—– संपादक की कलम से —–
(अब ऑनलाइन और वर्चुअल का जमाना आ गया है। पत्र लेखन भी इसी ट्रेंड में आ गया है। लेखक पुष्य मित्र वरीय पत्रकार हैं। इन्‍होंने बिहार के जल संसाधन मंत्री संजय झा को कोसी की पीड़ा से अवगत कराया है। यह लेखक का निजी विचार है। नीचे पढ़ें पूरा पत्र…।)

आदरणीय जल संसाधन मंत्री, बिहार सरकार
यह मेरे खेतों से होकर गुजरने वाली कोसी नहर है। हम हर साल इसका किराया देते हैं। जबकि इसमें खेती के मौसम में कम, बाढ़ के मौसम में अधिक पानी आता है। धान रोपनी का मौसम शुरू होने वाला है, मगर अपने नहरों की स्थिति देखिए। कागज पर इस नहर की हर साल सफाई होती है।

जब कोसी परियोजना शुरू हुई थी तो हमारे पूर्वजों ने मन मसोस कर इसके लिए जमीन दी थी। क्योंकि इस नहर के बनने से पहले हमारे इलाके में लाल मिर्च की खेती होती थी, जिसे मेरे परदादा बेचने जेस्सोर (अभी बांग्लादेश) तक जाते थे। तब खेती से उनकी आय इतनी होती थी कि वे इलाके के समृद्ध व्यक्ति कहलाते थे, मगर इस नहर के बनने के बाद वह खेती बंद हो गई और हम फिर से धान, गेहूं बोने वाले पारंपरिक किसान हो गए।

खैर, इसके बावजूद इस नहर की व्यवस्था ठीक रहती तो कुछ लाभ होता, मगर इसके बनने के 50-55 साल बाद भी कोई साल ऐसा नहीं गुजरा, जब मेरे गांव के किसानों को बारिश नहीं होने की स्थिति में इससे सहायता मिली हो। हां, हम अपनी ही जमीन पर बनी इस नहर का किराया देने के लिए और सरकारी खाते में अपनी जमीन को सिंचित बता देने के लिए बाध्य हैं।
भवदीय
पुष्य मित्र

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