Nitish-Patnaik Meet: बिहार के देवता ने कुल्हाड़ी पर रख दिया है पैर

PATNA (SMR) : बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की कल मुलाकात हुई। कहा जाता है कि दोनोें के बीच लगभग दो घंटे की बातचीत हुई। लेकिन मीडिया के सामने दो लाइन में बातों को निबटा दिया गया। नीतीश कुमार ने कहा कि हमलोगों की दोस्ती पुरानी है और गठबंधन पर कोई बात नहीं हुई है। दो दिग्गज नेताओं की इस मुलाकात को पॉलिटिकल एक्सपर्ट व युवा पत्रकार विवेकानंद कुशवाहा अपने चश्मे से देख रहे हैं। यह आलेख उनके सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से लिया गया है और इसमें उनके निजी विचार हैं…

जंगल में मंगल कर सुशासन से राज्य का नक्शा बदलने वाले नीतीश कुमार बिहार के देवता हैं। उनसे पहले न बिहार में कोई उनके जैसा नेता हुआ और न ही कभी आगे होगा। राजनीति में नीतीश कुमार ने जो चाहा, वह हासिल किया। जो चीज उन्हें एक बार में हासिल नहीं हुई, तो बैक गियर लगा कर वह पीछे लौटे, फिर पीछे से चीजों को सुधार कर आगे बढ़े। इसे लोग उनकी पलटमार पॉलिटिक्स कहते हैं, लेकिन नीतीश कुमार के पास बिहार की राजनीति की टाइम मशीन है।

बिहार में नीतीश कुमार ने जिस लालू यादव एंड फैमिली के खिलाफ सबसे तीखा हमला किया, उसी फैमिली के साथ आज उनके रिश्ते सबसे प्रगाढ़ हो चले हैं। ऐसा लग रहा है कि टाइम मशीन से नीतीश कुमार चीजों को 1990 के दशक में लेकर पहुंच गये हैं। जिस यदुवंशी समाज की आंखों में नीतीश कुमार खर-पतवार की तरह चुभा करते थे, वे आज उन्हीं आंखों से बिहार के देवता को देश का देवता बनते देखना चाहते हैं। देश में विपक्षी एकता की पहल में तेजस्वी यादव, नीतीश कुमार की बैसाखी बने नजर आते हैं। 

टाइम मशीन में सबकुछ नीतीश कुमार के अनुकूल ठीक चल ही रहा था, लेकिन एक कांटा थोड़ा गलत अटक गया है। बिहार की राजनीति की चिंता में नीतीश कुमार ने जेल मैनुअल तक बदल दिया। ऐसा करते समय उन्हें उस नैरेटिव का ख्याल नहीं रहा, जो देशभर में बन गया है। जिस नीतीश कुमार की सरकार को अफसरों की सरकार के रूप में जाना जाता रहा है, उस नीतीश कुमार ने सेवा के दौरान एक लोकसेवक की हत्या के लिए मिलने वाले कठोर दंड को मुलायम कर दिया। क्योंकि, इस फैसले से बिहार में वोटों के मामले में उन्हें लाभ की उम्मीद है। 

इस फैसले का नतीजा हर गैर हिंदी भाषी प्रदेश में नीतीश कुमार के खिलाफ जायेगा/जा चुका है। कल नीतीश कुमार विपक्षी एकता की एक और कील ठोकने ओडिशा गये थे। ओडिशा के मुख्यमंत्री ने साफ शब्दों में कह दिया कि विपक्षी अलायंस को लेकर कोई बात नहीं हुई। ओडिशा के कुछ आईएएस अधिकारियों ने भी नीतीश कुमार की ओडिशा यात्रा का विरोध किया, जबकि नीतीश कुमार और नवीन पटनायक कुंभ मेले में बिछड़े भाइयों की तरह दिखते हैं।

यह तो एक शुरुआत है। बिहार के देवता ने जेल मैनुअल को बदल कर अपने पैर को कुल्हाड़ी पर जो मारा है, उसका खामियाजा उन्हें दक्षिण के दलों को जोड़ने में भी उठाना पड़ेगा। हो सकता है कि नीतीश कुमार को दक्षिण के राज्यों को कांग्रेस के भरोसे छोड़ना पड़े।

वैसे भी नीतीश कुमार क्रेडिबलिटी क्राइसिस से उबरने की कोशिश में जुटे थे। क्योंकि, नीतीश कुमार आज राजनीति में जहां खड़े हैं, उसमें उनके अपने प्रयासों के बाद भाजपा का योगदान सर्वाधिक है। यही वजह है कि ‘चुनावों के देवता नरेंद्र मोदी’ की घेराबंदी के लिए ‘बिहार के देवता नीतीश कुमार’ अटल बिहारी वाजपेयी को बार-बार याद करना नहीं भूलते हैं। अरुण जेटली से इनका लगाव इतना अधिक था कि पटना में उनकी मूर्ति लगवा दिये हैं। 

मीडिया गलियारों में तो कहा जाता है कि नीतीश कुमार को 2013 में नरेंद्र मोदी के खिलाफ बगावत के लिए उकसाने वाले अरुण जेटली ही थे। 2014 में नीतीश कुमार को बगावत के बाद मिली हार ने बहुत आहत किया था। उस आह को वाह में बदलने की चाह में उन्होंने लोहे के गर्म होने का इंतजार किया है। इस बीच बिहार के देवता, चुनावों के देवता के समक्ष नत्मस्तक भी हुए, लेकिन 2024 की लड़ाई में नरेंद्र मोदी को पीएम की कुर्सी से हटाना ही नीतीश कुमार की चाह है।

इस चाह में बिहार के देवता ने जाति गणना को राजनीतिक मुद्दा बना कर आगामी लोकसभा चुनाव को धर्म की पिच से जाति के पिच पर लाने की भरपूर कोशिश की है। बिना प्रॉपर तैयारी के जाति गणना की शुरुआत करवा कर हाई कोर्ट में अपना दावा कमजोर साबित करवाया है, ताकि कोर्ट के इस फैसले से ओबीसी की गोलबंदी उनके पक्ष में हो। अब ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि बिहार के देवता, चुनावों के देवता को हरा पाते हैं या नहीं, उसके लिए 2024 के चुनाव का इंतजार बेसब्री से है।

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