार सार्वजनिक तौर पर कहा था।

तब हार गए थे लौह पुरुष : एक वोट का ही कमाल था कि हार गए थे लौह पुरुष। यह अहमदाबाद नगर निगम का चुनाव था। उस चुनाव में सरदार वल्लभ भाई पटेल भी किस्मत आजमा रहे थे। लेकिन एक वोट से किस्मत दगा दे गयी।

एक वोट से जीते थे हिटलर : वर्ष 1923 में इसी एक वोट की वजह से एडोल्फ हिटलर की जीत हुई और वह जर्मनी में नाजीदल के मुखिया बन सके थे।

एक वोट से ही राष्ट्रभाषा बनी हिंदी : आज अपने देश की राष्ट्रभाषा हिंदी है। इसके लिए भी उसे वोटिंग के दौर से गुजरना पड़ा था। दरअसल आजादी के बाद यह विवाद था कि राष्ट्रभाषा हिंदी हो या अंग्रेजी। दक्षिण के राज्य अंग्रेजी के पक्ष में थे। इसके लिए वोटिंग करायी गयी। दोनों के पक्ष में बराबर वोट पड़े, लेकिन अध्यक्ष ने अपना वोट हिंदी के पक्ष में दे दिया। इसके बाद हिंदी को राष्ट्रभाषा की मान्यता मिल गयी।

अंग्रेजी भी इसी तरह जीती : साल 1776 में अमेरिका में एक वोट से जर्मन भाषा की जगह अंग्रेजी राजभाषा बन गयी थी। जर्मन को राजभाषा बनाने वालों की तादाद इतनी अधिक थी कि यह पक्का माना जा रहा था कि राजभाषा वही बनेगी। सारा खेल एक वोट के कारण बदल गया। एक वोट अधिक आने के कारण अमेरिका में अंग्रेजी राजभाषा बन गयी। इसी तरह साल 1875 में फ्रांस में राजतंत्र और गणतंत्र के सवाल पर वोटिंग हुई। एक वोट से फ्रांस में राजतंत्र की जगह गणतंत्र को मान्यता मिल गई।