PATNA (RAJESH THAKUR) : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 10 फरवरी 2022 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लेकर बड़ा बयान आया था। उन्होंने एक न्यूज एजेंसी से बात करते हुए कहा था- ‘राममनोहर लोहिया तथा जॉर्ज फर्नांडिस के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही सच्चे समाजवादी हैं। आपने कभी नीतीश कुमार के किसी परिवार को कहीं राजनीति में देखा है क्या? समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया और जॉर्ज फर्नांडिस ने कभी भी अपने स्वजनों को राजनीति में लाने पर जोड़ नहीं दिया। इसी तरह बिहार व केंद्र में भाजपा के सहयोगी नीतीश कुमार ने भी इस सिद्धांत का पालन किया है और सही मायने में वह सच्चे समाजवादी नेता हैं। नीतीश कुमार हमलोगों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। वह सही अर्थों में समाजवादी हैं। कहीं नजर नहीं आते हैं उनके काम में उनके परिजन…।’ इस बयान के लगभग 3 साल बाद आज उसी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इकलौते बेटे निशांत कुमार के राजनीति में एंट्री को लेकर बिहार के साथ पूरे देश के सियासी गलियारे में तेज बहस हो रही है।
शहर से गांव तक एक ही चर्चा
निशांत कुमार। यह नाम अभी बिहार के सियासी गलियारे में ‘हॉट केक’ बना हुआ है। पटना से लेकर बिहार के तमाम विधानसभा क्षेत्रों में इस नाम पर खूब चर्चा हो रही है। शहर से लेकर गांव-मुहल्ले तक और चाय दुकानों से लेकर खेत-खलिहानों तक यह अघोषित मुद्दा बना हुआ है। वैसे तो निशांत कुमार के राजनीति में एंट्री की चर्चा गाहे-बगाहे पहले भी कभी-कभार हुई थी, लेकिन इसके लिए न तो नीतीश कुमार तैयार थे और न ही निशांत कुमार को ही राजनीति में कोई इंट्रेस्ट था। जनता भी इसे गंभीरता से लेती थी। किंतु पिछले साल के अंत से एक बार फिर इसे लेकर तेज चर्चा शुरू हुई है। इस बार यह चर्चा जदयू खेमे से निकलकर बिहार के सियासी गलियारे में पहुंच गयी। मीडिया हाउस पहले इसे ट्रायल के रूप में लिया, बाद में इस पर रिपोर्ट बनाने लगे। निशांत के राजनीति में आने से इनकार करने वाले दिग्गज सियासी पंडित भी अब मानने लगे हैं कि निशांत कुमार की बिहार पॉलिटिक्स में अघोषित रूप से एंट्री हो चुकी है और बस लोगों को इसकी घोषणा का इंतजार है। उनके राजनीति में कदम रखने के जदयू कार्यालय से लेकर शहरों में लगे पोस्टरों और बैनरों से जहां संकेत मिलने लगे थे, वहीं होली के मौके पर निशांत की आयी तस्वीर और 9 वर्षों के बाद उनकी मौजूदगी में मुख्यमंत्री आवास में होली के आयोजन से उस पर अघोषित रूप से मुहर लग गयी।

चाणक्य के साथ चंद्रगुप्त भी
बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नीतीश कुमार को लेकर समाजवादी वाला बयान तब आया था, जब उत्तर प्रदेश में विधानसभा का चुनाव होना था। इसी बयान से उन्होंने यूपी के साथ ही बिहार पॉलिटिक्स को भी साधने का काम किया था। दरअसल उस समय बीजेपी को जहां यूपी में चुनाव को लेकर टेंशन था, वहीं बिहार में ‘योगी मॉडल’ को लेकर बीजेपी के कुछ नेता मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को निशाने पर ले रहे थे। इसकी परिणति भी देखने को मिली, जब नीतीश कुमार एनडीए को झटका देते हुए महागठबंधन में शामिल हो गए। हालांकि, यह सियासी संबंध भी बहुत दिनों तक नहीं चला और वे फिर से एनडीए के साथ हो गए। सियासी पंडितों की मानें तो नीतीश कुमार को किसी भी परिस्थिति में सियासी समीकरण को बैलेंस करने आता है। उनमें चाणक्य के साथ ही चंद्रगुप्त के भी गुण हैं। वे बिहार ही नहीं, देश की सियासत के भी माहिर खिलाड़ी हैं। वे किस समय, कौन-सा कदम चलेंगे, कहना मुश्किल है। लेकिन कोई कदम फालतू नहीं होता है। विरोधी उन पर आरोप लगाते हैं कि उनकी मानसिक हालत ठीक नहीं है, इसके बाद भी उनकी सियासी ताकत का अंदाजा राजद को भी काफी अच्छे से पता है और और बीजेपी को भी। भाजपा जिस तरह नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की रट लगाए हुए है, उसी ताकत का नतीजा है। अगर लोकसभा चुनाव के एनवक्त पर यदि नीतीश कुमार एनडीए में नहीं आते तो फिर यूपी की तरह बिहार में भी उसकी हालत पतली हो जाती।

सियासी पंडित भी अब मानने लगे
यहां हम बात कर रहे हैं निशांत कुमार के राजनीति में एंट्री की। कहा जाता है कि नाविक नयी नाव को मंझधार में धीरे-धीरे उतारता है। उन्हें पता रहता है कि बैलेंस कैसे बनाना है। कुछ ऐसा ही निशांत कुमार के साथ भी हो रहा है। उन्हें बिहार के सियासी मंझधार में बैलेंस बनाते हुए धीरे-धीरे उतारा जा रहा है। इस बार अंदर से नीतीश कुमार का भी साथ मिल रहा है। मुख्यमंत्री के जन्मदिन पर कुछ ऐसी तस्वीरें सामने आयीं, जिससे यह साफ संकेत है कि निशांत के साथ वे और उनके साथ निशांत काफी मजबूती के साथ खड़े हैं। पिता-पुत्र की स्ट्रांग बॉंडिंग से निशांत की पॉलिटिकल एंट्री को भी सहजता से समझा जा सकता है। सियासी पंडित तो यह भी कहते हैं कि नीतीश कुमार ने भाजपा को दो बार राजद के सहयोग से बैलेंस में रखा, यही फॉर्मूला उन्होंने हम पार्टी के संस्थापक जीतनराम मांझी पर भी लगाया था। और अब, वे निशांत की राजनीति में एंट्री कराकर जदयू को बचाने के साथ ही भाजपा को भी बैलेंस में रखने की जुगत में हैं। एक तीर से दो निशाने साधे जा रहे हैं। सियासी पंडित यह भी मानते हैं कि जिस तरह नीतीश कुमार और निशांत कुमार की फोटो में बॉउंडिंग दिखी, उसका साफ संदेश है कि निशांत अपने पिता के लिए हमेशा ढाल बनकर मौजूद रहेंगे और जल्द ही उनकी राजनीति में एंट्री होगी।

क्या कहती है यह तस्वीर
आपको याद होगा, पिछले ही माह निशांत का मीडिया में बयान आया था कि एनडीए उनके पिता के नाम को इस साल होने वाले चुनाव को लेकर मुख्यमंत्री के रूप में घोषित करे। इसके ठीक 2-3 दिन बाद ही भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने सार्वजनिक बयान में कहा कि नीतीश कुमार के नेतृत्व में भाजपा चुनाव लड़ेगी। दूसरी ओर, यह भी सवाल बार-बार उठ रहा है कि जदयू में नीतीश कुमार के बाद उत्तराधिकारी कौन होगा? तो होली के मौके पर जारी फोटो से बड़े-बड़े दिग्गजों को अघोषित रूप से जवाब मिल गया होगा। फोटो में बांयी ओर जदयू के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय झा हैं तो दांयी ओर बिहार सरकार के जदयू कोटे से बने सबसे वरीय मंत्री विजय चौधरी हैं। बीच में निशांत कुमार। फोटो का पोज देखकर सियासी पंडितों को भी समझ में आ गया कि जदयू को ‘उत्तराधिकारी मिल गया है। उन्हें सियासी मंझधार में ‘नाव’ की तरह धीरे-धीरे उतारा जा रहा है, ताकि पार्टी के सहयोगी और विरोधी भी बैलेंस में रहे। ऐसे में आप कह सकते हैं कि निशांत की अघोषित रूप से राजनीति में एंट्री हो गयी है। बस, इसका ऐलान होना रह गया है। कुछ लोग तो पोस्टर के जरिए उन्हें ‘धन्यवाद’ भी देने लगे हैं।

अब बस ऐलान का इंतजार
बहरहाल, निशांत ने पिछले माह भर में बारी-बारी से मीडिया से बात करते हुए जिस तरह अपनी राय रखी और जिस तरीके से उन्होंने अपने पिता नीतीश कुमार को फिर से चुनाव में जिताने की अपील की है, उससे साफ पता चलता है कि निशांत अब पहले से काफी बदल चुके हैं। लेकिन, निशांत के राजनीति में आने का कब ऐलान होगा, उनका पार्टी में क्या रोल होगा, उन्हें कौन-सी जिम्मेदारी दी जाएगी, ये सारे सवालों के जवाब पाने के लिए कुछ दिनों तक इंतजार करना होगा, शायद खरमास तक। लेकिन जिस अंदाज से उन्होंने राजद सुप्रीमो लालू यादव को लेकर जवाब दिया कि वो तो मेरे अंकल हैं, सियासी पंडितों को ‘चिंतन-मंथन’ करने के लिए विवश कर दिया है…