DELHI (APP) : घनश्यामदास बिड़ला (GD Birla)। उद्योग जगत के बुकमार्क थे। एक समय था, जब इनकी तूती बोलती थी। ये भारत के टॉप इंडस्ट्रीयल ग्रुप बीकेकेएम बिड़ला समूह (BKKM Birla Group) के फाउंडर थे। ये स्वाधीनता सेनानी भी रहे थे। ये गांधीजी के मित्र, सलाहकार, प्रशंसक एवं सहयोगी भी रहे थे। भारत सरकार ने वर्ष 1957 में इन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया था। घनश्याम दास बिड़ला का निधन जून, 1983 ई. हुआ था। लेकिन इन्होंने अपने जीवन में अपने पुत्र बसंत कुमार बिड़ला को एक पत्र लिखा था।
घनश्यामदास बिड़ला का 1934 में लिखा अपने पुत्र के नाम पत्र आज भी लोगों के लिए प्रासंगिक है। दरअसल, दुनिया में तो कितने ही प्रमुख हस्तियों ने पत्र लिखा होगा। इनमें से दो पत्र सबसे सुप्रसिद्ध और आदर्श माने गए हैं। इनमें एक है ‘अब्राहम लिंकन का शिक्षक के नाम पत्र’ और दूसरा है ‘घनश्यामदास बिरला का पुत्र के नाम पत्र। घनश्यामदास बिड़ला ने यह पत्र 1934 में लिखा था। इसे हर किसी को पढ़ना चाहिए। और मुखियाजी आपके लिए भी लाया है। आप भी पढ़ें यह पत्र अक्षरशः।
चि. बसंत…
यह जो लिखता हूँ, उसे बड़े होकर और बूढ़े होकर भी पढ़ना, अपने अनुभव की बात कहता हूँ।
संसार में मनुष्य जन्म दुर्लभ है और मनुष्य जन्म पाकर जिसने शरीर का दुरुपयोग किया, वह पशु है। तुम्हारे पास धन है। तंदुरुस्ती है। अच्छे साधन हैं। उनको सेवा के लिए उपयोग किया। तब तो साधन सफल है। अन्यथा वे शैतान के औजार हैं। तुम इन बातों को ध्यान में रखना।
धन का मौज-शौक में कभी उपयोग न करना। ऐसा नहीं कि धन सदा रहेगा ही। इसलिए जितने दिन पास में है, उसका उपयोग सेवा के लिए करो। अपने ऊपर कम से कम खर्च करो, बाकी जनकल्याण और दुखियों का दुख दूर करने में व्यय करो। धन शक्ति है। इस शक्ति के नशे में किसी के साथ अन्याय हो जाना संभव है। इसका ध्यान रखो कि अपने धन के उपयोग से किसी पर अन्याय ना हो।
अपनी संतान के लिए भी यही उपदेश छोड़कर जाओ। यदि बच्चे मौज-शौक, ऐश-आराम वाले होंगे तो पाप करेंगे और हमारे व्यापार को चौपट करेंगे। ऐसे नालायकों को धन कभी न देना। उनके हाथ में जाये, उससे पहले ही जनकल्याण के किसी काम में लगा देना या गरीबों में बाँट देना। तुम उसे अपने मन के अंधेपन से संतान के मोह में स्वार्थ के लिए उपयोग नहीं कर सकते।
हम भाइयों ने अपार मेहनत से व्यापार को बढ़ाया है तो यह समझकर कि वे लोग धन का सदुपयोग करेंगे l भगवान को कभी न भूलना। वह अच्छी बुद्धि देता है। इंद्रियों पर काबू रखना, वरना यह तुम्हें डुबो देगी और नित्य नियम से रोज भगवद् सेवा करना सेवा से कार्य में कुशलता आती है। कुशलता से कार्यसिद्धि और कार्यसिद्धि से समृद्धि आती है। सुख-समृद्धि के लिए स्वास्थ्य ही पहली शर्त है। मैंने देखा है कि स्वास्थ्य संपदा रहित होने पर करोड़ों-अरबों के स्वामी भी कैसे दीन-हीन बनकर रह जाते हैं। स्वास्थ्य के अभाव में सुख-साधनों का कोई मूल्य नहीं। इस संपदा की रक्षा हर उपाय से करना। भोजन को दवा समझकर खाना। स्वाद के वश होकर खाते मत रहना। जीने के लिए खाना हैं, न कि खाने के लिए जीना। – घनश्यामदास बिड़ला