PATNA (MR) : बिहार में पंचायत चुनाव का टलना अब तय माना जा रहा है। वर्तमान में त्रिस्तरीय पंचायती राज का कार्यकाल अगले माह 15 जून को खत्म हो रहा है। कोरोना संकट को देखते हुए पंचायत चुनाव के समय पर होने की उम्मीद अब खत्म हो गई है। यदि सब कुछ ठीक रहा तो भी दुर्गापूजा या दीवाली-छठ के बाद ही चुनाव होने की उम्मीद है। ऐसे में पंचायतों के कार्यकाल खत्म होने के बाद इसकी शक्ति किसके पास रहेगी, यह यक्ष प्रश्न है?
सूत्रों की मानें तो पंचायती राज विभाग सभी तरह के वैकल्पिक उपायों को लेकर तैयार है। बस मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सहमति मिलने का इंतजार है। फिलहाल वे अभी कोरोना संकट पर अपना ध्यान केंद्रीत किये हुए हैं। सूबे में एक जून तक लॉकडाउन लगा हुआ है। संभव है कि लॉकडाउन की अवधि को चौथा विस्तार मिल जाए। यानी लॉकडाउन को आगे भी एक सप्ताह के लिए बढ़ाया जा सकता है। सूत्रों के अनुसार, मुख्यमंत्री के स्तर से यदि मांग होगी है तो पंचायती राज विभाग प्रस्ताव लेकर हाजिर हो जाएगा।
दरअसल, किसी ने सोचा नहीं था कि पंचायत चुनाव टल सकता है। लेकिन कोरोना संकट की दूसरी लहर ने सारे मंसूबों पर पानी फेर दिया। ऐसे में यह बड़ी समस्या हो गई है कि पंचायती राज का कार्यकाल खत्म होने के बाद पंचायतों की शक्ति किसके पास रहेगी? समय पर चुनाव न होने की हालत में क्या वैकल्पिक इंतजाम हो सकते हैं? इसकी व्यवस्था पंचायती राज अधिनियम में नहीं की गई है। विभाग के अनुसार, बिहार में कोरोना के चलते उत्पन्न हुई असाधारण परिस्थिति से निबटने के लिए वैकल्पिक व्यवस्था को लेकर राज्य सरकार के पास अध्यादेश लाने के अलावा कोई उपाय नहीं है।
पंचायत चुनाव नहीं होने की स्थिति में दो विकल्प सुझाए जा रहे हैं। पहला यह कि 15 जून के बाद पंचायती राज संस्थाओं के कामकाज की जिम्मेवारी के लिए प्रशासक नियुक्त किए जाएं। यह व्यवस्था पिछले साल ऐसी ही स्थिति आने पर उत्तर प्रदेश में की गई थी। दूसरा विकल्प झारखंड का है। झारखंड में प्रबंध समितियों का गठन किया गया है। निवर्तमान प्रतिनिधियों को ही कार्यकारी अधिकार दे दिए गए हैं। पंचायत राज मंत्री सम्राट चौधरी के अनुसार, विभाग दोनों विकल्पों पर विचार कर रहा है, लेकिन अंतिम निर्णय सरकार ही करेगी। जो भी फैसला होगा, उसे विभाग की ओर से पालन किया जाएगा।